कुछ वर्ष पहले जब मैं कहता था कि राजनीति में अच्छे लोगों को आना चाहिए, तो ज्यादातर लोग सशंकित नजरिये से देखते थे। कुछ तो यह भी कहते कि राजनीति में अच्छे लोगों की जरूरत ही नहीं है। उनकी धारणा थी कि इस क्षेत्र में सिर्फ अपना हित साधने वाले लोग ही आते हैं। उनकी स्पष्टवादिता कभी-कभी मुझे सोचने के लिए मजबूर कर देती थी। मुझे लगता कि अमुक व्यक्ति सच ही कह रहा है। लेकिन यह धारणा इधर कुछ दिनों से बदली है।
मई में एनडीए सरकार के दो वर्ष पूरे हो जायेंगे, लेकिन पिछले दो सप्ताह के घटनाक्रमों से कुछ ऐसा एहसास हो रहा है कि हम बदलाव की ओर जा रहे हैं। पिछले 25 वर्षों से हर दिन सैकड़ों लोगों से मिल कर उनकी बातों को जानने का अवसर मुझे मिलता रहा है। इससे देश काल की घटनाओं पर प्राप्त हुए अनुभवों के आधार पर अपने विचारों को पुष्ट करने का अनवरत क्रम चल रहा है।
हालांकि किसी एक व्यक्ति पर विचार व्यक्त करना ठीक नहीं है लेकिन लोगों से जो प्रतिक्रियाएं मुझे मिली हंै उसे यहाँ रखना मैं समझता हूँ …..उचित है। क्योंकि यह सामान्य घटना नहीं है बल्कि आर्थिक जगत को नई दिशा की ओर अग्रसर करने वाला है। आर्थिक जगत में विजय माल्या की पहचान एक स्टार की है। राजनीतिज्ञों से व्यक्तिगत तौर पर जान-पहचान , जिन्दगी को अलग अंदाज से जीने के लिए वे जाने जाते हैं। हर दल के लोगों से घनिष्ठता की वजह से लोगों में यह धारणा थी कि उनको कोई छू भी नहीं सकता है। सरकारी तंत्र की हिम्मत नहीं है कि वे उन्हें कुछ कर सकें।
मीडिया में उनके बारे में खबर आने के बाद लगातार लोग इस तरह के भाव रख रहे थे। जब एक दिन वे देश से फरार हो गये तो कुछ लोगों ने मुझसे यह पुछना प्रारंभ कर दिया कि अरे भाई विजय माल्या को कौन बचा रहा है। यह सरकार भी कुछ करेगी या नहीं। अरे यहां बड़े लोगों को कुछ नहीं होता है।
मैं यहां स्पष्ट करना चाहूंगा कि ऐसी बातें करने वाले आम लोगों से लेकर बड़े लोग तक थे। लेकिन पता नहीं अचानक अब लोगों के सुर बदल गए हैं । वे कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री विजय माल्या को नहीं छोड़ेंगे। उनके सख्त रूख के कारण ही एजेंसियां हर दिन पेंच कस रही हैं वरना इन जैसे मामलों में ऐसा कहां होता है। यहां तक कि प्रधानमंत्री के खिलाफ भी जो लोग बोलते थे वे भी अब उनकी तारीफ कर रहे हैं। यह बदलाव सुखद है।
खासकर इस बात को लेकर कि मैं खुश हूं कि अब लोगों का राजनीति में विश्वास लौटा है। या लौटना शुरू हो गया है। वैसे तो राजनीति में शुचिता का आगमन पहले हो चुका है, लेकिन मुझे लग रहा है कि माल्या की वजह से अब आर्थिक क्षेत्र में शुचिता का प्रारंभ होगा। बैंकिंग आर्थिक जगत की रीढ़ है। इस रीढ़ को मजबूत करने की दिशा में प्रयास शुरू हो गये हैं। अब तक तो इसे सिर्फ खोखला किया जा रहा था।
कुछ मुट्ठीभर धनवान लोगों के पास तकरीबन छः लाख करोड़ रूपये हैं। यह पैसा देश के गरीबों का, आम आदमी का पैसा है। गरीबों के पैसे को अपनी जेब में रखकर दुनिया में अमीर होने का ढोल पीटनेवालों की पोल अब खुल चुकी है। पहले सहारा ग्रुप, अब माल्या। कल किसी और का पर्दाफाश होगा। जनता उनकी हकीकत से वाकिफ होगी। उनकी कारगुजारियों से परिचित होगी।
अच्छी बात यह है कि दुनिया यह भी देखेगी कि कार्यवाही कैसे होती है। नियम वही हैं , सिस्टम वही हैं लेकिन राजनीति करने वाले लोग अलग हैं। वे राजनीति अपने हित के लिए नहीं कर रहे हैं बल्कि उनके लिए देशहित ही सर्वोपरि है। वे मित्र हो सकते हैं , दोस्त हो सकते हैं लेकिन निर्णय के वक्त राष्ट्रहित ही सर्वोपरि होगा। यदि उन्होंने पार्टी के दिए गए संस्कारों को आत्मसात किया होगा, तो उन्हें आम आदमी के लिए दर्द भी होगा। वह आम आदमी के जख्मों को खुरचने वाला नहीं मरहम लगाने वाले की भूमिका में होगा।
गरीबों, मजदूरों, छोटे व्यापारियों को जन धन माध्यम से बैंक की शाखाओं से जोड़ने वाली सरकार अब उन छिद्रों को बंद करने की ओर अग्रसर है जो वर्षों से इसका लाभ उठा रहे थे। बगैर डर या भय के; इस निश्चिंतता में थे कि उनके गिरेबां तक कोई नहीं पहुंचेगा, उन्हें खुली छूट है, आजादी है।
सरकार सख्ती से आगे बढ़ रही है आवश्यकता है कि बैंकों से लोन लेने वाले लोग खुद ब खुद बकाया चुकता कर दें। करोड़ों रूपये हड़पने वालों को अब एक पैसा भी रखने की इजाजत नहीं है। अगर वे ऐसा करते हैं तो उन्हें सजा भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए।