2024 के चुनाव में ज्ञानवापी की भूमिका।

ज्ञानवापी मामले में वाराणसी की अदालत के आदेश का दो केंद्रीय मंत्रियों समेत भाजपा के कई नेताओं ने स्वागत किया है पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव ने सत्य की जीत बताया है गिरिराज किशोर ने व कई अन्य नेताओं ने भी इस मामले पर अपनी राय दी है लेकिन कुछ नेताओं का कहना है कि चुनाव की चौखट पर करवट ले रही है मथुरा काशी।

वाराणसी जिला न्यायालय ने ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मस्जिद प्रकरण को सुनने योग्य बताया है और भी सुनवाई होनी है लेकिन भाजपा के दिग्गज नेताओं ने कोर्ट से गूंजी इस मुद्दे के किलकारी सुन ली है । भगवा बिग्रेड के अन्य नेताओं के उत्साह भरे शब्द आगे की कहानी सुना रहे हैं कि लोकसभा चुनाव 2024 की चौखट पर काशी के सहारे देश की राजनीति करवट ले सकती है। 

अब बात करते हैं ज्ञानवापी मस्जिद के प्रमुख दलीलों की प्रार्थना पत्र में दर्शन पूजन के अधिकार की मांग पूरे हिंदू समाज के लिए की गई है। इसलिए सुनवाई स्थानीय अदालत में नहीं हो सकती ज्ञानवापी मस्जिद वर्क की संपत्ति है वह एक्ट के तहत मुकदमे की सुनवाई सिविल अदालत में नहीं हो सकती दीन मोहम्मद बनाम सरकार 1937 के मुकदमे में अदालत में ज्ञानवापी को मस्जिद माना है और समाज का अधिकार दिया है वर्षों से ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज हो रही है इसलिए पूजा अधिनियम विशेष प्रावधान 1991 लागू होता है औरंगजेब को दी गई जमीन पर मस्जिद बनी थी उस वक्त का शासन था इसलिए संपत्ति भी उसकी है यह बातें मुस्लिम पक्ष की तरफ से प्रमुख दलों में कही गई है।

मंदिर पक्ष के प्रमुख कारकों में भूखंड की आराजी संख्या 9130 विवादित परिसर में लगातार दर्शन पूजन होता रहा है 1993 में बैटिंग होने तक हिंदू देवी देवताओं की पूजा होती थी काशी विश्वनाथ के स्वामित्व का हिस्सा माना गया गया एक्ट के खिलाफ जो फैसले हुए हैं वह सुनने हैं ज्ञानवापी बाप की संपत्ति नहीं है क्योंकि वह संपत्ति का कोई मालिक होना चाहिए इस मामले में संपत्ति हस्तांतरण का कोई अधिकार नहीं है।  प्रदेश शासन के गजट में ज्ञानवापी की वर्क संख्या 100 बताई गई है लेकिन कोई आराजी संख्या दर्ज नहीं है वर्ष 1937 में दीन मोहम्मद केस में 15 गवाहों ने स्पष्ट किया था कि यहां पूजा-अर्चना होती थी ऐसे में मंदिर की मान्यता नई बात नहीं है।

अब बात करते हैं कि अदालत ने क्या कहा बनारस की जिला अदालत मुस्लिम पक्ष के सवालों को यह कहकर खारिज कर दिया कि याची करता हिंदू पक्ष का कहना है कि विवादित स्थल पर मां श्रृंगार गौरी भगवान गणेश और हनुमान की लंबे समय से पूजा करते चले आ रहे हैं 1993 तक उन्होंने पूजा की है इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार के नियमन के कारण साल में एक बार वहां पूजन करने का अवसर मिलता है अदालत ने याचिकाकर्ता के मुताबिक 15 अगस्त 1947 के बाद भी लगातार वहां पूजा करते रहें इसलिए पूजा स्थल कानून 1991 लागू नहीं होगा मुकदमा उस कानून के तहत सुनवाई के लिए बात नहीं करता।

जहां तक मंदिर का प्रश्न है तो 1098 में राजा हरिश्चंद्र ने भव्य मंदिर बनवाया 1809 में हिंदुओं ने मस्जिद उन्हें सौंप देने की मांग की 1936 में दायर एक मुकदमे में फैसले में ज्ञानवापी को मस्जिद के रूप में स्वीकार किया गया 2019 में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विशेश्वर की ओर से विजय शंकर रस्तोगी ने कोर्ट में याचिका देकर सर्वेक्षण की मांग की 2021 अप्रैल में सिविल जज के मुताबिक पुरातत्व सर्वेक्षण कराए जाने का आदेश दिया विरोध में इंतजाम या कमेटी ने हाई कोर्ट में अपील की 18 अगस्त 2021 को राखी सिंह सहित पांच महिलाओं ने सिविल जज की अदालत में वाद दाखिल किया अप्रैल 2022 को अदालत का आदेश दिया है 19 अप्रैल को हाईकोर्ट में दाखिल याचिका प्रस्तुत की गई सर्वे का कार्य शुरू हुआ। 6 मई को ज्ञानवापी परिसर के सर्वे की कार्रवाई शुरू हुई 16 मई को मंदिर पक्ष के वजूद खाने में शिवलिंग मिलने का दावा किया गया 18 मई को सर्वे की कार्रवाई रिपोर्ट अदालत में दाखिल की गई 20 मई को सुप्रीम कोर्ट में अंजुमन इंतजाम या कमेटी के प्रार्थना पत्र पर के शिलान्यास को ट्रांसफर किया 12 सितंबर को अदालत ने माना कि मुकदमा सुनने योग्य है।

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