देश में डाक घर की भूमिका

देश की संचार व्यवस्था के साथ सामाजिक व्यवस्था अर्थव्यवस्था साहित्य ,कला और संस्कृत के प्रसार और स्वाधीनता आंदोलन में भी भारतीय डाक विभाग की आम भूमिका रही है ।1 अक्टूबर 1854 को स्थापित भारतीय डाक विभाग इतिहास की तमाम आम घटनाओं का गवाह रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन में संचार का सबसे प्रमुख साधन होने के कारण जहां डाकघर क्रांतिकारियों के निशाने पर रहे ,वहीं इन्हीं डाकघर के माध्यम से कई बार क्रांतिकारियों ने भी अपना संगठन मजबूत किया। उसे दौर में लिखे गए तमाम पत्र आज भी दस्तावेज के रूप में इतिहास को अगली पीढ़ी तक पहुंचा रहे हैं ।

स्वतंत्रता के बाद डाक सेवाओं में अमूल चौक परिवर्तन आया। डाकिया डाक लाया से डाकिया बैंक लाया तक, इस सफर में डाक सेवाओं ने समाज के अंतिम व्यक्ति तक निरंतर सेवाएं प्रदान की है। डाक विभाग आज देश की सभ्यता संस्कृति विरासत के प्रतिबिंब है। प्रतिवर्ष डाक विभाग लगभग 60 स्मारक डाक टिकट जारी करता है। देखा जाए तो यह डाक टिकट एक नन्ही ब्रांड एंबेसडर की तरह है जो पूरी दुनिया में घूम कर भारत की समृद्धि संस्कृति इतिहास महान व्यक्तित्व जैव विविधता व अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं का प्रचार प्रसार करते हैं। डाक टिकटों और पत्र लेखन को शिक्षा प्रणाली से जोड़कर युवा पीढ़ी को उनकी विरासत से रूबरू कराया जा रहा है।

अमृत महोत्सव के अंतर्गत 75 लाख पोस्टकार्ड अभियान में जिस तरह से विद्यार्थियों ने स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक एवं 2047 में भारत के लिए मेरा दृष्टिकोण विषयों पर प्रधानमंत्री को पद लिखकर मां की बात साझा की उसकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तारीफ की है। स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव के तहत डाक विभाग में स्वतंत्रता आंदोलन के तमाम  नायकों को चिन्हित करके उनके नाम पर डाक टिकट और विशेष आवरण जारी किया ताकि इतिहास में उनका गरिमामई स्थान सुनिश्चित किया जा सके। आज भी भारतीय डाक विभाग समाज के अंतिम व्यक्ति तक सरकार की विभिन्न सुरक्षा योजना, सामाजिक सुरक्षा और कल्याणकारी योजनाओं को पहुंचते हुए निस्वाथ सेवा में भाव से कार्य करने पर तत्पर है।

डाकघर और डाक कर्मियों और डाक से मिलने वाली सूचना ,जानकारी ,पत्रों और संदेश की और प्रतिष्ठा  भारत के स्वतंत्रता संग्राम कल में डाक डाकघर की नई भूमिका से भी रूबरू हुआ। स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ बन चुका ,भारत आज डाक विभाग के जुझारू संघर्षशील किंतु का नाम अज्ञात डाक कर्मियों के योगदान पर गर्व करें या स्वाभाविक है स्वाधीनता संग्राम के महानायक महात्मा गांधी दाहिने और बाएं दोनों हाथों से प्रेरक पत्र लिखते हैं उन्हें पत्र पोस्ट कार्ड आज भी संचार युग के इस दौर के प्रतीक साक्षी हैं जब इनके माध्यम से भारत जागा था और उठ खड़ा हुआ था।

देश की बात करें तो 1727 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में नियंत्रण डाक व्यवस्था आरंभ हुआ। आज डेढ़ लाख से अधिक भारतीय डाकघर व्यवसाय से कहीं अधिक सेवा केदो के रूप में पारायण 90% ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत है ।

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