महिलाओं को सशक्त करना हर एक की जिम्मेदारी : संजय जोशी

1भारतीय संस्कृति में कहा गया है “यत्र नार्यस्तु पुजयन्ते रमन्ते तत्र देवताः”, जहां नारी की पूजा होती है, वहां पर देवता भी वास करते हैं। हमारे देश का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। हमारे धार्मिक और पौराणिक ग्रंथों में महिलाओं को पुरूषों के समक्ष बराबर का दर्जा दिया गया है और यहां तक कि कई स्थानों पर तो उन्हें पुरूषों से भी ऊपर स्थान दिया गया है। किन्तु आज महिला-उत्पीड़न की कई घटनाएं मन को विह्वल कर देने वाली हो गई हैं। पीड़ा इसलिए क्योंकि केवल कानून बनाकर हम महिलाओं को सशक्त और समर्थ नहीं बना सकते, हर एक की सामाजिक जिम्मेदारी है। वह सामाजिक जिम्मेदारी हमारी बहन, बेटियों को शिक्षित करने से लेकर उन्हें सामाजिक सुरक्षा और पारिवारिक नैतिक बल प्रदान करने तक का है।

सर्वविदित है कि देश पर 55 वर्षों से अधिक कांग्रेस ने शासन किया है। और यह भी किसी से छिपा नहीं है कि कांग्रेस जब-जब सत्ता में आई, घोटाला, बेरोज़गारी, महिलाओं की असुरक्षा… सारी समस्याएं और गहराती चली गईं। समस्याओं की इतनी लंबी परिपाटी को एक क्षण में पाटा भी नहीं जा सकता। आज देश के समक्ष कई बड़ी समस्याएं और चुनौतियां हैं, उनमें सबसे प्रमुख चुनौती महिलाओं के प्रति बढ़ रहा अत्याचार और उनका शोषण है। शोषण और अत्याचार का कोई स्वरूप नहीं है बल्कि इसके अनेक स्वरूप हैं, जैसे- दहेज के लिए महिलाओं पर हो रहा अत्याचार; बलात्कार एवं सामूहिक बलात्कार; लड़कियों और महिलाओं पर तेजाब फेंकना; ऑनर किलिंग; लड़कियों और महिलाओं की खरीद बिक्री और जबरन वेश्यावृत्ति; तथा घरेलू हिंसा।

यूपीए शासनकाल के दौरान एनसीआरबी द्वारा जारी तीन साल के आंकड़ों ने महिलाओं के खिलाफ हुए अपराधों में लगातार बढ़ोत्तरी के बारे में बताया था। विश्व में हमारी बदमानी हुई। कांग्रेस नेतृत्व में पहले के शासनकाल में इस तरह की घटनाक्रमों की बात तो छोड़ दीजिए, केवल 2011 में 2,28,650; 2012 में 2,44,270 एवं 2013 में 3,09,546 अपराध हुए। लेकिन भाई नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में देश में जिस तरह से महिलाओं की सशक्तिकरण पर काम हुआ है, वह वाकई गर्व की बात है।

आज महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में भारत की वैश्विक रैंकिंग सुधरी है। पिछले वर्ष के 114वें स्थान के मुकाबले इस साल वह 108वें स्थान पर पहुंच गया है। वैसे लिंग भेद खत्म करने यानी महिला-पुरुष गैर-बराबरी समाप्त करने के मामले में आइसलैंड पूरी दुनिया में अव्वल है। इसके बाद नार्वे और फिनलैंड का नंबर है। लेकिन जिस हिसाब से अब तक एनडीए के करीब 19 महीने के शासनकाल में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, जन-धन योजना, स्वच्छ भारत जैसी योजनाओं की शुरुआत हुई है, उसे देख यही लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब भारत की हर एक बहन-बेटी अपने हक के लिए प्रतिबद्ध होगी।

पहली बार हमारे वित्त मंत्री व हमारे प्रधानमंत्री जी ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक अलग से निर्भय कोष का प्रावधान रखा है, जिसमें पहली बार 150 करोड़ रुपये चयनित जिलों के लिए रखे गये हैं, जिससे अगर महिलायें तकलीफ में हों तो ट्रैकिंग सिस्टम द्वारा उनको राहत पहुंचाई जाये। यही नहीं, हमारे वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री जी ने 2014-15 के बजट में बच्चों के विकास के लिए 81075 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा है। इसमें 18,691 करोड़ रुपये इंटीग्रेटिड चाइल्ड डेपलपमेंट, 100 करोड़ रुपये ” बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ” के लिए, 715 करोड़ रुपये नेशनल मिशन फॉर एम्पॉवरमेंट ऑफ वूमेन और 400 करोड़ रुपये इंटीग्रेटिड चाइल्ड प्रोटेक्शन स्कीम के लिए रखे गये हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि हमारे प्रधानमंत्री जी महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए चिंतित है।

2014 के बजट में माननीय प्रधानमंत्री भाई नरेन्द्र मोदी जी ने शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा पर धन देकर निर्भया फंड का उचित उपयोग पीड़ितों को मदद देकर, फास्ट ट्रेक कोर्ट द्वारा त्वरित न्याय देने का प्राविधान किया, जो स्वागत योग्य रहा।

एक बात और कि महिलाओं को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने के लिहाज से भारत का रिकार्ड बेहद शानदार है। इस मामले में देश का पूरी दुनिया में 9वां स्थान है। यही कारण है कि पिछले वर्ष के मुकाबले भारत की रैंकिंग में लगातार सुधार देखने को मिला है।

अभी केंद्र सरकार में सुषमा स्वराज, स्मृति ईरानी, मेनका गांधी, नजमा हेपतुल्ला, उमा भारती, हरसिमरत कौर बादल और निर्मला सीतारमण के रूप में महिलाओं की उपस्थिति दर्ज है। इसी प्रकार तमिलनाडु, राजस्थान, गुजरात और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की कमान महिला मुख्यमंत्रियों के हाथ है।

निस्संदेह, ये कार्य केवल किसी सिस्टम, सेंटर या सरकार का ही नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति का भी है जो हमारे लिए एक स्वस्थ समाज का निर्माण करते हैं। आइए दो कदम साथ चलें, हमारे देश की सुसंस्कृत गरिमा रही है। इसे सजाना, संवारना है, सींचना है, संचित बुराई नहीं अच्छाइयों को करना है… ये देश सोने की चिड़िया तभी बनेगी। ‘सबका साथ सबका विकास’ का नाम भी तभी फलीभूत होगा, जब सब साथ आएंगे। एक स्वर में कहेंगे- बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ…

 

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