मुस्लिमों में प्रचलित बहुविवाह ,मुताह व मिस्यार निकाह व हलाला को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर केन्द्र सरकार व अन्य पक्षों जवाब मांगा है। साथ ही तीन जजों की पीठ ने मामले मे नोटिस जारी करते हुए मामला संविधान पीठ को भेज दिया है। सुप्रीम कोर्ट एक बार में तीन तलाक को पहले ही अवैध घोषित कर रद्द कर चुका है।इसके बाद सरकार ने इस पर पूरी तरह रोक लगाने के लिए तीन तलाक पर कानून लाने की तैयारी करने को कहा है। इस संबंध मे बिल फिलहाल संसद मे लंबित है। जबकि उत्तर प्रदेश में इसे कानून बनाकर अपराघ घोषित कर दिया गया है। यहां यह बता दें कि सुप्रीम कोर्ट मे चार याचिकाएं है जिनमें मुसलमानों मे प्रचलित बहुविवाहों और हलाला को रद करने की मांग की गई है।
‘निकाह हलाला’ का मतलब यह है कि जिस व्यक्ति ने तलाक दिया है उसी से दोबारा शादी करने के लिए महिला को पहले किसी अन्य व्यक्ति से शादी करनी होती है और तलाक लेना होता है। उसके बाद ही दोबारा पूर्व पति से शादी हो सकती है। इस प्रक्रिया को निकाह हलाला कहते हैं। वहीं बहुविवाह एक ही समय में एक से अधिक पत्नी रखने की प्रथा है। इसे कोर्ट मे चुनौती दी गई है।जबकि फौरी विवाह मुताह को भी इस दायरे में लाने के प्रयास किये जा रहें है । इस विवाह के तहत लडकी का विवाह तय अवधि के लिये होता था और फिर मैहर की रकम देकर पीछा छुडाया जा सकता है। इससे जो बच्चे जन्म लेते हैवह समाज में किसी तरह का दर्जा प्राप्त करने के लिये दुखों का सामना करते थे जबकि पिता व पुत्री पैसे कमाते थे यह एक तरह से वेश्यावृत्ति का भी सूचक था जो पिता द्वारा बेटी से कराया जाता है और उसे इस्लामिक कानून का जामा पहनाया जाता है।
मिस्याह भी इसी तरह की व्यवस्था है जो शिया मुसलमानों के यहां प्रचलन में है।जिसपर सुप्रीमकोर्ट ने काफी सख्ती से पेशवाई की है।इससे पहले भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय और तीन तलाक केस में याचिकाकर्ता सायरा बानो ने 5 मार्च को एक जनहित याचिका दायर की थी जिसमें बहुविवाह और हलाला को असंवैधानिक करार देने की मांग की थी। इसके अलावा, जनहित याचिका में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के तहत निकाह हलाला को बलात्कार, और बहुविवाह को आईपीसी की धारा 494 और 498 के तहत अपराध घोषित कर असंवैधानिक करार दिया जाए।सुप्रीम कोर्ट ने नफीसा खान द्वारा बहुविवाह और निकाह हलाला को असंवैधानिक करार दिए जाने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की मांग को स्वीकार कर लिया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा। दिल्ली की रहने वाली नफीसा खान द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) के अधिनियम 1937 की धारा 2 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करने वाला घोषित करते हुए असंवैधानिक करार दिया जाए।अब देखना यह है कि केन्द्र सरकार का पक्ष कैसा होता है लेकिन यह तो तय है कि उसका झुकाव मुस्लिम महिलाओं की ओर ही होगा। संघ की रिपोर्ट भी यही कहती है कि उनकी स्थित बद से बदतर इन कारणों से है और अगर इस पर रोक न लगायी गयी तो आने वाले समय में और भी खराब हो जायेगा।
सरकार का निर्णय मुताह, मिस्याह व हलाला पर चाहे जो हो लेकिन अब मुस्लिम महिलायें इतना आगे निकल आयी है कि धर्म के नाम पर उनका दोहन करना या कराना मौलानाओं के लिये आसान नही होगा। और अगर ऐसा हुआ तो आनेवाले समय में इस्लाम को स्वीकार करने वालों की कमी हो जायेगी। क्योंकि अब तक जो लोग इस धर्म को स्वीकार करने के लिये अपने धर्म को छोडकर जाते थे उसमें जिस्म भोगी लोग ज्यादा होते थे जो एक बच्चा होने के बाद औरतों को छोडकर दूसरा निकाह कर लेते थे।इसी तरह से बाप बेटी के दामन पर मिस्याह व फौरी विवाह व मुताह था ,जो वेश्यावृत्ति का नया स्वरूप् था जो परिवार की रजामंदी से होता है।