इस देश में आजादी के बाद सभी का स्तर बदला है लेकिन ग्रामीण स्तर पर अभी और काम करने की जरूरत है। क्योंकि यह वह जगह है जहां से विकास का पहिया जाम की ओर बढता है। सूदूर गांवों में जहां न तो ट्रेन है और न ही आवागमन की कोई सुविधा , वहां विकास की गति देखते ही बनती है। बुंदेलखण्ड भी एक ऐसा ही क्षेत्र है । जहां आज लोगों के पास खाने को नहीं है और लोग घास की रोटियां खा रहे हैं, दूषित पेयजल पी रहे हैं लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। उत्तर प्रदेश की सीमा से सटे इस क्षेत्र के लोग अपनी सरकारों के पास जाते तो हैं लेकिन सरकारों को लगता है कि समय ही नहीं है कि उनकी बातों पर गौर कर सके, कुछ दिनों पहले इसी क्षेत्र से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पास गये थे लेकिन वह मिल नहीं सके, क्योंकि समाजवादी पार्टी का सारा कुनबा सैफई महोत्सव में व्यस्त था। हैरत की बात यह है कि सरकार वहां के विकास में मस्त है, उनकी समझ में यह भी नहीं आता कि जब लोग ही नहीं रहेंगे, तो वह विकास करके क्या करेगें। ये बातें प्रवक्ता डाटकाम के कार्यालय में एक चर्चा के दौरान उन्होने उसके सह संपादक अरूण पाण्डेय से कही। प्रस्तुत है इसी वार्ता के कुछ अंश:
प्र.: आप पिछले दिनों बुदेलखण्ड क्षेत्र में गये थे। वह हमेशा से दस्यू प्रभावित क्षेत्र रहा है । मलखान सिंह , सुल्ताना डाकू , फूलन देवी, ददुआ आदि तमाम नाम है जो इस क्षेत्र से आते हैं और आतंक का पर्याय रहे हैं । आपके हिसाब से बुदेलखंड की आज की स्थिति क्या है।
उ.:देखिये बुदेलखंड का अपना मालिक नहीं है उसे दो राज्यों में बांटा गया है। कुछ उत्तर प्रदेश में आता है और कुछ मघ्य प्रदेश मे आता है। लेकिन जहां भी आता है वहां की स्थिति अमूमन ऐसी ही है। लोगों के पास खाने को नहीं है तो अपराध तो फलेगा फुलेगा ही, महिलाओं को पहनने के लिये वस्त्र नहीं है और बच्चे कड़ाके की ठंड में बिना कपडे के घूम रहें है तो इससे ज्यादा हम सोच भी नहीं सकते। कुछ काम इन अपराधियों के पुर्नवास के लिये किये गये थे लेकिन अब सबकुछ बंद है । घाटियों में बबूल के बीज डाल देने से कुछ नहीं होता , वहां उतरकर माहौल को देखना पडता है, काम करना पडता है, तब जाकर मानसिकता व माहौल बदलता है। यह काम वहां की सरकारों का है कि उनके तन पर कपडे हो , कुपोषित खाना न खायें , दूषित पेयजल नहीं पिये और सुरक्षित जीवन व्यतीत कर सके। सूखा पड़ा है और धास की रोटियाँ खा रहे है यह बात क्या अच्छी है? लोग सरकार के पास अपनी बात लेकर जाये तो कहा जाय कि समय नहीं है । उन लोगों के लिये समय नहीं है जिन्होने आपको नेता बनाया।
प्र.: बुदेलखण्ड में किसान आत्महत्या कर रहे हैं, सरकारें मौन है , इसका क्या कारण है ?
