समस्याएँ अथवा परेशानियाँ मानव जीवन का एक अभिन्न हिस्सा हैं। उनसे बच पाना किसी भी व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं है। जब ये सिर उठाने लगती हैं तो इन्सान तौबा बोलने लगता है। यानी इनके प्रभावी होने की स्थिति में मनुष्य घबरा जाता है, घुटन-सी महसूस करता है। ये दोनों उसके साथ आगे-पीछे होते हुए चलती रहती हैं। कभी उसे दिखाई देती हैं यानी उसके जीवन को प्रभावित करती हैं तो कभी कुछ समय के लिए तिरोहित हो जाती हैं। ऐसा भी कह सकते हैं कि मनुष्य खुली हवा में साँस ले सके, इसलिए कुछ दिन के लिए वे आरामगाह में चली जाती हैं। परन्तु एक अच्छे व सच्चे मित्र की भाँति उसका साथ कभी नहीं छोड़तीं।
गौर करें तो हम अभी भी अजनबियों को चाचा ताऊ भैया दद्दा कहने वाली संस्कृति के वाहक हैं। हममें से कोई नहीं है जो जाति पूछकर संबोधन करता हो। सोशल मीडिया से फैलती आग में जलने और समाज को जलाने से बचें और जातिगत व धार्मिक नफरत फैलाने वाले ग्रुपों को एक्जिट करें फिर देखिए हमारा परिवेश कितना सौहार्दपूर्ण होगा।अगर हम सोशल मीडिया की छद्म दुनिया से निकलकर अपने आसपास लोगों को देखें तो यकीनन एक सौहार्दपूर्ण भारत नजर आएगा.. लेकिन अगर हम अभी भी नहीं चेते और इन्हीं वाहियात फारवर्डेड मैसेजों के आधार पर दूसरों के लिए अपनी अवधारणाएं बनाते रहे तो यह भी संभावना है कि पास में खड़ा आदमी अचानक हमला कर बैठे।ये सब राजनैतिक प्रयोजन हैं इनमें उलझने से हमारी जानें जाएंगी, हमारे घर जलेंगे यहां तक कि पुलिस भी हमें ही धुनेगी । सत्ता की पंजीरी वे लूटेंगे जिन्होंने मैसेजों की बमबारी के लिए आईटी कम्पनियां नियुक्त की हैं.।
हिंदुओं को लग रहा है कि आने वाले कुछ वर्षों में भारत मुस्लिम राष्ट्र बन जाएगा और भारत में औरंगजेब शासन आ जाएगा। मुस्लिमों को लग रहा है कि कुछ ही दिनों में हिन्दू जैसा खूंखार संगठन बन जाएगा और आतंकवाद का रंग भगवा हो जाएगा। दलितों को लग रहा कि जल्द ही नई संविधान सभा गठित होने वाली है जिसमें मनुस्मृति के नियमों को लागू किया जाना है और उनके विकास में रिवर्स गियर लग जाएगा जो उन्हें सीधे उत्तर वैदिक काल में ले जाएगा। सवर्ण को लग रहा है कि आरक्षण की वजह से उसकी युवा पीढ़ी बेरोजगार और बेचारी होती जा रही है।ये सभी कल्पनाएँ कहाँ से उपजी ं? क्या वास्तव में हमारे आसपास ऐसे हालात पनप रहें हैं या कुछ और?अगर हम ईमानदारी से विश्लेषण करें तो पाएंगे कि असल में ये सारी अवधारणाएं वाट्सऐप और फेसबुक पर अंधाधुंध फैलाए जा रहे उन्मादी कापी पेस्ट का नतीजा हैं।ये कापी पेस्ट लंबे लंबे मैसेज,भड़काऊ फोटो और तमाम वीडियो की शक्ल में बहुतायत से प्रचलित हैं।जो अब प्रयोग में लायी जा रही है।
इन समस्याओं से घबराकर हार मान लेना इसका हल नहीं हो सकता। उनका सीना तानकर सामना करने से ही उनसे मुक्ति मिल सकती है। उनकी आँखों में आँखें डालकर ही उनसे उत्तर मांगना चाहिए। हम देखते हैं कि आँधी अथवा तूफान में वही बच सकते हैं जो थोड़ा झुक जाते हैं और जो वृक्ष तनकर खड़े रहते हैं, वे टूट जाते हैं। इसी प्रकार जो व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में तनकर खड़े रहते हैं या अनैतिक मार्ग अपना लेते हैं यानी उन हालातों में भी समझदारी नहीं दिखाते वे टूट जाते हैं। जो उस कठिन समय में सत्य के मार्ग पर चलते हुए धैर्य से उसके व्यतीत हो जाने की प्रतीक्षा करते हैं, वे निश्चित ही उभर जाते हैं।
जीवन सदा एक ही ढर्रे पर नहीं चल सकता। किसी को सदा ही सुख मिलता रहेगा और किसी को हमेशा दुख मिलता रहेगा, ऐसा नहीं हो सकता। ये सब क्रम से मनुष्य के पास आते रहते हैं। ये दुख-कष्ट कभी मनुष्य को उसके पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार मिलते हैं तो कभी अपनी मूर्खता से वह इन्हें न्योता दे देता है। अब आप कहेंगे कि स्वयं कोई दुख क्यों बुलाएगा? यह बिल्कुल सत्य है। हर इन्सान को ज्ञात है कि सदा समय से सोना और जागना चाहिए, समय पर खाना खाना चाहिए, भोजन सुपाच्य होना चाहिए प्रतिदिन सैर करनी चाहिए, आवश्यकता से अधिक भोजन कभी नहीं खाना चाहिए इत्यादि। फालतू चीजों में ध्यान लगाकर अपना समय नही व्यर्थ करना चाहिये।
Really pathetic to understand how our social fabric is shaping up.