किसी भी देश को चलाने के लिए एक संविधान बनाया जाता है ।उसी के अनुसार देश चलता है लेकिन भारत देश में ऐसा नहीं है लोग मनमाने तरीके से अपनी सुविधा अनुसार देश को चलाने में लगे हुए है। जिस सरकार को देश चलाने की जिम्मेदारी दी गई है उनके ज्यादातर मंत्रियों को कानून की जानकारी है ही नहीं, यह सब जानते हैं लेकिन कोई कुछ इस पर बोलना नहीं चाहता।
सही मायने में देखा जाए तो जिस शब्द के साथ सरकारी शब्द जुड़ा हो और एक समुदाय उस काम को कर रहा हो तो उसमें कानून के जानकार लोगों को ही रखा जाना चाहिए।सरकारी नौकरी वालों के लिए एलएलबी अनिवार्य होना चाहिए ऐसा इसलिए भी जरूरी है कि जिन लोगों को नौकरी दी गई ,उन लोगों को कानून की जानकारी नहीं थी और वह अंदाज बस सारा काम कर रहे हैं। जैसे नगर निगम ,विकास प्राधिकरण ,थाना व अन्य विभाग। दिक्कत इन विभागों को नहीं है बल्कि जो कार्य हो रहे हैं उनसे है। मसलन थानेदार को पता नहीं है किस धारा में चालान करना है और कौन सी धारा लगानी है। इसके लिए उसे किसी वकील के पास जाना पड़ता है या फिर वादी को खुद बताना पड़ता है कि उसका वाद किस धारा के अंतर्गत आता है ।उसके बाद भी वह टालमटोल करते हैं।
यही हाल नगर निगम का है नगर निगम में स्वामित्व देने का अधिकार नहीं है लेकिन वह कब किसको स्वामी बना देंगे इस बात की गारंटी नहीं है ।किसी का नाम किसी के घर पर चढ़ा देना यहां आम बात है उसके लिए बारिश का प्रमाण पत्र होना जरूरी नहीं है लेन-देन में सब कुछ हो जाता है । इसमें जो सबसे बड़ी दिक्कत है वह यह है कि जिस आदमी का मकान होता है वह आदमी जिंदगी भर मुकदमा लड़ता रह जाता है उसका कोई निर्णय नहीं होता जो आदमी उस मकान का कुछ नहीं होता उसे इसका लाभ मिलता है और वह एक लंबे समय तक लेता है दूसरी पीढ़ी तक उस मकान ने बिना कुछ बयां किए आराम से कोर्ट की आड़ में रह सकता है इस तरह के मामले देश के कोर्ट में कम से कम 70% है।
इसी तरह विकास प्राधिकरण है वहां के अधिकारियों को यह नहीं पता होता है कि किस धारा के अंतर्गत मकान का नक्शा जारी होता है और कुछ में क्या-क्या होने चाहिए जिससे पर्यावरण का प्रभाव घर के अंदर सकारात्मक रूप में मौजूद रहे। भ्रष्टाचार का इतना ज्यादा बोलबाला है किस तरह का नक्शा कब पास कर दिया जाए कोई बता नहीं सकता। सबसे खराब बात तो यह है कि जिस समय मकान बन रहा होता है उस समय विकास प्राधिकरण के अधिकारी किसी को मकान बनाने से रोकते नहीं है बनने के बाद कहते हैं कि नक्शे के हिसाब से मकान नहीं इसलिए इस को गिराया जाएगा ।इस तरह के 40 फ़ीसदी मामले भारतीय न्यायालय में लंबित है।
अब बात करते हैं इससे होने वाले प्रभाव कि इससे समाज पर बुरा असर पड़ रहा है जो लोग पैसे वाले हैं वह लोगों को उलझा रहे हैं यहां काम करने वाले अधिकारी उनका सहयोग कर रहे हैं लेकिन चीजों का असर कोर्ट पर पड़ रहा है। वहां इतने मामले लंबित हो गए हैं कि लोगों को न्याय नहीं मिल रहा है इसलिए भी लंबित हैं क्योंकि अधिकारी सही काम नहीं कर रहा है। सरकार को चाहिए कि सरकारी नौकरी लेने वालों के लिए एलएलबी की परीक्षा अनिवार्य करते इससे क्या होगा जो भी अधिकारी है आएंगे वह नियम के तहत काम करेंगे जिस धारा में जो काम होना है उसी धारा में होगा ।अनावश्यक दूसरी धारा लगाकर के मामले को कोर्ट में नहीं पहुंचाएंगे ,समय बचेगा लोगों का भला होगा और जिस चीज के लिए वह कानून बनाया गया है उस कानून का उपयोग होगा ।अनावश्यक लोग परेशान नहीं होंगे ।
फिलहाल या भारत देश है ।यहां सब कुछ संभव है यह न्याय कम अन्याय ज्यादा होता है ।जो सरकारी कर्मचारी हैं वह कोई काम नहीं करता बल्कि जो नाजायज काम करते हैं उसके पैसे अलग से लेते हैं। पगार अलग, नाजायज पैसा अलग और उनके काम का खामियाजा जनता भुगत रही है। मुकदमा कम होंगे और अपने जीवन का अमूल्य समय कोर्ट में बर्बाद नहीं होगा।दूसरी तरफ फायदा या होगा कि जो वकील सड़क पर घूम रहे हैं उनका समायोजन हो जाएगा, देश आगे बढ़ेगा, तरक्की करेगा और नियम से तरक्की करेगा। सरकार को चाहिए कि सिर्फ एलएलबी पढ हुए लोगों को ही लोग सरकारी नौकरी पर रखे।बाकी लोगों को बाय-बाय कहे खुशहाल देश के लिए बहुत जरूरी है खास तौर से थानेदारों ब निगम को।
वास्तव में देखा जाए तो सभी सरकारी विभागों को अपने नियम और कानून की जानकारी होनी चाहिए ऐसा ना होने से देश उसका खामियाजा भुगतना है अभी जो व्यवस्था है उस व्यवस्था के तहत देश की तरक्की तब तक संभव नहीं है जब तक कि सरकारी विभागों में काम करने वाले लोगों को अपने विभागों के नियम और कानून की जानकारी नहीं होगी इसके लिए जरूरी है कि एलएलबी पास हो उसे ही सरकारी नौकरी दी जाए।