लोकतन्त्र किसी के कर्मों का उत्तरदायी नहीं

democracyकेन्द्र में भाजपा सरकार के सत्ता में आने से पूर्व चुनाव प्रक्रिया प्रारम्भ होने के समय से ही जिन षड्यन्त्रों और प्रायोजित अफवाहों के तहत विपक्षी दलों द्वारा यथाशक्ति जितना श्रम किया गया उसमें अब तक कोई न्यूनता नहीं दिखाई दी। चुनावों में अनेक प्रकार के आरोप-प्रत्यारोप लगाये जाते हैं और यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया मानी जाती रही है। प्रारम्भ में जिस विचारधारा को लेकर हमारे संविधान का निर्माण किया गया, उसी के अनुरूप लोकतन्त्र चलाने का प्रयास किया गया। जबसे देश में भाजपा की राष्ट्रवादी विचारधारा को स्वीकृति मिलनी प्रारम्भ हुई और कांग्रेस तथा कांग्रेस समर्थकों के निरन्तर भ्रष्टाचार के कारण उनका पराभव होना प्रारम्भ हुआ, उसी समय से वितृष्णा की राजनीति उभरने लगी। मुद्दों के आधार पर संसद का गतिरोध तो समझ में आ सकता है किन्तु पूरी संसद को मात्र इसलिए ठप कर देना कि गत समय में हुए भ्रष्टाचारों को उनकी परिणति तक पहुँचाने का प्रयास सरकार द्वारा किया जा रहा है? अगस्ता सौदेबाजी में इटली की अदालत ने कथित दलाली के आरोपियों को सजा सुना दी है। यह विश्वविदित है। और यदि इटली में सजायाफ्ता इन अपराधियों ने दलाली देने की बात स्वीकार की है तो दलाली लेने वाला भी कोई न कोई होगा ही। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने यदि शुचितापूर्ण आचरण किया होता तो स्थिति यहाँ तक आने का प्रश्न ही नहीं उठता। सौदेबाजी कांग्रेस शासन के दौरान हुई अतः स्वाभाविक रूप से तत्कालीन शासन-प्रशासन के ही किसी अंग को इसका लाभ प्राप्त हुआ होगा। यदि कांग्रेसी नेताओं को अपने हाईकमान की प्रतिष्ठा की चिन्ता होती तो वे इसमें लिप्त लोगों के विषय में सूचना देते और जाँच प्रक्रिया में सहयोग करते। ऐसा नहीं होने पर सन्देह की सुई केवल सशक्त लोगों की ओर ही संकेत करती है क्योंकि उनकी स्वयं की संलिप्तता के कारण ही संसद में शोर मचाकर ‘उल्टा चोर कोतवाल को डांटे’ की स्थिति उत्पन्न की जा रही है। जनता का ध्यान भ्रष्टाचार के इन बड़े मुद्दों से भटकाने का निरन्तर प्रयत्न किये जाते हैं, अनावश्यक तथ्यों का तूल देकर जांच को दिग्भ्रमित करने के भी प्रयत्न किये जाते हैं। कुत्सित राजनीति इस प्रकार पैर पसार चुकी है कि दिल्ली जैसे छोटे से प्रदेश की जनता प्यास बुझाने के प्रयास में जीवन से हाथ धो रही है और दिल्ली के दरियादिल बादशाह महाराष्ट्र के विशाल क्षेत्रों की प्यास बुझाने का दम्भ भर रहे हैं। जनता आज तक नहीं समझ पाई कि दिल्ली की पूर्व मुख्यमन्त्री के विरुद्ध 300 से अधिक पृष्ठों वाले भ्रष्टाचार के सबूतों का क्या हुआ, जिसे सत्ता में आते ही जेल के पीछे भेजने का संकल्प था वह अब तक निश्चिन्त बाहर हैं, तब तक उसे यह भी समझने में माथापच्ची का विषय दे दिया गया कि सोनिया गांधी को सरकार क्यों बचा रही है। जो सरकार पूर्व सरकार के शासन काल में हुए भ्रष्टाचार को एक-एक कर उजागर करने के प्रयत्न में लगी है वह अपने ही प्रयत्नों पर पानी फेरते हुए अपने ही उजागर किये गये भ्रष्टाचारी को बचाने का प्रयास करेगी? यह किसी प्रदेश के मुखिया जैसी गम्भीरता न होकर किसी बच्चे का खिलौना पाने के लिए निरर्थक मढा गया वक्तव्य है, इससे अधिक कुछ नहीं। दिल्ली की सरकार ने यह अब तक नहीं बताया कि समस्त प्रमाणों को रहते हुए भी पूर्व मुख्यमन्त्री को जेल में क्यों नहीं डाला गया। देश से जुड़े संवेदनशील मुद्दों पर बचपना नहीं गम्भीरता का प्रदर्शन करना चाहिए। सदैव नकारात्मक राजनीति देश को तो अपमानित करेगी ही, ऐसे नेताओं की विश्वसनीयता भी कम होगी। सम्पूर्ण कांग्रेस परिवारवाद से ऊपर नहीं उठ पा रही है जिसके कारण अन्धभक्ति का वातावरण बना है और देश के प्रति कर्तव्य और अकर्तव्य का बोध भी लुप्त होता जा रहा है। एक शेर है :
दुश्मनी जम के करो, पर इतनी गुंजाइश रहे
फिर कभी मिल जायें तो आपस में शर्मिन्दा न हों।
भाजपा के प्रति इतनी वितृष्णा और क्षोभ लेकर जीने का परिणाम ही कांग्रेस को निरन्तर नीचे की ओर ले जा रहा है। जो पार्टी देश और देशवासियों के अतिरिक्त अन्य कोई चिन्तन ही नहीं करती, परिवारवाद का, सामन्तशाही का, निरंकुशता का समग्र विरोध करने वाली पार्टी पर अनर्गल और आधारहीन आरोप लगाकर कांग्रेस तो क्या देश की कोई भी पार्टी अधिक समय तक अपनी विश्वसनीयता नहीं बनाये रख सकती।
कहा जा रहा है कि लोकतन्त्र बचाओ, लोकतन्त्र की हत्या हो रही है। निश्चित रूप से लोकतन्त्र की हत्या हो रही है और इसे बचाने की आवश्यकता है। कांग्रेस का जो लोकतन्त्र है वह क्षत-विक्षत हो चुका है, उसे बचाने का प्रयास उन्हें करना ही चाहिए। भाजपा की केन्द्र सरकार संविधान में वर्णित लोकतन्त्र के अनुसार ही चल रही है और उसी लोकतन्त्र का अनुपालन कर रही है। जनता का अधिकार जनता को देने के लिए पूर्ण मनोयोग से प्रतिबद्ध है। आप अपना लोकतन्त्र बचा पाने की स्थिति में हों तो अवश्य बचाइए अन्यथा कांग्रेस का नाम केवल इतिहास की विषय-वस्तु ही रह जायेगा।

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