सरदार पटेल नेे समाज के सामाजिक , सांस्कृतिक , राजनैतिक , आर्थिक क्षेत्रों में अपनी अन्तिम श्वास तक कार्य किया। भारतीय संस्कृति , मूल्य और नैतिकता उनके पथ प्रदर्शक रहे। वे साहसी , वीर , दृढ़निश्चयी और असीम देशभक्त थे। कांग्रेस के वे नेता थे, नीति – निर्माता थे, संगठन कर्ता थे, अनेक विध आंदोलनों के सूत्रधार थे। उपप्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी उत्तम प्रशासक की छवि निखर कर सामने आयी।
लोकप्रिय सरदार
वे स्पष्टवक्ता थे, बोलते समय ह्दय की गहराई से बोलते थे। आमसभा में भाषण करते समय वे जनसामान्य के मनको छूने वाली बात रखते थे। वे कितने लोकप्रिय रहे होंगे इस का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 3 जनवरी 1948 को उन्होंने कोलकाता एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया उसमें 10 लाख से अधिक लोग उपस्थित थे। आज तो आमसभा में लोगों को वाहनों से लाये जाने एवं भोजनादि का प्रबंध भी होता है पर उनदिनों इस प्रकार की व्यवस्थायें नहीं होती थीं। सरदार के प्रति जनप्रेम, जनादर , जनस्वीकृति का अनुमान इससे सहज ही लगाया जा सकता है।
12 मार्च 1930 में महात्मा गांधी जी ने नमक सत्याग्रह करने का निश्चय किया। अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से वलसाड जिले के दांडी गांव तक पैदल यात्रा करने का मार्ग तय किया गया। इस कार्यक्रम के प्रचार और जनजागरण का जिम्मा सरदार पटेल को सौंपा गया। श्री पटेल को 7 मार्च को खेड़ा जनपद के समुद्रतटीय रास गांव में अंग्रेजों द्वारा बंदी बनाया गया। यह घटना सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह भंग हेतु दाण्डी यात्रा प्रारंभ करने से पांच दिन पूर्व घटी।
वल्लभभाई दिनरात गांव गांव भ्रमण कर लोगों में चेतना जगा रहे थे। उन्हें ब्रिटिश सत्ता के प्रति विद्रोह हेतु प्रेरित करने के आरोप में गिरफ्तारी के कुछ ही घंटों बाद लगभग 75000 लोग विरोधस्वरूप अहमदाबाद की सड़कों पर आ गये थे। वल्लभभाई के मार्ग पर जाने के लिए अड़े थे। उनकी लोकप्रियता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है।
किसानों के मसीहा
खेड़ा सत्याग्रह
गुजरात का खेड़ा जिला 1918 में गंभीर सूखे से पीड़ित था और किसानों ने करों की उच्च दर से अंग्रेजों से राहत मांगी थी। जब इसे अस्वीकार कर दिया गया तो श्री सरदार के नेतृत्व में किसानों ने आंदोलन किया जिसका परिणाम सुखद रहा और सरकार ने उस वर्ष के लिए कर में राहत दी जिसके परिणाम स्वरूप सरदार के सार्वजनिक जीवन की पहली शुरूवात हुयी।
बारडोली सत्याग्रह
1928 में बंबई प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में 30 प्रतिशत की वृद्धि की । इससे सूरत के पास स्थित बारडोली के किसानों में व्यापक रोष था। वहां किसान महात्मा गांधी से मिले, महात्मा गांधी जी ने किसानों को सरदार पटेल से संपर्क करने के लिए कहा। किसान श्री वल्लभभाई पटेल से मिले और आंदोलन का नेतृत्व करने को कहा। किसानों से व्यापक विचार विनिमय करके श्री पटेल ने सरकार को कर ना देने के संदर्भ में असहकार आंदोलन का बिगुल फूंका और गांव गांव पदयात्रा की। अंगेज सरकार ने किसानों पर काफी अत्याचार किए। आंदोलन कुचलने के लिए अनेक हथकंडे अपनाये अंततः किसानों की एकजुटता देखकर सरकार को विवश होना पड़ा और लगान से संबंधित मांगें माननी पड़ीं और लगान की दर घटाकर 6.3 प्रतिशत किया गया। किसानों के आंदोलन को यश मिला। इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने श्री वल्लभभाई पटेल को ’सरदार’ की उपाधि प्रदान की।
अमूल डेयरी और सरदार
स्वतंत्रता पूर्व दूध ठेकेदार किसानों से दूध खरीदकर मुंबई सहित अन्य स्थानों पर बेचते थे। किसानों में दूध उत्पादन के मूल्य को लेकर असंतोष रहाता था। 1943 में खेड़ा जिले के दूध उत्पादक किसानों ने तो हड़ताल रख दी थी। 1946 में सरदार पटेल जब खेड़ा जिले में गये तो इन ठेकेदारों द्वारा दूध खरीद की प्रक्रिया से किसानों में व्याप्त रोष को देखकर श्री पटेल ने किसानों को सहकारी समिति बनाने का प्रस्ताव रखा और पाॅश्चराइजेशन प्लांट लगाने को कहा और आश्वस्त किया कि इस प्लांट का दूध बंबई प्रान्त की सरकार खरीदेगी। किसानों ने खेड़ा जिला सहकारी दूध उत्पादक संघ लिमिटेड नाम से सहकारी समिति बनाई जिसे बाद में ’अमूल’ नाम से जाना जाता है। आज आणंद स्थित यह दूध उत्पादक सहकारी संघ एक ब्रांड है जिसके माध्यम से दूध से ’श्वेत क्रांति’ देश में हुयी। सरदार पटेल की प्रेरणा से और वर्गीस कुरियन के कर्मठ प्रयास से और त्रिभुवनदास पटेल के कर्तृत्व के कारण अमूल आज देश का एक गौरवबिंदु है। आज दूध और दूध उत्पादों के क्षेत्र में सबसे बड़े उत्पादक भारत देश की उपलब्धि में अमूल का अतुलनीय योगदान है। आज अमूल प्रतिदिन 3 मिलियन उत्पादकों के साथ 15712 ग्राम सहकारी समितियों से लगभग 12 मिलियन लीटर दूध एकत्र करता है जिसे भारत में लगभग 10 लाख खुदरा विक्रेताओं के द्वारा बेचा जाता है।
बहुत अच्छा जानकारी आपके द्वारा दिया जा रहा है।