नागरिकता (संशोधन) कानून-2019 (CAA) को लागू कर दिया गया। इस कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं, प्रतिक्रियाएं और डर सामने आने लगे हैं। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं को घर में नजरबंद भी कर दिया गया है। लेकिन कोई फायदा नहीं,सरकार इस बात को लेकर सतर्क है कि कहीं फिर से 2019-20 के जैसा आंदोलन न खड़ा हो जाए।
अब संभवतया नरेंद्र मोदी सरकार नहीं चाहती थी कि CAA को गलत समझा जाए। इसलिए इन सबका सामना करने के लिए दो सबसे शक्तिशाली मंत्रियों, केन्द्रीय गृहमंत्री और रक्षामंत्री को सामने आना पड़ा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा- कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है, यह कानून भारत में रहने वाले किसी भी व्यक्ति की नागरिकता नहीं छीनेगा। इसके बाद गृहमंत्री ने समाचार एजेंसी एएनआई से कहा कि, “…देश के अल्पसंख्यकों को डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसमें किसी भी नागरिक के अधिकारों को वापस लेने का कोई प्रावधान नहीं है।” स्वयं गृह मंत्रालय ने कहा कि “इस अधिनियम के बाद किसी भी भारतीय नागरिक को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कोई दस्तावेज़ पेश करने के लिए नहीं कहा जाएगा।
“सरकार की तत्परता से स्पष्ट है कि केंद्र नहीं चाहता कि CAA को लेकर किसी भी किस्म का डर मन में रहे। अब बात है आरएसएस और बीजेपी के मूल चरित्र की, उन सिद्धांतों की जिन पर संघ और भाजपा खड़ी है। संघ की विचारधारा का भारत के संविधान के प्रति दुराग्रह आज का नहीं 75 साल पुराना है। जब 26 नवंबर 1949 में संविधान को अंतिम रूप दिया गया, तब आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइज़र (30 नवंबर, 1949) में लिखा गया।संघ और भाजपा इसी संविधान से अधिकार प्राप्त करके मजबूत होते गए और इसी संविधान को खत्म करने की वकालत भी करते गए। 1998 में जैसे ही अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार सत्ता में आई, उसने संविधान की समीक्षा के लिए वेंकट चलैया आयोग नियुक्त किया। उद्देश्य था, पूरे संविधान की समीक्षा की जाए जिससे उसमें से वो अंश हटाए जा सके जिनसे संघ सहमत नहीं था।
जब सन 2000 में के.एस. सुदर्शन आरएसएस के सरसंघचालक बने, तो उन्होंने खुले तौर पर घोषणा की, कि भारतीय संविधान पश्चिमी मूल्यों पर आधारित है और इसके स्थान पर भारतीय पवित्र पुस्तकों पर आधारित संविधान लागू किया जाना चाहिए, जो मनुस्मृति का संकेत देता है। उन्होंने जोर देकर कहा,”हम संविधान में पहले ही सौ बार संशोधन कर चुके हैं इसीलिए इसे पूरी तरह से बदलने में शर्म नहीं करनी चाहिए”। वो आगे यहाँ तक कहते हैं कि “इसमें कुछ भी पवित्र नहीं है। वास्तव में, यह देश की अधिकांश बुराइयों का मूल कारण है।
फिलहाल देश के काफी विपक्षी दल का के पक्ष में नहीं है। वह चाहते हैं कि इसमें बदलाव हो और घूम फिर कर बात वही पहुंच जाए जहां से चली थी।