काबुल जीतने के बाद मुगल सम्राट जहांगीर ने अब्दुर्रहीम खानखाना से कहा “युद्ध में आपकी वीरता से मैं बहुत खुश हूं। बताएं इनाम में आपको क्या चाहिए?” यह सुनकर खानखाना सोच में पड़ गए और धीरे से बोले “जहांपनाह! अगर आप मुझसे प्रसन्न है तो आपके राज्य में गौ- हत्या कभी ना हो। जहांगीर ने हैरत से पूछा-” अरे रहीम जी! आपने यह क्या मांगा न धन, न पद, न, जागीर और गौ रक्षा की भीख मांग ली।” खानखाना ने जवाब दिया “जहांपनाह गाय से ज्यादा पूज्य हमारी संस्कृति में क्या है। उसकी रक्षा होने पर हमारा अस्तित्व और सांस्कृतिक अस्मिता बरकरार रहेगी।” तभी जहांगीर ने अपने राज्य में गौ हत्या पर पाबंदी लगा दी।
बाबर ने 1526 में गो-कशी पर पाबंदी लगाई थी जिसका उसके बेटे हुमायूं ने पूरी तरह पालन किया था। अकबर के शासन काल में गौ और गोवंश के कत्ल पर शाही प्रतिबंध लगाए गए थे।
पैग़ंबरे इस्लाम की मशहूर राय है की “गाय का आदर करो क्योंकि वह चौपायों की सरदार है।” लखनऊ के धर्मगुरु मौलाना इरफान फिरंगी महली ने 29 अगस्त 2012 को गौ हत्या बंदी की मांग की थी। कुरान के जानकार इब्तेअनी और हाकिम अबू नईम खुद पैगंबर की उक्ति की चर्चा करते हैं कि; ” लाजिम कर लो की गाय का दूध पीना है, क्योंकि वह दवा है ,गाय का घी शिफा है और बचो गाय के गोश्त से क्योंकि वह बीमारी पैदा करता है।”
हजरत इमाम आज़म अबू अनीफा ने लिखा है कि-” तुम गाय का दूध पीने के पाबंद हो जाओ क्योंकि गाय का दूध अपने अंदर सभी तरह के पौधों के सत्व को रखती है।”
भारत में बाह्य आक्रमणों का एक सिलसिला रहा है तुर्को और अरबों के आक्रमणों के बाद से कहा जा सकता है की गायों पर अत्याचार शुरू हुए। वह केवल पराजितों को नीचा दिखाने के लिए और उनकी अस्मिता को ठेस पहुंचाने के लिए किया गया।
1921 में सूफी ख्वाजा हसन निजामी ने गोवध का विरोध करने वाली करने वाली ‘ तर्के-गोकशी’ नामक किताब लिखी। इन प्रतिष्ठित उलेमा ने अपने अनुयायियों से आग्रह किया था कि वह गौकशी से परहेज करें। इस पर उन्हें मौलाना अबुल आला मौरदी जैसे कट्टर उलेमा का विरोध झेलना पड़ा तथा उनके खिलाफ फतवा जारी किया गया।