बचपन में हम देखते थे कि हल चलाते वक़्त अगर बैल गोबर मूत्र आदि करे तो किसान कुछ देर के लिए हल रोक देते थे ताकि बैल आराम से नित्यकर्म कर सके।
जीवों के प्रति यह गहरी संवेदना उन महान पुरखों में जन्मजात होती थी जिन्हें आजकल हम अशिक्षित कहते हैं! यह सब अभी 25-30 वर्ष पूर्व तक होता रहा! उस जमाने का देसीघी यदि आजकल के हिसाब से मूल्य लगाएं तो इतना शुद्ध होता था कि 2 हजार रुपये किलो तक बिक सकता है ! उस देसी घी को किसान विशेष कार्य के दिनों में हर दो दिन बाद आधा-आधा किलो घी अपने बैलों को पिलाता था!
इसी तरह टिटहरी नामक पक्षी अपने अंडे खुले खेत की मिट्टी पर देती है और उनको सेती है…हल चलाते समय यदि सामने कहीं कोई टिटहरी चिल्लाती मिलती थी तो किसान इशारा समझ जाता था और उस अंडे वाली जगह को बिना हल जोते खाली छोड़ देता था! उस जमाने में आधुनिक शिक्षा नहीं थी! अब तो ट्रैक्टर चलता है पता ही नहीं चलता कहां अंडा है।सब आस्तिक थे! दोपहर को किसान जब आराम करने का समय होता तो सबसे पहले बैलों को पानी पिलाकर चारा डालता और फिर खुद भोजन करता था…यह एक सामान्य नियम था ! बैल जब बूढ़ा हो जाता था तो उसे कसाइयों को बेचना शर्मनाक सामाजिक अपराध की श्रेणी में आता था! बूढाबैल कई सालों तक खाली बैठा चारा खाता रहता था…मरने तक उसकी सेवा होती थी!
उस जमाने के तथाकथित अशिक्षित किसान का मानवीय तर्क था कि इतने सालों तक इसकी माँ का दूध पिया और इसकी कमाई खाई है…अब बुढापे में इसे कैसे छोड़ दें ? कैसे कसाइयों को दे दें काट खाने के लिए ?जब बैल मर जाता तो किसान फफक-फफक कर रोता था और उन भरी दुपहरियों को याद करता था जब उसका यह वफादार मित्र हर कष्ट में उसके साथ होता था! माता-पिता को रोता देख किसान के बच्चे भी अपने बुड्ढे बैल की मौत पर रोने लगते थे! पूरा जीवन काल तक बैल अपने स्वामी किसान की मूक भाषा को समझता था कि वह क्या कहना चाह रहा है ?
आज सारे पैमाने बदल गए हैं। किसानों के अंदर वह संवेदना नहीं रह गई। गाय जब तक दूध देती है तब तक वह किसान के घर रहती है लेकिन जैसे ही दूध देना बंद करती है वह किसान के घर से गायब हो जाती है। कुछ लोग गाय को रख लेते हैं लेकिन अगर बछिया हुई तो वह उसे अपने घर पर जगह देते हैं अगर बछड़ा हुआ तो उसे कहीं दूर रात्र के अंधेरे में छोड़ आते हैं। क्या ऐसे देश चलेगा? जिन किसानों के अंदर अब ममता नहीं रही उनके बारे में सोचना बेमानी है। पुराना भारत इतना शिक्षित और धनाढ्य था कि अपने जीवनव्यवहार में ही जीवनरस खोज लेता था । वह करोड़ों वर्ष पुरानी संस्कृति वाला वैभवशाली भारत था ! वह अतुल्य भारत था! जो अब नहीं रहा।
जबसे ट्रैक्टर ने बैलों की जगह ली तब से देश में हानिकारक घटनाएं हो रही हैं । लोगों की समझ में नहीं आ रहा है कि छोटे-छोटे बछड़ों की आहे उनको ले डूब रही हैं जिन बच्चों को उन्होंने रात के अंधेरे में खेतों में छोड़ा वह बद दुआएं दे रहे हैं। कैसे उनका बचपन बीता होगा। वह वही जानते हैं। जिस खेत में वह खाने के लिए जाते थे वहां उन्हें दौड़ाकर पीटा जाता था। कुछ लोग तो ऐसे थे जिन्होंने उनको पकड़कर के कसाईयों के हाथ भेज दिया । क्या ऐसे देश आगे बढ़ेगा? ट्रैक्टरों को खत्म करके उनके जीवन को फिर से सही करना होगा। ठीक उसी तरह जैसे लोग यूरिया खाद वगैरह को छोड़कर अपने खेतों में अब गाय का गोबर डाल रहे हैं। उपले जला रहे हैं । चूल्हे जला रहे हैं। पेड़ों की ओर वापस आ रहे हैं।