कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार शारदा घोटाले की जाँच के लिए गठित एसआईटी के मुखिया थे। मुख्यमन्त्री सुश्री ममता बनर्जी के ये कितने करीबी हैं इसकी कल्पना इसी बात से सहज की जा सकती है कि सीबीआई जब उनसे इस घोटाले के विषय में पूछताछ करने के लिए उनके आवास पर पहुँच पाती उससे पहले ही स्वयं ममता बनर्जी अपने दल-बल के साथ राजीव कुमार को सीबीआई का सामना न करने देने के लिए पहुँच गयीं। प्रश्न यह उठता है कि आखिर राजीव कुमार से पूछताछ करने में ममता बनर्जी को क्या आपत्ति थी? क्या इसका सामान्य सा अर्थ यह नहीं है कि ऐसा मात्र इसलिए किया गया क्योंकि इससे तृणमूल कांग्रेस के नेताओं की गर्दन गिरफ्त में आने वाली थी? या स्वयं ममता दीदी ही अपराधियों और भ्रष्टाचारियों का संरक्षण कर रही थीं और यह बात प्रकाश में आने वाली थी? सीबीआई अपना कार्य उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार कर रही थी। भारतीय लोकतन्त्र के इतिहास में यह एक अभूतपूर्व घटना घटित हुई जब देश की सर्वोच्च जाँच एजेंसी के अधिकारियों को पूछताछ करने के अपराध में राज्य सरकार की पुलिस द्वारा न केवल रोका गया बल्कि उन्हें गिरफ्तार भी किया गया। राजनीतिक विद्वेष के कारण सीबीआई का दुरुपयोग नहीं होता रहा है ऐसी बात नहीं है, किन्तु बावजूद इसके इस संस्था द्वारा की जाने वाली कार्यवाही का इस अलोकतान्त्रिक ढंग से विरोध करना न केवल भारतीय संविधान की गरिमा को तार-तार करने वाला है बल्कि संविधान की अवमानना का मार्ग भी प्रशस्त करने वाला है।
सबसे विलक्षण बात तो यह कि जितने लोग भी भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं वे सभी एकसाथ मिलकर ममता दीदी के पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे हैं। जिस प्रकार जेएनयू में देशविरोधी के नारे लगाने वालों के पक्ष में विपक्ष समवेत स्वर में बोल रहा था उसी घटना की पुनरावृत्ति भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए अब की जा रही है। इसका अर्थ यह हुआ कि नेता, राजनेता, अधिकारी और सरकारी तन्त्र जनता के श्रमसाध्य अर्जित धन को लूटते रहें और यदि कोई ईमानदार सरकार इन जघन्य कृत्यों पर कार्यवाही करे तो सभी मिलकर उसे ‘लोकतत्र और संविधान की हत्या’ बताते हुए एकजुट हो जायें। क्या ऐसे लोग ही हमारे भारतीय गणतन्त्र का नेतृत्व करने वाले हैं? इतना ही नहीं देश में असंवैधानिक ढंग से घोषित आपातकाल लगाने वाला दल भी उसी स्वर में आलाप कर रहा है जिसका इतिहास घोटालों और भ्रष्टाचार से परिपूर्ण है। जिसके पीछे घोटालों की एक अविराम शृंखला है। इससे सिद्ध होता है कि इस प्रकार के क्षेत्रीय दलों का गठन ही मात्र इस निमित्त होता है कि वे खुलेआम जनता के पैसों को मनमाने ढंग से लूटते रहें और इन दलों की सरकार अपने-अपने अपराधियों का संरक्षण इसी प्रकार करती रहे? लोकतन्त्र में बहुदलीय प्रणाली की व्यवस्था लोकतन्त्र को स्वस्थ करने के लिए की गयी थी किन्तु यहाँ तो इस व्यवस्था का इस निम्नतम स्तर पर दुरुपयोग होगा यह बात संविधान-निर्माताओं की कल्पना में भी नहीं रही होगी।
पश्चिम बंगाल में जिस प्रकार राजनीतिक हत्याओं का क्रम प्रारम्भ हुआ है वह केवल केन्द्र सरकार ही नहीं समस्त प्रबुद्ध राजनीतिज्ञों की चिन्ता का विषय होना चाहिए। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह, भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री और स्वयं देश के प्रधानमन्त्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी जी की सभाओं में स्वयं राज्य सरकार की मुख्यमन्त्री द्वारा बाधा पहुँचाया जाना क्या लोकतन्त्र की हत्या की श्रेणी में नहीं आता है? देश के विरुद्ध विषवमन करने वालों के पक्ष में खड़े होकर लोकतन्त्र की मर्यादा से खिलवाड़ करने वाले लोगों को यह ज्ञात होना चाहिए कि यदि भारत को खण्डित करने वाले कुछ हाथ हैं तो भारत की रक्षा में सिर उतारकर अर्पित करने वाले उनसे कहीं अधिक हैं। उनका यह अरण्यरोदन उनके समूह के लोगों तक ही सीमित रहेगा और भारत का संविधान अक्षुण्ण है और सदा ऐसा ही रहेगा। आप भ्रष्टाचार को चाहे जितना प्रश्रय दे लें किन्तु वह उजागर होकर रहेगा। लालू प्रसाद यादव जैसे लोग इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। आप शासन में हैं तो इससे आपको भ्रष्टाचार करने और भ्रष्टाचार का संरक्षण करने का अधिकार नहीं मिल जाता है। देशभक्त आपकी आलोचनाओं की परवाह न करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करते रहेंगे भले ही आप कुछ दिन अपनी पुलिस को उसके कर्तव्य का पालन करने से वंचित करते हुए उसे अपने भ्रष्टाचार के संरक्षण का माध्यम बनाते रहें। आपका यह कदम पश्चिम बंगाल में आपकी सरकार के अवसान का सूचक है। जिन गरीबों का धन लूटकर उन्हें भिखारी बना दिया गया है उनकी कराह व्यर्थ नहीं जायेगी और आपको इसका मूल्य चुकाना ही पड़ेगा।
दीदी पैसों का हिसाब भूल गई है क्या पता कमिश्नर से अभी हिसाब करना हो इसलिए धरने में बैठ गई