हिन्दु (सनातन)  जाति वादी नहीं

 जातिगत आरक्षण पर बहुत अच्छी जानकारी प्राप्त हुई है एक सनातन धर्म में छुआ छूत कभी था ही नहीं यह 1809 के बाद अंग्रेज़ी शासन के षड्यंत्रों के कारण शुरू हुआ था,स्वयं डॉ भीमराव रामजी सकपाल (अम्बेडकर) ने अपनी के पुस्तक में यह बात लिखी थी,

हजारों साल से शूद्र दलित मंदिरों में पूजा करते आ रहे थे, पर अचानक 19वी शताब्दी में ऐसा क्या हुआ कि दलितों को मंदिरों में प्रवेश नकार दिया गया ?क्या आप सबको इसका सही कारण मालूम है ?या सिर्फ बामनों,राजपूतो,जाटो, सुथारों,या सुनारों को गाली देकर मन को झूठी तसल्ली दे देते हो ?आखिर क्या हुवा था उस समय,अछूतों को मन्दिर में न घुसने देने की सच्चाई क्या है,ये काम पुजारी करते थे कि मक्कार अंग्रेजो के लूटपाट का षड्यंत्र था ?

1932 में लोथियन कॉमेटी की रिपोर्ट सौंपते समय डॉ. आंबेडकर नें अछूतों को मन्दिर में न घुसने देने का जो उद्धरण पेश किया है वो वही लिस्ट है जो अंग्रेजो ने कंगाल यानि गरीब लोगों की लिस्ट बनाई थी,जो मन्दिर में घुसने देने के लिए अंग्रेजों द्वारा लगाये गए टैक्स को देने में असमर्थ थे

षड़यंत्र : 1808 ई० में ईस्ट इंडिया कंपनी पूरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर को अपने कब्जे में लेती है और फिर लोगो से कर वसूला जाता है,तीर्थ यात्रा के नाम पर

हिन्दु के चार ग्रुप बनाए जाते हैं,इसमें से चौथा ग्रुप जो कंगाल है,उनकी एक लिस्ट जारी की जाती है1932 ई० में जब डॉ आंबेडकर अछूतों के बारे में लिखते हैं तो वे ईस्ट इंडिया के जगन्नाथ पुरी मंदिर के दस्तावेज की लिस्ट को अछूत बनाकर लिखते हैं भगवान जगन्नाथ के मंदिर की यात्रा को यात्रा कर में बदलने से ईस्ट इंडिया कंपनी को बेहद मुनाफ़ा हुआ और यह 1809 से 1840 तक निरंतर चला ।

जिससे अरबो रूपये सीधे अंग्रेजो के खजाने में बने और इंग्लैंड पहुंचे ।श्रद्धालु यात्रियों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता था

प्रथम श्रेणी = लाल जतरी

(उत्तर के धनी यात्री )

द्वितीय श्रेणी = निम्न लाल

(दक्षिण के धनी यात्री )

तृतीय श्रेणी = भुरंग

(यात्री जो दो रुपया दे सके)

चतुर्थ श्रेणी = पुंज तीर्थ

(कंगाल श्रेणी, जिनके पास दो रूपये भी नही मिलते थे तलाशी लेने के बाद )

चतुर्थ श्रेणी के नाम इस प्रकार हैं !

01. लोली या कुस्बी

02. कुलाल या सोनारी

03. मछुवा

04. नामसुंदर या चंडाल

05. घोस्की

06. गजुर

07. बागड़ी

08. जोगी

09. कहार

10. राजबंशी

11. पीरैली

12. चमार

13. डोम

14. पौन

15. टोर

16. बनमाली

17. हड्डी

18. मुशहर

19. दुसाध

20. महार

21. बेलदार

 

प्रथम श्रेणी से 10 रूपये

द्वितीय श्रेणी से 6 रूपये

तृतीय श्रेणी से 2 रूपये

चतुर्थ श्रेणी से कुछ नही

अब जो कंगाल की लिस्ट है जिन्हें हर जगह रोका जाता था और मंदिर में नही घुसने दिया जाता था । क्योंकि वो एन्ट्री फीस नही दे पाते थे । ठीक वैसे ही जैसे आज आप ताजमहल /लालकिला में बिना एन्ट्री नही जा सकते । आप यदि उस समय 10 रूपये भर सकते थे तो आप सबसे अच्छे से ट्रीट किये जाते थे

 

डॉ आंबेडकर ने अपनी Lothian Commtee Report में इसी लिस्ट का जिक्र किया है और कहा की कंगाल पिछले 100 साल में कंगाल ही रहे है

बाद में वही कंगाल षडयंत्र के तहत अछूत बनाये गए ।हिन्दुओ के सनातन धर्म में छुआछुत आधारभूत रूप से कभी था ही नहीं ।यदि ऐसा होता तो सभी हिन्दुओ के श्मशानघाट और चिता अलग अलग होती और मंदिर भी जातियों के हिसाब से ही बने होते और हरिद्वार में अस्थि विसर्जन भी जातियों के हिसाब से ही होता ।

 

हिन्दुओ में जातिवाद, भाषावाद, प्रान्तवाद, धर्मनिपेक्षवाद, जडतावाद, कुतर्कवाद, गुरुवाद, राजनीतिक पार्टीवाद पिछले 1000 वर्षों से मुस्लिम और अग्रेजी शासको ने षडयंत्र से डाला है ।जिस पर से कांग्रेस नाम के राजनीतिक दल ने पिछले 70 वर्षो तक अपनी राजनीति की रोटियां सेकीं और जूते में दाल खाई थी ,आज   पार्टियां इसी पदचिन्हो पर चल कर .हम हिन्दुऔ मे जातीवाद का जहर घोल कर .हम हिन्दु को ही समाप्त करने पर लगी है….इसलिए षडयंत्रो को समझो हिन्दुओ…

वेदों की ओर लौटो…

 

2 thoughts on “हिन्दु (सनातन)  जाति वादी नहीं

  1. जय श्रीराम भाई साहब
    उक्त विषय डॉ. अंबेडकर जी की कौनसी पुस्तक में लिखा हुआ हैं, जिसका आपने संदर्भ लिखा हैं ?
    मैं उस पुस्तक को पढना चाहता हूँ |

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