जवाहरलाल के साथ सरदार के वैचारिक मतभेद थे। जवाहरलाल ने सारी जिंदगी अपने पांव के तलवों पर धूल तक न लगने दी और सरदार मिट्टी से जुड़े किसान पुत्र थे। जवाहरलाल जी का झुकाव कांग्रेस में जो समाजवादी समूहों के साथ अच्छा मनमेल था। जयप्रकाश नारायण, आचार्य नरेन्द्रदेव, अच्युत पटवर्धन, यूसुफ महेर अली ये लोग सरदार को हमेशा पूंजीवादी कहते थे।
तिब्बत पर सरदार की सोच सही साबित
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 1948-49 में जवाहरलाल हिंदी चीनी भाई – भाई के गीत गा रहे थे। तिब्बत पर चीन की नजर थी तब सरदार ने श्री नेहरू की तिब्बत पर सोच का खुलकर विरोध किया था। सरदार ने कहा था चीन यदि हमारी सीमा के निकट आ गया तो भविष्य मे ंयह हमारे लिए पाकिस्तान से अधिक खतरनाक सिद्ध हो सकता है।
सरदार ने 7.11.1950 को नेहरू को पत्र लिखा ’’चीनी सरकार तिब्बत पर आक्रमण की तैयारी कर रही है। तिब्बत के साथ उनका व्यवहार निरी चालाकी का है। तिब्बतवासियों ने हम पर जो विश्वास किया था, उसका हमने द्रोह किया है।’’ इसके उत्तर में दिनांक 18.11.1950 के पत्र में नेहरू ने लिखा है – ’’ चीन की ओर से हम पर सैनिक हमला किया जायगा, यह मुझे तो सचमुच लगभग असंभव ही लगता है। चीन ऐसा कर सकता है, ऐसी तो कल्पाना भी नहीं की जा सकती । ऐसी किसी भी संभावना से मैं इनकार करता हूँ।’’
आज इतिहास के झरोखे में देखें तो सरदार पटेल की दूरदृष्टि कितनी व्यापक थी इसका पता चलता है। आज हमें मानसरोवर की यात्रा पर जाना हो तो चीन सरकार की आज्ञा आवश्यक है। भारत के लिए चीन बहुत बड़ी समस्या का कारण बना है।
स्वतंत्र भारत के उप प्रधानमंत्री
स्वतंत्र भारत के उपप्रधानमंत्री के रूप योगदान उनके बहुआयामी व्यक्तित्व व कर्तृत्व को दर्शाता है। निम्न बिन्दुओं के माध्यम से इसे समझा जा सकता है :-
हिन्दी और देवनागरी को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कराने में योगदान।
अंग्रेजों के काल में साम्प्रदायिक आधार पर पृथक निर्वाचन व्यवस्था को समाप्त करना।
अंग्रेजों ने राज्यतंत्र चलाने के लिए आईपीएस कैडर पद्धति अपनायी थी। सरदार ने उसे हटाकर भारतीय व्यवस्था के अंर्तगत आई.ए.एस., आई.पी.एस. सेवा प्रणालीका गठन कर देश के प्रशासनतंत्र को एक नवीन स्वरूप दिया। सेवाओं के भारतीयकरण की नींव रखी।
वर्तमान में भारतीय नागरिकों को जो संविधान प्रदत्त मूलाधिकार है तथा जो प्रान्तों की व्यवस्था का स्वरूप है वह सरदार पटेल की अध्यक्षता वाली उपसमितियों की संस्तुतियों पर ही आधारित है।
देश के विभाजन उपरान्त कुछेक महीनों में लगभग 60 लाख हिन्दु व सिक्ख जो पश्चिम पाकिस्तान से तथा 20 लाख हिन्दू जो पूर्वी पाकिस्तान (आज के बांग्लादेश) से भागकर , अपना सबकुछ छोड़कर हिन्दुस्थान आये थे उनके राहत और पुनर्वास की व्यवस्था कराने का बड़ा कार्य श्री वल्लभभाई ने ही किया था।
करीब 25 लाख मुस्लिम जो भारत से पाकिस्तान गये उनके मार्ग को सुरक्षित कराने में भी सरदार की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
काकरापारा और उकई जैसे बांधों के निर्माण में उनकी अग्रणी भूमिका रही थी।
गांधी स्मारक निधी की स्थापना।
कमला नेहरू अस्पताल की स्थापना।
आज गुजरात के आणंद जिल में वल्लभविद्यानगर भी शिक्षा का एक बहुत बड़ा केन्द्र बना है। 1947 में वल्लभभाई पटेल ने अपने भाई स्व. विट्ठलभाई की स्मृति में विट्ठलभाई महाविद्यालय की स्थापना की।