यूपी की राजनीति में बड़ा बदलाव होने वाला है पिछले दिनों दिल्ली के कान्च्यूसन क्लब में कांशीराम के भाई दरबारा सिंह के अगुवाई में नया मोर्चा दलित आंदोलन के नाम से बनाने की पहल की गयी जिसे उत्तर प्रदेश में मायावती की उल्टी गिनती शुरू हो गयी एैसा कहा जा रहा है। कितना कारगर होगी यह समय बतायेगा लेकिन मायावती को इस पूरे प्रकरण से दोचार तो होना ही पडेगा क्योंकि सेंध उनके दलित वोटों में है जिसे लेकर वह डंके की चोट पर बात करती है।
मायावती का तख्तापलट करने के लिए दलित, मुसलमानों और ओबीसी के 16 संगठन एक साथ आ गए हैं। बहुजन समाज पार्टी के पूर्व नेताओं के नेतृत्व में दिल्ली में एक मीटिंग आयोजित की गई थी हांलाकि बहुत कारगर नही हुई कुछ दलों ने सभी को लेकर बात की और कुछ दलित तक ही सीमित रहना चाहते थे इसलिये उन्होंनें किनारा कर लिया लेकिन इस बीच इस बैठक में मायावती का तख्तापलट करने का एजेंडा तैयार किया गया। इन सभी संगठनों को एक मंच पर लाने का काम बीएसपी के पूर्व नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने किया है। नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने नेशनल बहुजन एलायंस (राष्ट्रीय बहुजन गठबंधन) की स्थापना की। साथ ही एक समन्वय समिति का भी गठन किया गया। इसका संयोजक बीएसपी के पूर्व एमपी प्रमोद कुरील को बनाया गया। इस दौरान कुरील ने कहा कि वह अभी बीएसपी में हैं लेकिन मायावती को अपने नेता के रूप में नहीं देखना चाहते। वह मायावती का साथ छोड़ना चाहते हैं। कुलमिलाकर यह अंबेडकर व कांशीराम की फौज है जो सवर्णो केा मंच से गाली देकर मायावती को हटाकर खुद उस राह पर चलना चाहती है।
यहां यह बता देना उचित होगा कि पिछले महीने राज्यसभा से मायावती ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया था कि उन्हें दलितों की बात रखने की इजाजत नहीं दी जा रही है। यूपी विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद मायावती ने नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पार्टी से बाहर कर दिया था।बीएसपी से बाहर होने के बाद सिद्दीकी के अगले कदम पर नजरें थीं कि वह क्या करेंगें। नसीमुद्दीन सिद्दीकी के करीबी और कुछ बीएसपी के विधायकों ने बताया कि बीजेपी उनके संपर्क में है। दिल्ली में संविधान क्लब में ऐसे समय में मीटिंग की गई जब संसद सत्र चल रहा है और इसमें सुझाव दिया गया है कि दलित राजनीति में विकास की गति तेज हो।
अलग अलग राज्यों के राजनीतिक और गैर राजनीतिक 16 संगठन एक जगह इकट्ठा हुए। हम सर्व समाज का एक संयुक्त मोर्चा तैयार करेंगे और चुनाव लड़ेंगे। कुरील ने कहा कि मायावती की असलियत समाने आ चुकी है। हाल ही में मायावती को कई नेताओं ने छोड़ा है लेकिन वह संगठित नहीं हैं। वे सभी नेता खुद को काशीराम का फॉलोअर बताते हैं लेकिन अकेले काम कर रहे हैं। इसलिए उन्हें एक साथ लाने की जरूरत थी। हमारा मुख्य उद्देश्य बहुजन समाज को एक पहचान और विकल्प देना है।
मायावती का इतिहास बनने जा रहा है और वह भाजपा नही बल्कि उनके ही लोग बना रहें है जो अब तक उनके साथ रहे और हार की बौखलाहट के बाद पार्टी की मुख्यघारा से बाहर कर दिये गये अब नया दलित संगठन बनाकर दलित वोटों में सेंध लगा रहें हैं। यह बहुजन की नयी दिशा तो तय करेगा ही साथ ही दलितों के लिये नयी राह भी खोलेगा।