सरदार और मुसलमान


सरदार पटेल का दृढ़ मानना था कि वास्तव में भारत के 90 प्रतिशत मुसलमान हमारे में से ही हैं। उन्होंने मतांतरण कर लिया है लेकिन उनकी संस्कृति नहीं बदली, राष्ट्रीयता उनकी भारतीय है। क्या राष्ट्रीयताएं बार बार बदली जाती हैं ? नहीं……..।
18 जनवरी 1948 को लखनऊ में एक सार्वजनिक सभा में भाषण देते समय उन्होंने कहा, ’’ यहां भारत में जितने भी मुसलमान हैं जो दो घोड़ों की सवारी करने वाले हैं, उनमें से एक एक को यहां से जाना होगा, उनमें से कोई भी इधर नहीं रह सकता। अब हिन्दुस्थान के मुसलमानों की वफादारी का समय आया है। उनमें से प्रत्येक के ह्दय में हिन्दुस्थान के लिए पूरा पूरा प्रेम हो। यदि एक भी ऐसे मुसलमान को जो हिन्दुस्थान के प्रति वफादार है, जिसने स्वाधीनता संग्राम में हमारा साथ दिया है जो हमारे साथ प्रेम से रहा है, यहां से जाना पड़े तो उससे बड़ी लज्जा की बात कोई और हमारे लिए नहीं होगी…….।
वास्तव में कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग जो नेहरू जी के आसपास रहता था वो हमेशा सरदार की मुस्लिम विरोधी और कट्टर हिन्दूवादी नेता की छवि प्रस्तुत करता रहा। वास्तव में सरदार पटेल एक श्रेष्ठ भारतीय और सर्वसमावेशी हिन्दू थे। वे सर्वपंथ समभाव में विश्वास रखते थे। 1928 में जब सूरत जिले के बारडोली में किसानोें का आंदोलन किया जिसमें करीब 80 हजार लोगों की सहभागिता रही उसमें हिन्दू-मुस्लिम सभी सम्मिलित थे। बारडोली सत्याग्रह की शुरूवात वल्लभभाई ने कुरान की आयत पढ़वाकर की थी। आयत को अब्दूल कादिर बवाजिर, ईमाम साहब ने पढ़ा था।
1947 में भारत का विभाजन हुआ। सारे भारत में भय का वातावरण था। रामपुर रियासत (मुरादाबाद जिला) के कई भागों से एक हजार से भी अधिक संख्या में मुसलमान घरबार छोड़कर दिल्ली पलायन कर गए। उनमें वृद्ध, महिलायें, बच्चे थे। सरदार पटेल ने उन्हें पूर्ण सुरक्षा की प्रत्याभूति के साथ रामपुर वापस भेजने की व्यवस्था की। उन्हें भयरहित और शान्ति के साथ अन्य नागरिकों के समान जीवन जीने का अवसर प्रदान किया। इसके लिए रामपुर के तत्कालीन नवाब रजा अली खान ने सरदार साहब को धन्यवाद का पत्र भेजा।
गुरूग्राम के पास पटौदी में भय और आतंक का वातावरण बना था। वहां के बेगम संजीदा सुल्तान और उनके बच्चे असुरक्षित अनुभव करने लगे। सरदार पटले ने उनकी सुरक्षा की व्यवस्था की । संजीदा सुल्तान को उनके बच्चों सहित सेना की मदद से विमान द्वारा उनके पिता नवाब भोपाल हाफिज मुहम्मद हमीदुल्ला खान के पास सुरक्षित पहुंचवाया। इस पर नवाब ने सरदार पटेल को सधन्यवाद पत्र भेजा। यद्यपि नवाब भोपाल ने अंत तक पाकिस्तान के साथ जाने का मानस व्यक्त किया था। उसने मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की आर्थिक सहायता भी की थी।
राजस्थान के अलवर में मेव जाति के मुसलमान देश के विभाजन के समय अपने को हिन्दुस्थान में असुरक्षित समझते हुए पाकिस्तान चले गए थे। 1949 में सरदार वल्लभभाई पटेल के निर्णायक कदम के कारण उन मेवों की भारत में वापसी हुयी।
सरदार को सांप्रदायिक कहने वालों को याद रखना चाहिए कि सूचना और प्रसारण मंत्री के रूप में सरदार ने ही आकाशवाणी की उर्दू सेवाओं को नवजीवन दिया था।

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