उ.: यहां मैं एक बात कहना चाहूंगा। वह यह है कि दो तरह के किसान होते हैं । पहला जिनके पास खेत है और दूसरा वह जो इसे आधे पर लेकर इससे अनाज उगाते हैं । जो किसान भूमि के मालिक है , वह लोग सम्पन्न हैं और बिना खेती के अपना जीवन यापन कर सकते है। किन्तु जो गरीब है और आधे पर लेकर अपना जीवन यापन करते हैं , उनके पास सूखा पड़ने के बाद कुछ नहीं बचता । वह भूखमरी के कगार पर इसलिये आ जाते हैं क्योंकि खेत उनका है नहीं कि उसे गिरवी रखकर पैसे ले सके और खेत बोने के लिये जो कर्ज लिया था वह भी उनके हाथों में नहीं रहा , उस कर्ज को चुकाना है, गरीब है इसलिये अधिकारी से लेकर पुलिस तक उसके खिलाफ रहती है और उसका हर तरह से उत्पीडन किया जाता है । यही कारण है वह मृत्यु का रास्ता चुनते हैं । इस तरह के लोगों के लिये वहां के लेखपालों को एक लिस्ट तैयार करनी चाहिये थी किन्तु उनके पास भी समय नहीं है। इसलिये इस तरह के लोगो की पहचान नहीं हो पाती, अन्यथा मनरेगा के तहत उनको काम अवश्य मिल जाता और वह भी अपनी अतिजरूरी चीजें उससे हासिल कर सकते।
प्र.: वहां की सरकारों को उनके लिये क्या करना था, जो वह नहीं कर सके?
उ.: पूरे देश में एनजीओ हैं , सरकारें यह काम खुद नहीं कर सकती तो इस काम में एनजीओं को लगा सकती है। उनकी सबसे बडी समस्या रोजगार की है , खेती मुख्य व्यवसाय है , किन्तु वह भी लागत मांगती है। जब सूखा पडा है , खाने को अन्न नहीं है तो वह खेती कहां से करेगें । पहले सरकारों ने कुछ नहीं किया और अब उन्हें बिना अन्न, जल व कपडे के मार देना चाहती है । वह भी इसी देश के नागरिक हैं , विकास तब होगा जब वह होगें , यह बात सरकार व उनके नीचे बैठे अधिकारी क्यूँ नहीं समझते। सरकारों को चाहिये कि सबसे पहले मुआवजा किसानों को दे और सुनिश्चित भी करे कि उन्हें तत्काल मिला या नहीं , सही आदमी को मिला या बंदरबाट में चला गया। बेहतर हो कि आनलाइन ही दिया जाय। ताकि आत्महत्या का यह सिलसिला रूक सके।
प्र.: यह समस्या कैसे सुधर सकती है , क्योंकि देश के कई हिस्सों में यह समस्या है और सरकारें कुछ नहीं कर पा रही हैं?
उ.: यह बात सच है कि सरकार को इस बात पर नजर रखनी चाहिये लेकिन सिर्फ नजर रखने से नहीं होगा , उनके बीच जाकर अपनी निगरानी में काम करना होगा। जहां तक हमारी अपनी राय है कि सरकारों को कोसने से कुछ नहीं होगा। इस पूरे मामले के लिये अधिकारी जिम्मेदार है जिन्होने यह बात सरकार तक नहीं पहुंचने दी , या फिर गलत राय सरकार के सामने रखी, उस मामले में बिना हीला हवाली करे पूरी निष्ठा के साथ इन अधिकारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने होगे, क्योकि जीवन एक बार मिलता है और हम अच्छा जीवननिर्वहन कर रहें है तो दूसरों को भी जीने का मौका देना चाहिये ।
प्र.: यह समस्या आगे न आये इसके लिये क्या क्या उपाय किये जा सकते है, ताकि लोग भूखमरी व कर्ज से आत्महत्या न करे। उनके परिवार के लोग ससम्मान जीवन यापन कर सके?
उ.: मैं इस मामले में केन्द्र सरकार का शुक्रगुजार हूं कि उन्होने इस मामले पर घ्यान दिया , और किसानों के लिये भी एक बीमा लाये जिसके तहत अब सूखा पड़ने पर 25 प्रतिशत बीमा राशि का भुगतान तुरंत हो जायेगा। किन्तु समस्या तो टाल दी गयी उसका निदान नहीं हुआ , वर्तमान समय में वह क्या करें। बीमा तो तब होगा जब खेत होगा , जो आधे पर काम कर रहें है उनका क्या। पहले तो कटाई , दवांई और हलो से जुताई हो जाती थी अब तो वह भी नहीं रहा , उनके पास मरने के सिवा रास्ता क्या है ।
प्र.: तो आप यह कहना चाहते है कि इस समस्या का कोई हल नहीं है?
