भारत में प्रकृति ने सबकुछ दिया है लेकिन हम उसका विस्तार क्यों नही कर पा रहे है यह आज तक एक पहेली बनी हुई है। अच्छे नीयत से उसका विस्तार किया जाय तो यह देश के लिये आय का जरिया बन सकता है और लाखों लोग किसी न किसी तरह इससे रोजगार पा सकते है। प्राकृतिक पठार इस मामले में अच्छी भूमिका निभा सकते है किन्तु उन पर अभी भी कोई काम नही हो रहा है। अमूनन अब तक जम्मू कश्मीर के बारे में ही लोग जानते है और कुछ लोग शिमला, मसूरी , मुक्तेशवर आदि जगहों पर जाते है लेकिन देश में कई ऐसे पठार है जो इनकी तरह तो नही है लेकिन इनसे कम भी नही हैं। जैसे तमिलनाडू का कोटलिम , झारखंड का रांची , बंगाल का मिरिक , उत्तराखंड का भुवाली आदि है। यह बेहद खूबसूरत है लेकिन देश के भीतर ही कम लोग जानते है तो बाहर वाले अन्य देश के निवासी कैसे जानेगें।
जम्मू कश्मीर का श्रीनगर व गुलमर्ग देश का सबसे अच्छा इलाका है और सबसे ज्यादा पर्यटक वहां आते है लेकिन पिछले कुछ दशकों से यह आतंक की भेंट चढ गया है इसलिये लोग अब वहां कम जाते है। इसका देश पर गहरा असर भी पडा है। उन्होंने इसकी जगह पर बंगाल के दार्जिंिलंग , हिमाचल प्रदेश के शिमला,सोलन , कूल्लू घाटी, मंडी, धर्मशाला व मनाली की ओर रूख कर लिया है जो प्राकृतिक दृष्टि से खूबसूरत तो है ही साथ ही यहां के लोगों के लिये नयी सरकार बनकर उभरे है जिसने इन्हें रोजगार दिया और जीने का सलीका बताया। कुछ लोगो को अपना प्रदेश पसंद है इसलिये तमिलनाडु वाले कोडाईकनाल व कूंन्नूर ,सिक्किम वाले गंगटोप व उत्तराखंड वाले मसूरी चले जाते है, यह जरूरी भी था अगर हर राज्य अपने प्रदेश वासियों के लिये इस तरह का विकास करे तो पूरा देश इससे खूबसूरत बन सकता है और इससे उसकी खूबसूरती में निखार आ सकता है। तमिलनाडु में ही उटी है लेकिन वहां पठार नही है घाटियां है और पहाड़ है। जो सभी को प्रिय है। सबसे खास बात यह है कि देश के सभी हिस्सों में इनको जाना जाता है लेकिन कुछ ऐसे जगह है जहां अभी लोगों का ध्यान नही गया है।
ऐसी जगहों में उत्तराखंड का नाम सबसे आगे है , यह आधुनिक जम्मू कश्मीर है जो कि अब प्रचार में आया है। मसूरी व नैनीताल यहां के मुख्य पर्यटक स्थल है लेकिन अब रानी खेत , लैंसडाउन, मुक्तेश्वर व भूवाली ने अपना स्थान इसी क्षेत्र में बनाना शुरू किया है और अब आने वाले समय में वह पसंदीदा क्षेत्र देश के लोगों का बन रहा है। पिछले दिनों भूखस्लन व बर्फीले तूफान से यहां काफी क्षति हुई लेकिन यहां के लोगों ने इसे पर्यटन हब बनने दिया और यही कारण है कि तबाही के बाद भी आज तक यह पर्यटन का सबसे बड़ा क्षेत्र बना हुआ है। इसी तरह तमिलनाडु भी पर्यटन में आगे निकल रहा है और अब वहां कोडाईकनाल के अलावा कोटलिम, उंटी ,कोटगिरि, येरकार्ड , आदि को नयी उंचाईयां मिल रही है, फिल्म जगत भी इस जगह को काफी पसंद कर रहा है। इसी तरह झारखंड का रांची आगे निकल रहा है यहां पर्यटन के तमाम संसाधन है जिसे और विकसित करने की जरूरत है। इसके अलावा गया , हजारी बाग , पलामू , चन्द्रकांता का क्षेत्र सोनभद्र पर्यटन स्थलों में आगे निकल सकता है जहां पहाडी भी है और पठार भी , लेकिन अभी तक उसपर किसी सरकार ने ध्यान नही दिया।
इसी क्रम में बंगाल के कालिंम्पोंग को विकसित किया जाना था लेकिन वहां की सरकार इसे विकसित नही करना चाहती , कर्नाटक के केमानगुडी व नंदी हिल्स पर काम हो सकता था लेकिन अभी तक नही हुआ। मध्य प्रदेश के पंचमढी, विध्य पर्वतमाला के अमकंटक व सोहागी की पहाड़ियों, , चंबल के पठार पर काम होना था लेकिन सरकार ने अभी तक कुछ नही किया , महाराष्ट्र के खंडवा ,पंचगनी, महाबलेश्वर व लोना वाला को विकसित किया जा सकता है परंतु अभी तक नही हुआ। राजस्थान के माउंटआबू व गुजरात के सपूतारा को विश्व में अपवाद स्वरूप पेश किया जाना था लेकिन कुछ नही हुआ । केरल के पेरियार व मन्नार पर किसी की नजर नही गयी, यह प्रदेश क्षेत्रीय आतंक के कसीदे पढ रहा है यहां रोजगार होता तो लोग अरब देशो की ओर रूख क्यों करते। मेघालय के शिलांग को भी इसी पृष्ठ भूमि के लिये तैयार किया गया था लेकिन अभी तक कुछ काम नही हो पाया। सबकुछ भगवान भरोसे चल रहा है।
हमारे देश की सबसे बडी बिडम्बना है कि हम सभी प्राकृतिक स्थलों को तभी महत्व देते है जब वह हमारे पुराणों व कर्मकांडो से जुडा हो जैसे गया में पितृविर्सजन व मोक्ष का काम होता है , केदार नाथ, बद्रीनाथ हिन्दुओं के तीर्थ है इसलिये यहां आने वाले लोगों की संख्या देश में ही ज्यादा है हमें स्वर्ग से कुछ लेना नही है हम उस जगह पर जाना चाहते है जहां कि हमें धार्मिक शांति मिले। यदि हमने पवतीय पठारों पर विदेशियों की तरह ध्यान दिया होता तो आज हमारा देश विश्व का सबसे बडा पर्यटन केन्द्र होता लेकिन नही हम इस बारे में कुछ ही आगे बढ़ सके। भविष्य की अपार संभावनाओं को देखते हुए देश व प्रदेश की सरकारें इस दिशा में सार्थक प्रयास करें।