कतिपय विरोधियों की कल्पना से परे जिस दिन भाजपा सत्तासीन हुई उसी समय से विपक्षी दलों के हृदय में प्रतिशोध की ज्वाला और भी अधिक तीव्रतर होनी प्रारम्भ हो गयी। नवाबी वंशानुक्रम से आन्दोलित विपक्ष को यह किसी भी मूल्य पर स्वीकार्य नहीं हो पाया कि भाजपा का प्रधानमन्त्री देश को विकास की ऊँचाइयों की ओर इतनी तेजी से कैसे अग्रसर कर रहा है. न सरकार पर कोई भ्रष्टाचार का आरोप लग रहा है और न कोई घोटाला ही हो रहा है। तो आखिर किया क्या जाये? जब सारे प्रयास निष्फल हो गये तो उनकी राजनीति शवों की ओर केन्द्रित हो गयी। शायद इससे देश की जनता के प्रति सहानुभूति दिखाने और उसकी सहानुभूति प्राप्त करने में सफलता मिल जाये। आज जिधर भी दृष्टि डालें वहाँ दिखाई देगा कि मात्र ऐसे शवों को राजनीति का उपकरण बनाया जा रहा है जो उनकी राजनीतिक सहानुभूति के लिए अनुकूल हो। रोहित वेमुला का शव हो, कलबुर्गी का शव हो, हरियाणा के जुनैद का शव हो या फिर अभी हाल में बेंगलुरू में गौरी लंकेश का शव हो। जैसे ही इस प्रकार की कोई मृत्यु या हत्या होती है तुरन्त बिना किसी बिलम्ब के कांग्रेस.वामदल समूह के साथ देश के अनेक भ्रष्टाचारी दलों के नेता अपनी.अपनी तलवारें लेकर भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर टूट पड़ते हैं। जब इन दलों के सम्मुख देश की अनेक ज्वलन्त समस्याओं में से कुछ भी दिखाई नहीं देता तो ये शवों की राजनीति के सरलतम मार्ग की ओर दौड़ पड़ते हैं। क्या पता इसी मार्ग से भागती हुई सत्ता की पूँछ पकड़ में आ जाये। किन्तु बेशर्मी इतनी कि सच्चाई जानते हुए भी शुतुरमुर्ग की भाँति निरन्तर आत्महत्या की ओर बढ़ते चले जा रहे हैं। असामयिक मृत्यु किसी भी देशवासी की होए देश के पालक के लिए कष्टकारी ही होती है। लेकिन इन संवेदनाशून्य कांग्रेस.वामदलों को मात्र अपने अस्तित्व की चिन्ता खाये जा रही है। जिस दिन गौरी लंकेश की हत्या की गयी उसी दिन बिहार में एक अन्य पत्रकार आदित्य सचदेवा को गोली मारी गयी। सौभाग्य से वह बच गये। घटनाएं समवर्ती हैं किन्तु आदित्य सचदेवा के प्रति सहानुभूति जताने से इन दलों को कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिलने वाला था इसलिए यह घटना इन दलों के लिए कोई महत्त्व नहीं रखती। गौरी लंकेश की हत्या उस राज्य में हुई जहाँ कांग्रेस की सरकार है। यह निष्कर्ष निकालने में किसी प्रकार की जटिलता नहीं कि यदि इन लोगों को अपनी अनुकूलता के अनुसार कोई शव मिल जाये तो ये खेलना प्रारम्भ कर देते हैं। ये लोग केरल में RSS कार्यकर्ताओं की निरन्तर हत्या पर मौन साध लेते हैं. ये पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं के सामूहिक नरसंहार पर रंचमात्र विचलित नहीं होते हैं, ये लोग ताबूत में बन्द देश के सैनिकों के आने वाले शवों पर कोई संवेदना नहीं प्रकट करते हैं, ये लोग घोटालों पर व्यक्ति विशेष को दल से ऊपर मानते हुए उनके समर्थन में विलाप करते हैं। इन्हें सहानुभूति है लालू परिवार, मुलायम परिवार, हुर्रियत कांफ्रेंस, बुरहान बानी और कसाब जैसे लोगों से।
देश बदल रहा है और जनता का मिजाज भी बदल रहा है। अगर अब भी अपनी इन हरकतों से ये बाज नहीं आते हैं तो ये स्वयं मिटने की ओर अग्रसर हो रहे हैं। घिसी पिटी पुरानी षाड्यन्त्रिक राजनीति अब इतनी पुरानी हो चुकी है कि देश का बच्चा-बच्चा भी इसे सरलता से समझ सकता है। जिस प्रकार बिना किसी प्रमाण और साक्ष्य के गौरी लंकेश की हत्या का आरोप इन कांग्रेस और वामदल समर्थित विवेकहीन लोगों ने भाजपा और RSS पर लगाया है, क्या इसका यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि इस प्रकार का आरोप लगाने वाले ये नेता या उनके समर्थक स्वयं इस प्रकार के कुछ सुनियोजित षड्यन्त्र करके भारत सरकार को अस्थिर करने, देश को प्रगति की राह पर ले जाने वाली भाजपा को बदनाम करने का असफल प्रयास करने और RSS की अविचल राष्ट्रवादिता को झंकृत करने का प्रयास नहीं कर रहे? यह भी जाँच का विषय है। प्राय: देखा गया है कि अपराधी स्वयं ही सबसे पहले चिल्लाना प्रारम्भ कर देते हैं ताकि उनके ऊपर कोई सन्देह न कर पाये। ऐसा न हो कि ऐसे लोग अपने सूत्रों के माध्यम से ऐसी घटनाओं को अंजाम देकर और स्वयं पहले प्रलाप कर मात्र सहानुभूति बटोरने के क्रम में ऐसे जघन्य कृत्य कर रहे हों। कश्मीर में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है कि आतंकवादियों को बचाने के लिए सैनिकों पर पत्थर फेंके जाते हैं जिनके लिए अलगाववादी नेताओं द्वारा धन मुहैया कराये जाने की घटनाएँ सामने भी आ चुकी हैं। तात्पर्य यह है कि अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए कहीं ऐसे आवरणों का आश्रय तो नहीं लिया जा रहा है जिससे ये षड्यन्त्रकारी एक तीर से दो निशाने लगाने का प्रयास कर रहे हों। निश्चय ही ऐसे प्रकरणों को राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के हवाले करके सत्य को उजागर करना होगा ताकि इन सफेदपोश लोगों की वास्तविकता जनता के सम्मुख आ सके।