विश्व में भारत अपनी गरिमामई उपस्थिति दर्ज कराने की दिशा में एक और कदम आगे बढ़ गया है प्रधानमंत्री ने तमाम विरोध के बावजूद आज संसद के नए भवन का लोकार्पण कर दिया जिसमे आने वाली सांसदों की बैठक के साथ-साथ अन्य चीजों की भी सुविधाएं होंगी ।जरूरत भी थी क्योंकि जैसे जैसे समय जा रहा है वैसे वैसे सांसदों की संख्या भी बढ़ेगी पिछला संसद उन सांसदों को समेटने के लिए पर्याप्त नहीं था इसलिए इस भवन की महती आवश्यकता थी जो पूरी तरह से हाईटेक हो और सारे संसाधन उसके अंदर ही निहित हो।
पिछले कुछ दिनों की बात करें ,तो संसद को लेकर के काफी का प्रतिरोध था ।विपक्षी दल उद्घाटन कार्यक्रम में आने के लिए तैयार नहीं थे इसका एकमात्र कारण यह था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सदन का उद्घाटन न करें बल्कि राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू करें ।अजीब सा सवाल था इसके पहले भी ऐसा हुआ है कि प्रधानमंत्री ने भवनों का उद्घाटन किया है आधारशिला रखी है और इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है कि प्रधानमंत्रियों ने कई बार राष्ट्रपति के बगैर भी कार्यक्रमों का अनावरण किया है लेकिन यह पहली बार था कि किसी चाय वाले ने किसी संसद का उद्घाटन किया यह बात लोगों को पच नहीं रही थी।
विपक्षी दलों की बात करें तो विरोध करने वाले सभी दल परिवारिक व्यवस्था वाले दल हैं जिनमें पीढ़ी दर पीढ़ी शासन करने की आजादी की सोच रखने की प्रमुख प्राथमिकता है। समाजवादी पार्टी बीजू जनता दल व अन्य कई दल ऐसे हैं जो कि परिवार वादी व्यवस्था के पोषक हैं। लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास नहीं रखते इसलिए उन्होंने विरोध रखा और आधा अधूरा विरोध रखा अगर वाकई उनको विरोध करना था तो उन्हें पूर्ण विरोध के साथ यह कहना था कि हम इस संसद में प्रवेश नहीं करेंगे लेकिन यह बात किसी भी विरोध करने वाली पार्टी ने नहीं कहा ।वह संसदीय प्रणाली में होने वाली कार्रवाई में हिस्सा लेंगे उसके अंदर जाएंगे लेकिन उद्घाटन समारोह में नहीं आएंगे क्योंकि उसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है।
ऐसा नहीं है कि नरेंद्र मोदी का विरोध ही हुआ है नरेंद्र मोदी के समर्थन में भी कई दल आए हैं और यह वह है जो पक्ष में बैठते हैं ।जिन प्रमुख लोगों ने विरोध किया है ,वह सारे दक्षिण के हैं ।जहां भारतीय जनता पार्टी का जनाधार नहीं है ,हिंदुत्व प्रभावशाली नहीं है और वहां लगातार धर्म परिवर्तन के कार्यक्रम चलते रहे इसलिए लोगों का विश्वास हिंदुत्व में नहीं है इसका फायदा वहां के राजनीतिक दल उठा रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है दक्षिण भारत की जनता भी अब इस बात को समझ चुकी है कि संसद के उद्घाटन का विरोध इसलिए हो रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसका उद्घाटन करेंगे।
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे अच्छी बात जो रही वह यह रही कि लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले सारे दल प्रधानमंत्री के इस कार्यक्रम में आए और उनको अपना समर्थन दिया। जिसमें बसपा की मायावती ,शिरोमणि अकाली दल के सदस्य व अन्य दलों के सदस्य की भूमिका प्रभावशाली रही हालांकि शिवसेना ने अपनी तरफ से सारी कोशिशें की ,एक पेज का संपादकीय भी लिखा और बताया कि कैसे या गलत हो रहा है। उन्होंने इस मामले में लालकृष्ण आडवाणी जी को भी घसीट लाए किंतु बात बनी नहीं, जो होना था ,वह हो कर ही रहा ,इसे कहते हैं समय।
फिलहाल संसद के उद्घाटन को लेकर के जो सबसे बड़ा अवरोध था वह यह था कि अगर यही उद्घाटन गांधी परिवार करता तो किसी को कोई दिक्कत नहीं थी। गांधी परिवार को भी लगता है कि यह पहली बार है कि गांधी परिवार के किसी सदस्य ने उद्घाटन नहीं किया बल्कि एक ऐसे आदमी ने उद्घाटन किया जिसका राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं है लेकिन समय बदलता है उनके इस मलाल से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता ।यह पहली बार है कि गांधी परिवार ने किसी प्रमुख चीज का उद्घाटन नहीं किया ।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा उद्घाटित किए गए संसद को शत शत नमन या भारत की पहली पहचान बने और सबसे खास बात वीर सावरकर को भारत की तरफ से दिया हुआ यह बहुमूल्य तोहफा है जो उनके जन्मदिन पर दिया गया वंदे मातरम।