देश में सरकारी नौकरी मिलने के लिये लोगों द्वारा हर तरह के प्रयास किये जा रहें है और वह ऐसे है जिससे योग्य लोगों की सुलभता पर प्रश्नचिन्ह लग रहा है। क्या वाकई देश से योग्यता खत्म हो गयी है या खच्चरों ने उनकी जगह ले ली है. इस बात पर प्रयास करना कि क्या सही है या क्या गलत इस ओर सोचने का पहल करना चाहिये। सभी जो अपने आप को बुद्धिजीवी कहते है उन्हें एकमत हो कर विचार करना चाहिये।
सही मायने में देखा जाय तो भारतीय राजनीति का यह पक्ष सदैव से रहस्यमयी रहा है। देश के किसी भी नायक ने इस दिशा पर आज तक कोई काम नही किया और न ही करना चाहते है।देश के प्रति उनकी देश भक्ति इसी बात से प्रतीत होती है कि कभी भी उन्होने आजादी के बाद मिल रहे आरक्षण पर कोई विचार नही किया। लोगों को हक मारकर दूसरों को देना ही इनकी सदैव से फिदरत रही है ताकि लोगों को अहसास हो कि माहौल बदल गया है लेकिन रजवाडा अभी भी कायम है। क्या आज के माहौल में जब जाति पांति गायब हो चुकी है लोग एक दूसरे को स्वीकार कर रहें है रिश्ते हो रहें है तब भी इसकी जरूरत है? शायद नही फिर यह परम्परा का डामा क्यूँ, इस पर रोक लगनी चाहिये।
जहां तक सरकारी नौकरी की बात है तो सरकार को स्पष्ट कर देना चाहिये कि देश की सुरक्षा से बढकर कोई काम नही है और यह काम सेना में सिर्फ होता है बाकि जगह सरकारी नौकरी करने वाले लोग देश को खोखला करने में लगे होते है । पीढी दर पीढी से यही काम चल रहा है और आने वाले समय में भी ऐसे ही चलता रहेगा इस बात का अंदेशा कही न कही लगा रहता है। सरकार को चाहिये कि देश हित में जैसा कि अन्य कुछ देशों में होता है कि हर नागरिक को सेना में एक साल या दो साल काम करने के बाद ही सरकारी नौकरी में रखा जाता है उसी तरह भारत में भी होना चाहिये । किसी भी बार्डर पर काम दे लेकिन उसके बाद ही सरकारी नौकरी का फार्म भर सके ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये ।
जहां तक नेताओं की बात है तो उसके अपने परिवार जैसे बेटे बेटी या बहू दामाद में से कोई दो सेना में काम किये हो तभी उन्हें चुनाव लडने का मौका दिया जाय। लेकिन यदि वह खुद सेना में रहे है तो ही उन्हें सांसद बनने का मौका दिया जाना चाहिये । प्रधान से लेकर विधायक या चेयरमैन तक यह सुनिश्चित होना चाहिये कि कितने साल सेना में काम करने के बाद किस पद पर चुनाव लडने योग्य होगें।यह इसलिये भी जरूरी है कि लोग देशभक्ति की बात राजनीति में आने के बाद कम करते है और देश को तोडने की ज्यादा , जो कि गलत है ऐसे लोगों के लिये यह देश नही बना है और न ही देश के अस्मिता के साथ उन्हें खिलवाड करने की खुली छूट दी जा सकती है।आज तक यही होता आया है और आने वाले समय में भी यही होता रहें यह बात ठीक नही है।
इसके अलावा सरकारी करण की व्यवस्था केन्द्रीय स्तर पर हो , चाहे जो सरकारी नौकरी हो उसे केन्द्र से ही दिया जाय और देश मे कहीं भी उसका स्थानान्तरण कर सेवायें ली जा सके। अभी सरकारी कर्मचारी प्रदेश के अंदर ही नौकरी करता है या जोन के अंदर नौकरी करता है , जिससे क्षेत्रवाद को बढावा मिलता है ,केन्द्रीयकरण कर पूरे देश में भेजने पर यह क्षेत्रवाद खत्म होगा और देश का एकीकरण होगा जो देशभक्ति व अन्य विसंगतियों से दूर होगा।
यदि सरकारी नौकरी व चुनाव लडने के लिये प्रयास करने वाले लोगों के लिये सेना में काम करना अनिवार्य कर दिया जाय और जितने साल काम किया है उस हिसाब से नौकरी के लिये फार्म लिये जाय व चुनाव लडने दिया जाय तो यह मामला पूरी तरह से खत्म हो जायेगा। इसका एकमात्र कारण यह है कि भारत एक ऐसा देश है जहां सेना में जाकर शहीद होता हर पडोसी देखना चाहता है लेकिन अपने परिवार के किसी सदस्य को सेना में नही भेजना चाहता , वह यह तो चाहता है कि सरकारी नौकरी कर बिना किसी काम के लडका पगार लाये और रिश्वत के पैसे से ऐश करे लेकिन देश के प्रति कुछ करे यह उनसे बर्दाश्त नही होता।इसलिये ही देश पीछे है हमें इस पर कुछ काम कर देश को आगे बढाना चाहिये।