दुनिया की हालात को देखकर दुख हो रहा है। फ्रांस में आतंकियों का तांडव, तुर्की में तख्तापलट की कोशिश के बाद का घटनाक्रम, सैंकड़ों मौतें… ऐसी घटनाओं से सीख लेकर हमें एकजुटता दिखानी होगी। सबसे पहले देश है, फिर कुछ और। कोई भी सरकार तब तक विकास के उस शिखर को नहीं छू सकती, जब तक उसे सहयोग न मिले। सामंजस्य न मिले। देश का विकास तभी संभव है जब केंद्र और राज्य सरकारें कंधे से कंधा मिलाकर चलें। किसी भी सरकार के लिए मुश्किल होगा कि वो सिर्फ अपने दम पर किसी योजना को कामयाब कर सके। हम जितना ही अहम विषयों पर एक राय बनाने में कामयाब होंगे, उतना ही मुश्किलों को पार करना आसान होगा। इस प्रक्रिया में हम न सिर्फ सहकारी संघवाद की भावना और केंद्र-राज्य रिश्तों को मजबूत करेंगे बल्कि देश के नागरिकों के बेहतर भविष्य को भी सुनिश्चित करेंगे।
आज के परिदृश्य में आतंकी घटनाओं पर अंकुश लगाने में अपने देश में हम कामयाब हुए हैं, इसे और सुदृढ़ बनाया जा सकता है। केन्द्रीय और राज्यों के खुफिया तंत्र के बीच बेहतर तालमेल से ही आंतरिक सुरक्षा को मजबूत किया जा सकता है। इस महत्वपूर्ण विषय पर विस्तार से और खुलकर चर्चा हो। इस बारे में सोचा जाना चाहिए कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए किस तरह की चुनौतियां हैं, इन चुनौतियों से कैसे निपट सकते हैं, कैसे एक दूसरे का सहयोग कर सकते हैं।
हमें नहीं भूलना चाहिए कि हम उस प्रजातांत्रिक देश में रहते हैं, जहां एकजुटता ही हमारी मिसाल है। शांति हमारा लक्ष्य है। विकास हमारा मुद्दा है। और इन्हें तभी हासिल किया जा सकता है, जब हम राजनीति से परे सारी बातों को सोचेंगे, समझेंगे और खुलकर अपनी बातों को रखकर चर्चाएँ करेंगे। किसी एक व्यक्ति के सोचने भर से देश नहीं बदल सकता, उस सोच को सहयोग और नई दिशा देने से ही प्रगतिशील भारत का निर्माण होगा।