‘डर’ नाम दे सकता हूं इसको। मरने का खौफ, एक वायरस ने पूरी दुनिया घुमा कर रख दी है। पता है, यहॉं हर तरफ शांति है। ना कोई शोर, ना कोई पॉल्युशन। लोग भी नहीं दिखते। कोई नया चेहरा देखे भी वक्त हो गया। चाय के कप के साथ जब बालकनी में जाता हूं तो महसूस होता है कि बाहर का सन्नाटा और अंदर का शोर आपस में टकरा रहे हैं। मैं आजकल खुद ही शब्दों को अपनी सोच की भट्टी में भुनता रहता हूं। लगता है कि शायद कुछ अच्छा बन जाए। अब ये मत कहना कि मेरे पास कोई काम नहीं है। दिन भर लोग फॉर्वर्ड मैसेज भेजते हैं। जिसको जो जानकारी मिलती है, वो उसको सबको बताना चाहता है। मैं हर दिन वो सारे फोटोज और वीडियोज डिलिट करता हूं। कभी कुछ पढ़ता हूं तो कभी कुछ लिखता हूं। दोस्तों, परिवार वालों को वीडियो कॉल करके बातें करता रहता हूं। मुझे चाहे जितना भी वक््त मिल जाए, पर रोना हमेशा यही रहता था कि समय नहीं है। अब मैंने वो सारे रोने बंद कर दिए हैं।
लोगों को हैरां परेशां देखकर मेरी हैरत बढ़ जाती है। ये जो घर में रहने वाला मामला है, वो तो मैं हमेशा से करता आया हूं। आज की स्थिति मुझे पहले से बेहतर क्यों लग रही है? शायद इसलिए कि हमेशा अकेले रहने वाला मैं अभी अपने परिवार के साथ हूं। जो सोच मुझे बेचैन करता है, वो है उन लोगों की तकलीफ, जो फंसे हैं। इस वायरस से, गरीबी से, पैसों की कमी से, परिवार की दूरी से .कुछ ऐसे भी हैं, जो फर्ज में लगे हैं। मैं इसे ‘फंसना’ नहीं कहूंगा क्योंकि मैं उनकी इजज्त कम नहीं करना चाहता। पता है, दिन में एक बार तो अपने खून को उबालता भी हूं। खबर मिलती है कि डॉक्टर को घर खाली करने के लिए बोला गया, क्योंकि वो हॉस्पिटल जाता है। बंद में भी लोग तफरी लगाने रोड पर जाते हैं और पुलिस को परेशानी होती है। कुछ लोगों का ये सोचना कि उनकी सोसाइटी में पैसे वाले क्लासीक लोग रहते हैं तो उन्हें कुछ नहीं होगा, मुझे गुस्सा दिलाता है। कोशिश करके भी मन सहज नहीं हो पाता।
मैंने मेरे मन को टटोला है, डर भी बैठा है अंदर। पूरी दुनिया की तकलीफ तो डराती ही है, मेरे अपनों का क्या होगा, ये चिंता भी हमेशा सर उठाती है। जिनसे मिलना रह गया, उनसे कब मिलना होगा? क्या बहुत लोग अपनों को खो देंगे? क्या ये हम सबकी जिंदगी के सबसे काले दिनों में से एक है? क्या इन हालातों के बाद लोग बदल जाएंगे? उनकी सोच में परिवर्तन आएगा? लिस्ट लंबी है।मैं नहीं जानता कि जिंदगी कितनी और कब तक की बची है। मैं बस इतना जानता हूं कि ये सब एक दिन बदल जाएगा। कई लोग शायद उस बदले दिन को देखने के लिए ना रूक पाएं। शायद मैं भी नहीं ? पता नहीं। ‘घर में रहना मुश्किल है’, ‘यार, काम करते करते हालत खराब हो गई है’ ‘हमारी तो हमेशा लड़ाई होती है’ ‘बच्चों को पूरे दिन झेलना पड़ता है’। अगर आप इनमें से कोई भी एक डायलॉग बोलते हैं, तो यकीं कीजिए, आप बहुत अच्छी स्थिति में हैं क्योंकि आप ये सब बोल पा रहे हैं। जो वायरस के शिकार हैं और परिवार से दूर एक कमरे में बैठे हैं, उनसे पूछो कि आप फिलहाल कितने सुख में हैं। कुछ लोग तो आपकी खुशी को बताने के लिए इस दुनिया में हैं भी नहीं।
