MTNL व BSNL का लाभ

पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लालकिले के प्राचीर से कहा कि अब तक हमेशा घाटे में चल रहे दो PSU BSNLव MTNL ने पहली बार फायदा दिया है। यह काबिलेगौर बात है तो इसका मतलब यह हुआ कि यह दोनों संस्थान बनने के बाद से अब तक घाटे में चल रहे थे और सरकार इसे बनाये हुए थी। यह फायदे में पहले भी आ सकते थे लेकिन कुछ तकनीकी दिक्कतों व अधिकारियों की लालच के चलते नही आ सके।सभी चीजों को लेकर दलाली का बाजार गर्म रहा, नेटवर्क,लैडलाइन , कनेक्शन ठीक करने व नये कनेक्शन देने सभी के नाम पर दलाली का बाजार पहले भी चल रहा था आज भी बदस्तूर जारी है।कहा गया था कि बीएसएनएल व एमटीएनएल में रोमिंग फ्री होगी लेकिन दूसरे राज्य में जाते ही रोमिंग फ्री क्या , वहां तो नेटवर्क ही नही रहता या फिर जानबूझकर जनता को गुमराह किया जा  रहा है और उससे वसूली की जा रही है। इन सभी दिक्कतों के चलते आज इन उपक्रमों को उपभोक्ता के लिये रोना पड रहा है। जहां तक फायदे की बात है तो वह इससे नही आये बल्कि इनके संचार माध्यमों को किराये पर देने से आये है यह बात किसी से छिपी नही है।

सबसे पहले BSNL पर निगाह डालते है तो मोबाइल सेवा इसकी सबसे खराब है।जबकि लैडलाइन सर्विस ठीक न होने के कारण लगातार उपभोक्ता मुंह मोड रहे थे इसलिये यह घाटे में चल रहा था। अधिकारी इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि सेवायें ठीक कर दी गयी तो प्राइवेट कम्पनी कहां से पनपेगी और उसे तनख्वाह के अलावा मिलने वाली राशि कहां से मिलेगी। इसलिये बडे ही सुनियोजित तरीके से BSNL के कर्मचारियों ने विभाग को पलीता लगाया। वह BSNL के लिये नही बल्कि प्राइवेट कम्पनियों के लिये काम करते रहे और पगार सरकार से लेते रहे। आखिरकार तंग आकर लोगों ने अपने घरों मे प्राइवेट कम्पनियों को जगह देकर BSNL को बाय बाय कह दिया।सरकार को चाहिये कि सही मायने में इसे लाभ में लाना है तो मोबाइल कनेक्शन को तत्काल एक्टिवेट करने की व्यवस्था कराये और लैडलाइन ठीक करने के लिये समय तय करे। अभी शुक्रवार का मोबाइल कनेक्शन मंगलवार को चालू होता है और लैडलाइन खराब हो जाये तो भी यही हाल है , वह भी मंगलवार को ही बनता है वह भी देर शाम तक। विज्ञापनों पर कनेक्शन मिल तो सकते है लेकिन वह टिकेगें कैसे ? इस पर पालिसी बनना चाहिये।

इतना ही नही BSNL के साथ एक बात और थी जो लोग कनेक्शन ठीक करने का काम कर रहे थे उनकी उम्र 35 से उपर होते ही वह अपना काम शर्म से बंद कर देते थे। उनका इलाज खोजे,जिसके कारण लोगों ने दूरी बनायी , कुछ ने अपने नीचे प्राइवेट तौर पर काम करने के लिये विभाग को बताकर आदमी रख लिये जिन्हें वह अपनी पगार का कुछ हिस्सा देते थे और वही लोग उनके काम के नाम पर गढ्ढों केा खोदने , पोलों पर चढने का काम करते थे ।काम उनका, नाम होता था इनका , विभाग मौन इसलिये था कि उसके जेब से अतिरिक्त कुछ नही जा रहा है। हमेशा स्टाफ का रोना बना रहता था।दूसरी सबसे बडी बात सरकार की स्थानान्तरण नीति , लाइनमैनों के स्थानान्तरण की नीति थाने के मुंशी जैसे ही है , उन्हें सिर्फ इसलिये बनाये रखा जाता है ताकि आमदनी के स्रोत का पता चलता रहे।

अब बात MTNL की करते है। इसकी जरूरत नही थी एक ही BSNL काफी था लेकिन उपरी कमाई बढाने के लिये MTNL बनाया गया। केन्द्र शासित राज्यों में राज्य का दायरा फिक्स होता है और बाहर स्थानान्तरण नही होता इसलिये लोग मौज कर रहे थे और लगातार सरकार को पलीता लगा रहे थे ,जो बेसिक अंतर था वह यह था कि MTNL में कमाई का स्रोत बना रहता था उसे बनाने का प्रयास नही करना पडता था और BSNL में कई भी भेजें जाने पर नये सिरे से इसका जुगाड करना पडता था। MTNL में सहयोग था BSNL में आपसी सहयोग नही था। निगम होने के बाद कुछ परिवर्तन आया लेकिन इतना नही है कि उससे देश आगे जा सके अभी भी दोनों उपक्रम में तकनीकी खामियां है जैसे नेटवर्क की दिक्कत , लोगों की समझ में अभी तक नही आया कि अन्य कम्पनियां जो इसी नेटवर्क पर चल रही है , काम करती है ये क्यों नही करते । इसी तरह जहां दूसरी लैडलाइन है वहां इनके लैडलाइन काम क्यों नही करते।इनके निचले कर्मचारियांे के तबादले दूसरे केन्द्र शासित राज्यों में क्यांे नही होते वगैरह वगैरह।

फिलहाल सरकार को चाहिय कि ताम झाम करने के बजाय MTNL व BSNL को एक कर देना चाहिये , ताकि दोनों के बजाय एक को ही संभालना पडे और देश केा एक ही व्यवस्था हर जगह मिल सके।कर्मचारियों को भी तकलीफ न हो कि बीएसएनएल वाला देश में कही भेज दिया जाता है और MTNL वाला एक ही जगह पर, साठ किलोमीटर के दायरे में मौज ले रहा होता है जबकि दोनों के काम करने का तरीका एक है।तीसरी बात इन उपक्रमों के कर्मचारियों को रहने के लिये मकान मुहैया कराये जाते है , उनमें किरायेदार रखे हुए है और खुद अपने घरों में रहते है यह भी एक बडा घोटाला MTNL में इसलिये है क्योंकि केन्द्र शासित राज्यों में दायरा कम है जहां मकान बना लेने से काम किया जा सकता है और सरकारी क्वार्टर लेकर आराम से उंचे दामों पर किराये पर दिया जा सकता है।जिसमें विभाग की मिलीभगत होती है क्योंकि हमाम में सभी नंगे है।हलाकि यह काम होता हर विभागांे में है लेकिन MTNL में कुछ ज्यादा इसलिये है कि जीएम लेबल के लोग इस काम में शामिल है और उनका कमीशन बंधा है।

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