इस समय पूरे देश में नए संसद भवन और उसके उद्घाटन को लेकर बहुत चर्चा हो रही है। नए संसद भवन में धर्मदंड राजदंड (Sengol) सेंगोल को स्पीकर की सीट के बगल में स्थापित किया गया है। जिसे लेकर तमाम प्रतिक्रिया हो रही हैं एक ओर विपक्ष इसे तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहा है तो वहीं दूसरी ओर बुद्धिजीवी इसके औचित्य पर प्रश्न उठा रहे हैं।
प्राचीन भारत के समृद्ध गौरव के प्रतीक सेंगोल के शीर्ष पर नंदी को बनाया गया है जो कर्म तथा न्याय का प्रतीक है। सेंगोल एक दंड नुमा आकृति का राजदंड है, यह साम्राज्य की राज शक्ति का प्रतीक है। उसकी लंबाई तकरीबन 5 फीट है। ये परम्परा युगों पुरानी है ।सेंगोल’ तमिल शब्द ‘सेम्मई’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘नीतिपरायणता’। ‘सेंगोल’ शब्द संस्कृत के ‘संकु’ (शंख) से भी आया हो सकता है। सनातन धर्म में शंख को बहुत ही पवित्र माना जाता है। मंदिरों और घरों में आरती के समय शंख का प्रयोग आज भी किया जाता है।
सेंगोल भारत का एक प्राचीन स्वर्ण राजदण्ड है। इसका इतिहास चोल साम्राज्य से जुड़ा है। सेंगोल जिसे हस्तान्तरित किया जाता है, उससे न्यायपूर्ण शासन की अपेक्षा की जाती है।चोल काल के दौरान ऐसे ही राजदंड का प्रयोग सत्ता हस्तांतरण को दर्शाने के लिए किया जाता था। उस समय पुराना राजा नए राजा को इसे सौंपता था।राजदंड सौंपने के दौरान 7वीं शताब्दी के तमिल संत थिरुग्नाना संबंदर द्वारा रचित एक विशेष गीत का गायन भी किया जाता था। कुछ इतिहासकार मौर्य, गुप्त वंश और विजयनगर साम्राज्य में भी सेंगोल को प्रयोग किए जाने की बात कहते हैं।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन सत्ता का हस्तांतरण करने के लिए कागजी प्रक्रिया पूरी कर रहे थे। इस दौरान उनके मन में यह सवाल आया कि आखिर भारत की स्वतंत्रता तथा इसकी सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक क्या होगा?
जवाहर लाल नेहरू जी के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था। इसीलिए उन्होंने लॉर्ड माउंटबेटन का यह सवाल भारत के पूर्व गवर्नर जनरल श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के पास लेकर गए।दक्षिण भारत से संबंध रखने वाले चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जी को भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का बखूबी ज्ञान था। इसीलिए उन्होंने सेंगोल राजदंड का सुझाव उनके सामने रखा।दक्षिण भारत और तमिलनाडु में सेंगोल राजदंड को आज भी सत्ता की शक्ति के साथ निष्पक्ष और न्याय प्रिय शासन का प्रतीक माना जाता है।
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जी के सुझाव अनुसार जौहरी द्वारा सोने के सेंगोल का निर्माण करवाया गया तथा शीर्ष पर नंदी को विराजमान कराया गया। सेंगोल राजदंड हस्तांतरण के दौरान राजगुरु द्वारा ही दिया जाता है। इसीलिए चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने इसकी जिम्मेदारी थिरुवावदुथुरई के 20 वें गुरु महासन्निधानम श्रीलाश्री अंबलवाण देसीगर स्वामी जी को दी गई। कहा जाता है कि उस दौरान उनकी तबीयत खराब थी लेकिन उन्होंने यह जिम्मेदारी उठाई।तैयार होने के बाद इस राजदंड को थिरुवावदुथुरई मठ के राजगरु द्वारा लॉर्ड माउंटबेटन के पास भेज दिया गया।कहा जाता है कि 14 अगस्त 1947 के दिन अर्धरात्रि के करीब यह स्वर्ण सेंगोल राजदंड तमिलनाडु की जनता द्वारा भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु जी को सौंप दिया गया। तभी से यह सेंगोल राजदंड भारत की आजादी और अंग्रेजों द्वारा भारत की सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक बन गया।
भारतीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा प्रदान की गई जानकारी के मुताबिक सेंगोल राजदंड अभी तक प्रयागराज के आनंद भवन संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया था। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को इस राजदंड के बारे में पता चला तो उन्होंने इसकी छानबीन कराई और इसी दौरान सेंगोल से जुड़ी यह सभी जानकारियां मिली।इसकी सेंगोल की स्थापना का मुख्य उद्देश्य ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व प्रकाशित करना तथा हजारों साल पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित करना है।