मैं हमेशा ही खुद से खुद का सफर करना चाहता हूं, इस हालात को मैं एक मौका मानकर वो सफर कर रहा हूं। जी रहा हूं मैं हर लम्हा, जैसे ये पल शायद सबसे कीमती हैं। आने वाला कल मैं नहीं जानता कि वो क्या लेकर आएगा।मैं आज को जानता हूं, जो मुझे आपके साथ रहने का मौका दे रहा है। देश की राजनीति पर चल रहे एक कार्यक्रम को देख रहा था।सोच रहा था कि जब वैक्सीन बन चुकी थी ....तब एक साजिश के तहत मुसलमानों और तमाम मुस्लिम मौलाना मौलवियों ने... यह सवाल उठाने खड़े कर दिए कि ....जब तक वैक्सीन पर हलाल सर्टिफिकेट नहीं लगेगा ...तब तक हम वैक्सिंन नहीं लगाएंगे। महीनों तक मुस्लिम समुदाय वैक्सीन ...हलाल है कि हराम है ....इस पर बहस करता रहा .।यहां तक कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पढ़े-लिखे प्रोफेसर ने भी यह सोचकर वैक्सीन नहीं लगवाया यह इस पर हलाल सर्टिफिकेट नहीं है ।
नेता भी पीछे नही रहे, कांग्रेसी नेता मनीष तिवारी ने वैक्सीन पर यह कहा कि …नरेंद्र मोदी भारतीयों को गिनी पिग बना रहे हैं …छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री ने यहां तक कह दिया कि ….वह अपने यहां कोबिशिल्ड को मंजूरी नहीं देंगे …क्योंकि उन्हें इस पर विश्वास नहीं है। मीडिया ने तो हद ही कर दी।े खुलेआम भारतीय वैक्सीन पर सवाल उठाते हुए बीजेपी प्रवक्ता के साथ बहस में कहा …..आप बीजेपी वाले हैं …आपको भारत में बनी वैक्सीन पर भरोसा है ….आप वैक्सीन लगवाईये ….मैं तो बिल्कुल नहीं लगवाउंगा …क्योंकि मुझे वैक्सीन पर बिल्कुल भरोसा नही है।आम आदमी पार्टी के आईटी सेल संयोजक ….अंकित लाल ने वैक्सीन पर सवाल उठाते हुए तमाम ट्वीट किए… राघव चड्ढा ने एक ट्वीट में कहा कि आखिर मोदी को वैक्सीन की इतनी जल्दी क्या है ….कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णन ने …ट्विटर पर वैक्सीन का बेहद घटिया मजाक बनाया ….और भारत की वैक्सीन को खुलेआम फर्जी वैक्सीन कहा…वामपंथी कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य ने ….भारत की वैक्सीन का बेहद अभद्र कार्टून बनाया …उस कार्टून के अनुसार भारत की वैक्सीन पानी और ग्लूकोस का मिश्रण भर है …समाजवादी पार्टी के प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ….प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि ….उन्हें वैक्सीन पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है …यह तो बीजेपी की वैक्सीन है …मैं बीजेपी की वैक्सीन कभी नहीं लगाऊंगा। इतने बड़े पैमाने पर वैक्सीन के प्रति नकारात्मकता फैलाया गया ….यहां तक कि यह कहा गया कि अगर वैक्सीन कारगर होती तो ….खुद मोदी क्यों नहीं लगवा रहे ….और इस नकारात्मक प्रचार की वजह से…. लोगों के मन में …वैक्सीन के प्रति शंका उत्पन्न हुई —.हर वैक्सीन की सेल्फ लाइफ होती है …. वैक्सीन के करोड़ों डोज स्टोर में यूं ही पड़े रहे ….और लाखों डोज वैक्सीन की खराब हो गई ।
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अब ऐसे में नरेंद्र मोदी ने ….वैक्सीन डिप्लोमेसी किया ….तमाम देशो को भेजा …यहां तक कि सऊदी अरब को भी …. उन्होंने कई लाख डोज वैक्सीन दिया और जब भारत पर गंभीर आपदा आई ….तब हर उन देशों ने ….भारत को भी दिल खोल कर मदद किया …जिन्हें भारत ने वैक्सीन दिया था ।’सोचिए भारत का विपक्ष कितना गिर गया है …अब वही विपक्ष कह रहा है कि ….मोदी हमें वैक्सीन क्यों नहीं दे रहे’।