उ.: केन्द्र सरकार ने जो कुछ किया अगर यह काम पूर्ववर्ती सरकारों ने किया होता तो आज हम इस समस्या से निकल चुके होते , लेकिन जिस देश में कार खरीदने के लिये , बाइक खरीदने के लिये कोई ब्याज न लिया जाता हो और उसे दे दी जाय, उसी देश में किसान के लिये एक किसान टैक्टर खरीदता है और उसका किस्त भरने के लिये उसे अपने उस खेत का बेचना पडता है जिसे गिरवी रखकर उसने टैक्टर उठाया था। बैंक पहले उस टैक्टर की लागत से ज्यादा की सम्पति इसलिये रखा लेता है क्योंकि उसे विश्वास नहीं होता कि किसान इसकी किस्त भर पायेगा। जबकि कारों के मामले में बिल्कुल उल्टा है , वह सिर्फ डिफाल्टर होता है और कार खींच ली जाती है। किसान को बर्बाद करना यह सोच कर्ज देने वालों में है, वह कुछ देकर उसका सबकुछ लेना चाहते है जो गलत है। इस पर काम करने की आवश्यकता है। आने वाले सालों में प्रधानमंत्री की बीमा पालिसी जो किसानों के लिये है उससे जरूर सुधार आयेगा। कोई माने या न माने मुझे इस बात का विश्वास है।
प्र.: पिछले दिनों एक निजी टीवी चैनल पर मध्यप्रदेश के टीकमगढ जिले के एक गांव की कुछ खबर आयी थी कि वहां के लोग घास की रोटी खाकर जी रहें है। लोग बदहाल जीवन जी रहें है । वहां तो आपकी अपनी पार्टी की सरकार है । आप की पार्टी क्या कर रही हैं?
उ.: हमारे पार्टी की सरकार वहां आज से नहीं है कई वर्षो से वहां की जनता हमें चुन रही है इसलिये कि हम उनके लिये अपने से पहले सोचते हैं । जिस खबर की बात आप कर रहे है वह जीन्यूज पर दिखायी गयी थी और मुख्यमंत्री स्वयं उस गांव में जाकर सब ठीक करके आये है। यहां यह मैं जरूर बताना चाहूंगा कि उसी गांव में राहुल गांधी जी पहले गये थे और एक रात एक गरीब के यहां खाना भी खाये थे और रहे भी थे । काफी सुर्खियां उस खबर ने बटोरी थी, उनके नाम पर इस गांव का नाम भी रख दिया गया लेकिन क्या उसके बाद वह उस गांव में गये , नहीं ? हमारी पार्टी प्रचार के लिये काम नहीं करती , जमीन पर उतर कर काम करती है और यही कारण है कि हम इतने लंबे समय से सरकार में है।
प्र.: किन लोगों से आपसे अपेक्षा करते है कि उनको इस काम में मद्द करनी चाहिये।
उ.: सबसे पहले तो मैं एक बात कहना चाहूंगा कि केन्द्र सरकार ने जो किसान चैनल शुरू किया है वह अनूठी पहल है लेकिन इस चैनल के ब्रांड एम्ब्रेसडर अमिताभ बच्चन को यह काम मुफ्त में करना चाहिये और अपनी फिल्म इंडस्ट्री से जुडे लोगों को भी निःशुल्क जोडना चाहिये। जिस तरह इस देश ने उन्हें इस उंचाई पर पहुंचाया , उसी तरह यह देश उनसे भी अपेक्षा करता है कि यहां के लोगो के उत्थान के लिये कुछ करें। इस इंडस्ट्री को गरीब व खेतों में काम करने वाले लोगों को लेकर संजीदगी दिखाने की जरूरत है ताकि वह वास्तव में भारत के लिये मिसाल बन सके । इसके अलावा केन्द्र सरकार को भी जिन राज्यों में यह घटना हो रही है वहां के मुख्यमंत्रियों से सख्ती से बात करनी चाहिये व कारवाई करनी चाहिये।