निर्धनता और बेरोजगारी पर काम करने की जरूरत

Untitledकेन्द्र सरकार को निर्धनता व बेरोजगारी पर अपनी नीति शीघ्र स्पष्ट कर देनी चाहिये। क्योंकि देश में लोग दिन ब दिन निर्धन होते जा रहे है। एक ओर जहां अपनी मूल भूत आवश्यकताओं को पूरा कर पाने में लोग अक्षम है वही कुछ लोग अपनी जरूरतों से ज्यादा पैसा बर्बाद कर रहे हैं। एक ही देश में दो तरह की व्यवस्थायें क्यों है।
इस निर्धनता के मापने को दो पैमाने अब तक इस देश में है।पहला निपेक्ष निर्धनता , जिसके अन्तगर्त उन लोगों को रखा जाता है जिसके पास संसाधन नही होते वह गरीब कहलाता है , दूसरा सापेक्ष निर्धनता है जिसमें उच्च आय व निम्न आय की तुलना की जाती है और निर्धनता का पैमाना तय किया जाता है। इन दोनों विधियों पर पुनः विचार की जरूरत है और यह इसलिये भी आवश्यक है कि जीविका व विषमता से देश तरक्की के पथ पर नही जा सकता ।इसी तरह वेतन विसंगतियों प्राइवेट व सरकारी की इतनी ज्यादा है कि एक अलग वर्ग ही तैयार होता है जो सरकार के साथ है और दूसरा जो सरकार के बाहर हैं।आखिर एक ही देश में रहने वाले नागरिको के लिये अलग अलग कानून क्यों है। यह अन्याय क्यो है। किसने बनाया, क्या सोचा, यह जरूरी नही है हम आज के माहौल में इसे कैसे संयमित कर सकते है यह देखने की जरूरत है।
इस पूरे मामले पर सरकार को गौर करना चाहिये और यह सोचना चाहिये कि प्रदेश के जो लोग नौकरी कर रहे है वह चाहे सरकारी व प्राइवेट नौकरी में है उनके साथ मंहगाई व अन्य जरूरतो को कैसे समायोजित किया जाय। सरकारी नौकरी में रहकर जो तीस हजार से उपर की कमाई कर रहा है और जो सात आठ हजार रुपये की सरकार द्वारा न्यूनतम नौकरी कर रहा है । दोनो की जरूरत पूरी करने की क्षमता एक सी क्यों नही हैं ? यदि सरकार न्यूनतम मजदूरी की जो दरें निर्धारित करती है उसी का सरकारी नौकरी में भी लागू कर दे तो मंहगाई पर तत्काल अंकुश लग सकता है।क्योंकि दोनों की जरूरतों का पैमाना एक सा होगा।लेकिन पिछली सरकारों ने ऐसा नही किया , क्या यह नही लगता कि यह समाज को दो भागों में बांटने की पहल थी जिसे अब खत्म कर दिया जाना चाहिये।
इसी तरह से अगर केन्द्र सरकार , प्रदेश सरकार के बराबर वेतन दे तो देश के कामगारों के प्रतिशत में इजाफा हो सकता है। सबसे बडी बात तो यह है कि लोगों का रूझान अपने प्रदेश के प्रति होगा और समान होने से देश के साथ साथ प्रदेश का विकास होगा । दूसरी सबसे बडी बात यह है कि कई मसलों पर हो रही विषमतायें खत्म हो जायेगी । द्वेष खत्म हो जायेगा। इतना ही नही एक बडी समानता होगी जो देश को आगे ले जायेगी।
इसके अलावा सबसे बडी बात यह है कि वेतन की विसंगतियों दूर होगी तो देश मजबूत होगा। प्राइवेट व सरकारी नौकरी के बीच भागने से अच्छा है कि लोग नौकरी के पीछे भागे और काम करके दे। समान वेतन होने से मंहगाई पर भी अंकुश लगेगा। निर्धनता दूर होगी और समाज के अंदर स्वस्थ परंम्परा का निर्वहन होगा।हर नागरिक की मूल जरूरते पूरी होगी। खुशी व सौहार्द का वातावरण पैदा होगा।

Leave a Reply