शरद पवार व उद्धव का सियासी भविष्‍य?


विधानसभा चुनावों के बाद से ही शरद पवार के भविष्‍य पर सवाल उठने लगे हैं। उन्‍होंने चुनाव से पहले मौजूदा राज्‍यसभा कार्यकाल के खत्‍म होने के बाद सियासी संन्‍यास के भी संकेत दिए थे। 84 साल के शरद पवार का 2026 में राज्‍यसभा का कार्यकाल खत्‍म हो रहा है। कयास लगाए जा रहे हैं कि अपनी बेटी के राजनीतिक भविष्‍य को सुरक्षित करने के लिए शरद पवार अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर सकते हैं। ऐसा काफी पहले वो कह भी चुके हैं।

विधानसभा चुनावों में अजित पवार के जबर्दस्‍त प्रदर्शन के बाद एक तरह से इस बात की मुहर लग गई है कि एनसीपी अब अजित पवार की पार्टी है। बारामती विधानसभा चुनाव भी अजित पवार ने जीता है जिसको सीनियर पवार का गढ़ माना जाता रहा है। ऐसे में अजित की पार्टी के साथ विलय करना शायद शरद पवार को गवारा न हो क्‍योंकि इसमें उनकी बेटी का राजनीतिक भविष्‍य कम सुरक्षित दिखता है।वैसे भी लोकसभा चुनाव में बारामती सीट से सुप्रिया सुले के खिलाफ अजित पवार ने पत्‍नी सुनेत्रा पवार को चुनाव लड़ाया था।सुनेत्रा हार गईं लेकिन उसके बाद उनको राज्‍यसभा भेजा गया यानी अब वो भी राजनीतिक रूप से सक्रिय हैं। 

अजित और सुनेत्रा के बेटे पार्थ भी सियासी सक्रिय हैं। इस लिहाज से देखें तो अजित पवार की एनसीपी में उनकी पत्‍नी और बेटे ने अपनी जगह बना ली है।ऐसे में शरद पवार के लिए उसमें क्‍या बचा है जो बेटी सुप्रिया सुले के साथ वो उसमें जाना चाहेंगे? दूसरी बात जिस पार्टी को खुद कभी शरद पवार ने बनाया था अब वो खुद ही उनके लिए बेगानी हो चुकी है। अपने आत्‍म सम्‍मान को बचाए रखते हुए शायद वो उसमें जाने से परहेज करें।

ऐसी परिस्थिति में यदि उनको अपनी बेटी का राजनीतिक भविष्‍य सुरक्षित ही करना है तो उनके लिए कांग्रेस में अपने दल का विलय करना ज्‍यादा उचित जान पड़ता है। इससे महाराष्‍ट्र के दिग्‍गज नेता के रूप में उनका कद भी बना रहेगा और बेटी का इस माध्‍यम से वह भविष्‍य सुरक्षित रख सकते हैं लेकिन ये तभी संभव है जब वो अपने धड़े पर अपनी पकड़ बनाए रख सकें। विधानसभा चुनाव में उनके 10 विधायक जीते हैं और लोकसभा में उनके आठ सांसद हैं। लिहाजा वो अपनी पार्टी के सियासी भविष्‍य पर मंडराते हुए खतरे को देखते हुए फिलहाल यही चाहेंगे कि ये विधायक और सांसद उनका साथ नहीं छोड़ें। इस बात की आशंका इसलिए ज्‍यादा है क्‍योंकि कुछ दिन पहले अजित पवार की पार्टी की तरफ से ये संकेत दिए गए कि शरद की पार्टी के कई विधायक उनके संपर्क में हैं।

इसी तरह का संकट उद्धव ठाकरे के सामने है। उनके पास भी केवल 20 विधायक ही हैं।जब पिछली बार शिवसेना और एनसीपी के पास 50-50 से ज्‍यादा विधायक थे तब इनकी पार्टी टूट गई तो सवाल ये है कि इस समय उद्धव के 20 और शरद पवार के 10 विधायक अगले पांच साल तक किस तरह उनके साथ बने रहेंगे ये सोचने वाली बात है। भविष्‍य में फिर इस तरह की टूट न हों,विधायकों-सांसदों के बीच भगदड़ न मचे, उसी कड़ी में शरद पवार और उद्धव ठाकरे की मेल-मुलाकातों को जोड़कर आजकल देखा जा रहा है।

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