कहना है कि कानून में एनकाउंटर जैसा कोई शब्द नहीं है। कानूनन यह एक हत्या है। एफआईआर होगी। लोगों को गलतफहमी है कि पुलिस एनकाउंटर कर बच जाती है। ऐसे दसियों मामले हैं जहां फेक एनकाउंटर में पुलिसकर्मियों को सजा मिली है। पुलिस को एनकाउंटर में किसी को मार देने की छूट नहीं है। इसे भी हत्या की तरह ही ट्रीट किया जाता है।केस दर्ज होगा और स्वतंत्र पुलिस अधिकारी जांच करेंगे। जांच में ही यह स्पष्ट होगा कि पुलिसकर्मियों ने आत्मरक्षा के अधिकार के तहत अपराधी पर गोली चलाई है या फेक एनकाउंटर किया है। फिलहाल इस मामले में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। एनकाउंटर हुआ है, सही है या फेक, जांच के बाद ही स्पष्ट होगा।
राइट फॉर प्राइवेट डिफेंस यानी आत्मरक्षा के अधिकार के तहत उन्हें अपनी कार्रवाई को जायज ठहराना होगा। इसके अलावा, विकास दुबे का कोई रिश्तेदार किसी थाने में हत्या की एफआईआर दर्ज करवा सकता है।वहीं, सुप्रीम कोर्ट में एनकाउंटर केस लड़ चुके वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया कि यह एक्स्ट्रा-ज्युडिशियल किलिंग का एक स्पष्ट केस है। दुबे एक गैंगस्टर आतंकी था, जिसे शायद मरना ही चाहिए था। लेकिन यूपी पुलिस ने स्पष्ट तौर पर उसकी हत्या की है। यदि सुप्रीम कोर्ट इस अपराध पर नोटिस नहीं लेता है, तो इसका मतलब होगा कि भारत में कानून का शासन बचा ही नहीं है।
क्या है राइट फॉर प्राइवेट डिफेंस?
आईपीसी के सेक्शन 96 से 106 तक राइट ऑफ प्राइवेट डिफेंस को परिभाषित किया गया है। इसमें व्यक्ति की सुरक्षा और अपनी संपत्ति की सुरक्षा के लिए दिए गए अधिकार शामिल है। इसमें भी सेक्शन 100 में स्पष्ट किया गया है कि किन परिस्थितियों में आत्मरक्षा के लिए की गई हत्या को अपराध नहीं माना जाता। इसमें चार प्रावधान बताए गए हैं।
- जिस व्यक्ति ने हत्या की है, मुठभेड़ में उसकी कोई गलती नहीं होनी चाहिए।
- यह स्पष्ट होना चाहिए कि यदि वह हत्या नहीं करता तो उसकी जान को खतरा या शरीर को गंभीर चोट पहुंच सकती थी।
- आरोपी के पास पीछे हटने या भागने का कोई रास्ता नहीं था।
- सामने वाले को जान से मारना उस वक्त की आवश्यकता थी।
तो क्या पुलिस आत्मरक्षा को आधार बनाकर बच निकलेगी?
यह इतना आसान नहीं है। एक मामले में 26 तो एक में 30 साल बाद भी आरोपी पुलिसकर्मियों को हत्या सजा सुनाई गई है।
- पंजाब के अमृतसर में दो पुलिसकर्मियों ने 18 सितंबर 1992 को एक 15 वर्षीय नाबालिग का एनकाउंटर कर दिया था। जांच की गई। 26 साल बाद, 2018 में दोनों पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई।
- देहरादून में 3 जुलाई 2009 को रणवीर की एनकाउंटर में हत्या कर दी गई थी। इस केस में भी विस्तृत जांच के बाद 18 पुलिसकर्मियों को जून 2014 में उम्रकैद की सजा दी गई। बाद में, 11 रिहा हो गए, जबकि सात की सजा कायम है।
- जुलाई 1991 में पीलीभीत में 47 पुलिसकर्मियों ने 11 सिखों को आतंकी बताकर मुठभेड़ में मार गिराया था। पीआईएल पर सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में दोषी पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। तब तक 10 की मौत हो चुकी थी।
- दिल्ली में 1997 में दो उद्योगपतियों को मुठभेड़ में मार गिराने वाले सहायक पुलिस आयुक्त सहित दस अधिकारियों को 2011 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
क्या है एनकाउंटर हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट की 16-सूत्री गाइडलाइन?
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में एनकाउंटर हत्याओं के संबंध में कहा था कि सरकार किसी भी व्यक्ति को संविधान के तहत मिले जीने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती। इसके बाद उसने 16-सूत्री गाइडलाइन भी जारी की थी।
- आपराधिक गतिविधियों से जुड़ी मुखबिरी का रिकॉर्ड लिखित या इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में रखा जाएं।
- यदि किसी टिप-ऑफ पर पुलिस हथियारों का इस्तेमाल करती है और किसी व्यक्ति की मौत होती है तो उचित आपराधिक जांच को शुरू करती हुई एफआईआर दर्ज की जाएं।
- इस तरह की मौत के मामले की जांच स्वतंत्र सीआईडी टीम करेगी, जिसने कम से कम आठ जांच इससे पहले की हो।
- एनकाउंटर हत्याओं में मजिस्ट्रियल जांच अनिवार्य तौर पर की जाए।
- एनएचआरसी या राज्य के मानव अधिकार आयोग को एनकाउंटर में हुई मौत की जानकारी तत्काल दी जाए।
- घायल पीड़ितध्अपराधी को तत्काल चिकित्सकीय मदद दी जाए और मजिस्ट्रेट उसका बयान दर्ज करें।
- बिना किसी देरी के एफआईआर और पुलिस डायरी को कोर्ट भेजना सुनिश्चित करें।
- तत्काल ट्रायल शुरू करें और उचित प्रक्रिया का पालन करें।
- कथित अपराधी के निकट रिश्तेदार को मौत की सूचना दें।
- सभी एनकाउंटर मौतों का ब्योरा दो साल में एनएचआरसी और राज्य आयोगों को निर्धारित फॉर्मेट में सौंपा जाए।
- यदि कोई एनकाउंटर गलत तरीके से किया जाता है तो दोषी पुलिस अधिकारी को निलंबित कर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
- सीआरपीसी के तहत मृतक के रिश्तेदार को मुआवजा दिया जाए।
- पुलिस अधिकारियों को संविधान के आर्टिकल 20 के तहत मिले अधिकारों के संबंध में जांच के लिए अपने हथियार तत्काल सरेंडर करने होंगे।
- आरोपी पुलिस अधिकारी के परिवार को तत्काल सूचना दी जाएं और उन्हें वकीलध्सलाहकार की सेवाएं दी जाए।
- एनकाउंटर हत्या में शामिल अधिकारियों को कोई आउट ऑफ टर्न पुरस्कार या प्रमोशन नहीं दिया जाए।
- पीड़ित के परिवार को यदि लगता है कि गाइडलाइंस को फॉलो नहीं किया गया है तो वह सेशंस जज को शिकायत कर सकता है। जज संज्ञान लेंगे।