माननीय प्रधानमन्त्री ने देश के 70 वर्षों के परतदार #भ्रष्टाचार को समाप्त करने का जो साहसिक निर्णय लिया है वह शायद अभूतपूर्व है। देश में अमीर गुणित दर से अमीर होते जा रहे थे और गरीब उसी अनुपात में गरीब होते जा रहे थे। #राजनीति में नोटों का यह खेल सम्पूर्ण देश को खोखला बना रहा था। आतंकवादियों के हौंसले बढ़ते जा रहे थे। समस्त प्रायोजित अवैध कार्य काले धन की छत्रछाया में फल-फूल रहे थे। हमारे प्रधानमन्त्री की दूरदृष्टि ने मात्र इसी एक औषधि के माध्यम से अनेक रोगों का निदान किया जिसके लिए आज कतार में खड़ी देश की जनता कष्ट सहकर भी प्रधानमन्त्री जी के इस कदम की सराहना कर रही है। परेशानी यदि किसी को हो रही है तो उन लोगों को जो इस कतार के आसपास भी नहीं दिखाई दे रहे हैं। एयरकंडीशन्ड कमरों में बैठकर चिरसंचित भारतीय मुद्रा को ठिकाने लगाने की चिन्ता ज्यों-ज्यों बढ़ती जा रही है त्यों-त्यों उतने ही मुखर स्वर में वे सरकार की आलोचना करते जा रहे हैं। और सबसे रोचक बात तो यह है कि प्रधानमन्त्री के इस कदम की सराहना तो कर रहे हैं लेकिन अपने संचित धन की व्यवस्था न कर पाने का रोष व्यक्त करने के लिए भाँति-भाँति प्रकार के उपालम्भों के माध्यम से जनता की परेशानी का वर्णन करके देशभक्तों को विभिन्न अफवाहों के माध्यम से भड़काने का प्रयास कर रहे हैं। पंक्ति में खड़े देशवासियों में से प्रत्येक कठिनाई की बात तो कर रहा है लेकिन किसी भी देशवासी ने इसका विरोध नहीं किया।
#भ्रष्टाचार के पोषक इन विपक्षी नेताओं को न जाने लज्जा क्यों नहीं आती जब वे प्रधानमन्त्री से अपने इस क्रान्तिकारी निर्णय को वापस लेने की माँग करते हैं। भ्रष्टाचार की लड़ाई में जब पूरा देश एक स्वर से इसका समर्थन कर रहा है तो मात्र कुछ नेतागण उन देशवासियों का हवाला देकर प्रधानमन्त्री की आलोचना कर रहे हैं। यदि वास्तव में इन नेताओं को देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने की तनिक भी अभिलाषा होती तो वे जनता को होने वाली इस कठिनाई के निदान के विषय में बात करते। वे जनता की कठिनाई के निराकरण की बात तो करते ही नहीं हैं बल्कि उन्हें इस क्रान्तिकारी पहल के कारण श्री नरेन्द्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता और अपने खिसकते जनाधार की चिन्ता अधिक हो रही है। आज सम्पूर्ण विपक्ष, जिसमें तथाकथित भ्रष्टाचार की लड़ाई लड़ने वाले, पूर्व में भ्रष्टाचार के आरोपी और परस्पर तीव्र सैद्धान्तिक तथा मानसिक विषमता रखने वाले सभी राजनीतिक दल और राजनेता जो कभी परस्पर एक-दूसरे के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करते थे, एकजुट होकर प्रधानमन्त्री के इस निर्णय के विरोध में उठ खड़े हुए हैं। उन्हें लगने लगा है कि भ्रष्ट माध्यमों से अर्जित धन का उपयोग करके उन्होंने अपना जो ढांचा तैयार किया है वह ध्वस्त होने के कगार पर है। राजनीतिक शुचिता के संकल्पित भाजपा सरकार ने वह कर दिखाया है जिसे करने की मंशा कभी किसी राजनीतिक दल या सरकार ने नहीं की थी। देश के गरीब, प्रधानमन्त्री को शत-शत आशीष दे रहे हैं कि इसी बहाने कुछ विधर्मी उनके खातों में भी पैसा जमा कर रहे हैं।
देश की मुद्रा जलाई जा रही है, गंगा में प्रवाहित की जा रही है, टुकड़ों में काट-काटकर फेंकी जा रही है। आखिर यह कार्य कौन लोग कर रहे हैं? ईमानदार लोग अपनी एक-एक पाई का मूल्य वसूलने के लिए बैंकों की कतारों में खड़े हैं तो दूसरी ओर अवैध अर्जन की सम्पत्ति वाले लोग उक्त विधियों का अनुसरण कर रहे हैं। यदि इन भ्रष्टों ने थोड़ा सा भी परोपकार का कार्य किया होता और गरीबों की सम्पत्ति का विपरीत दोहन न किया होता तो आज वे भी चैन की नींद सो रहे होते। अनेक जगहों पर तो सुनने में आया है कि नोट घरों-घरों में बाँटे जा रहे हैं। जो लोग एक रुपया भिक्षा में नहीं देते थे वे आज नोटों के बंडल बाँट रहे हैं। क्या हमारे देश के इन विपक्षी नेताओं को यह नहीं दिखाई दे रहा है कि आखिर प्रधानमन्त्री के इस निर्णय से इतनी बड़ी संख्या में नोटों का इतने व्यापक पैमाने पर व्यापार क्यों हो रहा है? यदि उन्होंने यह सम्पत्ति अवैध ढंग से अर्जित न की होती तो वे इसे इस प्रकार क्यों नष्ट करते?
वास्तव में ये ही नेता देश के भ्रष्टाचार के मूल में बैठे हैं। ये न तो यह कह सकते हैं कि हमारे अवैध नोट बेकार हो रहे हैं और न उन नोटों को प्रकाश में ला सकते हैं। जनता को होने वाली कठिनाई अव्यवस्था का परिणाम हो सकती है किन्तु आलोचना का विषय कदापि नहीं हो सकती।
अन्त में मैं सरकार से निवेदन करना चाहूँगा कि देश आपके साथ खड़ा है, कष्ट सहने के लिए भी तैयार है, किन्तु सरकार कुछ ऐसी व्यवस्था कर दे कि जनता के कष्ट कुछ सीमा तक कम हो सकें और उचित व्यवस्था हो जाने पर इन कथित नेताओं का मुँह स्वतः बन्द हो जायेगा और जो जनता इस निर्णय की प्रशंसा कर रही है वह सरकार के प्रति अभिभूत हो जायेगी।