भारत के मुकुट के रूप में सुशोभित हिमालय देश का सीमा प्रहरी तो रहा ही है इसकी अलग गीता ने भी इसे दुनिया से अलग स्थान दिया है यह हमारी लापरवाही का नतीजा है कि अब इस को सीखने वाली नदियां सूख रही है वही पिघलते हिमखंड से कमजोर बना रहे हैं दरअसल हमने हिमालय को समझने में पहाड़ जैसी चुक की हैं और यह हमारी नीतियों में भी स्पष्ट दिखाई देता है जिसे अब आगे चलकर के सवारना होगा नहीं तो यह हिमालय हमारे लिए काफी मुश्किल खड़ी कर सकेगा।
दरअसल हिमालय से मात्र जनजीवन ही नहीं जुड़ा है बल्कि देश की अस्मिता भी जुड़ी है हिमालय की महिमा कुछ इस तरह की है कि मात्र स्थानीय लोगों की आवश्यकता है कि ही भरपाई नहीं करता बल्कि देश का एक बड़ा भूभाग इसी की कृपा से पनपा है मोटे रूप में देश के साथ मैदानी राज्यों की खेती बाड़ी प्राकृतिक पर्यावरण हिमालय की देन है इसमें देश की राजधानी से लेकर उत्तर प्रदेश बिहार बंगाल जैसे राज्य आते हैं हिमालय की गंगा जमुना ब्रह्मपुत्र सतना जैसी नदियों ने इस देश के भूगोल को तय किया है साथ में संपन्नता का आधार भी बनी है इतना ही नहीं हिमालय में होने वाली कोई भी हलचल दुनिया के 18 देशों और 2 अरब लोगों को सीधा प्रभावित करतीहै।
पिछले कुछ समय से हिमालय में यूरोप की ही तरह पर्यावरणीय छेड़छाड़ के दुष्परिणाम दिखने शुरू हो गए हैं यहां निरंतर होने वाली आपदाएं इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आईपीसीसी की रिपोर्ट भी बताती है कि आने वाले समय में दुनिया के हीटवेव्स इंडेक्स के बढ़ने के कारण सबसे बड़ा और प्रतिकूल प्रभाव हिमालय पर ही पड़ेगा इन परिणामों की एक वजह यह भी है कि हिमालय के हालात बिखरते चले जा रहे हैं यह हमारे लिए बड़ी चुनौती है इसे एक तरफ जहां जनजीवन पर प्रभाव पड़ेगा वहीं दूसरी तरफ यमुना ब्रह्मपुत्र हिमालय करती हैं वह सब कहीं ना कहीं से गिर जाएगी क्योंकि उनका आधारहीन खंडों के हालात पर निर्भर है जो अब तेजी से पिघल रहे हैं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए शोध से खुलासा हुआ है कि वर्ष 2000 के बाद ही बढ़ जाएगी।
बढ़ती गर्मी के कारण हिमालय के हिमखंड आप जिलों में परिवर्तित हो रहे हैं वहीं दूसरी तरफ एक अध्ययन के अनुसार इन पिघलते हिम खंडों के कारण मिथेन गैस का उत्सर्जन भी हो रहा है मतलब एक साथ दो तरह की परिस्थितियों की मार हम सब पर पड़ने वाली है इन खंडों के पिघलने से जहां हम पानी का फिक्स डिपाजिट खो देंगे वही समुद्र का व्यवहार बदल जाएंगे। दूसरी तरफ कार्बन डाइऑक्साइड से 4 गुना घातक मिथेन जैसी गैस से वायु में बढ़ते घनत्व के कारण तापमान में वृद्धि निश्चित है इस परिवर्तन के पीछे बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग रहा है यह भी स्पष्ट है कि दुनिया में बढ़ती तपन के कारण क्लाइमेट चेंज जैसे बड़े दुष्परिणाम सामने आए हैं यह बदलाव का पहला असर हिमालय में ही झलकता है यही कारण है कि लगातार कुछ समय से हिमालय कई तरह से मुसीबतों से घिरा हुआ है गर्मियों में जहां इसे वनों की आग मिलती है वही मानसून में अतिवृष्टि यहां जीवन को छिन्न-भिन्न कर देती है हर वर्ष की यह घटनाएं हिमालय को पीछे धकेल देती हैं।
हिमालय के प्रति एक नई नीति की पहल होनी चाहिए मातराजो में हिमालय को बांट कर हम आज तक कोई संरक्षण नहीं कर सके सच तो यह है कि पिछले 100 साल से हिमालय में होने वाले बदलाव हमारे संज्ञान में ही नहीं है और ना ही उसका कोई लेखा-जोखा हमारे पास है अगर ऐसा कोई अध्ययन होता तो शायद हम सफर को पाते और आने वाली समस्या से हिमालय की सुरक्षा पर व्यवहारिक कदम उठाते हिमालय को राज्य का दर्जा दिया जाना मात्र इसका समाधान नहीं है बल्कि हिमालय की नीतियां और ढांचा कुछ अलग होने की आवश्यकता है इस की परिस्थिति को समझते हुए यहां के विकास के ढांचे के प्रति गंभीरता दिखाना सबसे बड़ी आवश्यकता है इसके बावजूद हिमालय हमारे साथ है और किसी न किसी रूप में अनवरत सेवा में जुटा हुआ है।
अभी भी हिमालय देश दुनिया की सेवा में उस निम्न स्तर पर नहीं पहुंचा जिसे हम दूर नहीं कर सकते लेकिन यह भी यह शिकार नहीं कर सकते कि हिमालय आज वैसा स्थिर नहीं है जैसा अपने जन्म के समय में था यह सारे देश की विरासत है इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि राष्ट्रीय स्तर पर हिमालय के लिए अलग से सोच पर तब शायद हम हिमालय के प्रतिनिधियों को स्थान दे पाएंगे जिनसे संरक्षण जुड़ा है इसके लिए हम हिमालय में सामाजिक राजनीतिक आर्थिक दृष्टिकोण पर चिंतन करते हुए हिमालय के संरक्षण के प्रति चिंता करें इसी सोच के चलते वह इसके महत्व और संरक्षण पर चर्चा के लिए हिमालय दिवस की कल्पना की गई थी तब से लगातार हर वर्ष हिमालय को लेकर चिंतन की एक श्रृंखला देशभर को संदेश लेने का ऐस प्रयत्न कर रहा है जिसमें सभी भागीदारी आवश्यक है। हिमालय को नमन करने का मतलब प्रभु व प्रकृति के प्रति आदर प्रकट करने जैसा होगा।