अंग्रेजी कालगणना के अनुसार रात के 12 बारह बजे दिन बदल जाता है। उदा. रात के 12 बजकर 1 मिनट को 12.01. ए.एम कहते हैं जबकि उस वक्त उस दिन की रात ही चल रही होती है। भारतीय कालगणना के अनुसार एक दिन और रात सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक में पूर्ण होते हैं।
दुनिया की घड़ियों के समय का केन्द्र वर्तमान में ब्रिटेन का ग्रीनविच शहर है। यही से संपूर्ण दुनिया की घड़ियों का समय तय होता है। इंडियन स्टैंडर्ड टाइम भी वहीं से तय होता है। आज के जमाने की घड़ियां स्थानीय स्टैंडर्ड टाईम के अनुसार चलती हैं। उसी के अनुसार सारे काम होते हैं।
18वीं शताब्दी तक भारतीय शहरों में विक्रमादित्य के समय से चले आ रहे स्थानीय समय को सूर्य के मुताबिक तय किया जाता था। लेकिन ब्रिटिश शासनकाल में भारत में समय भी बदला गया। दरअसल उस काल मे ंरेलगाड़ियों का समय तय करने वालों ने सह परंपरा बदली। रेलवे नेटवर्क के विस्तार और औद्योगिक क्रांति ने इंटरनेशनल स्टैन्डर्ड टाइम को जन्म दिया।
प्राचीनकाल में ऐसी व्यवस्था थी: भारत में विक्रमादित्य के शासनकाल में संपूर्ण भारत का समय उज्जैन से तय होता था। ग्रीक, फारसी, अरबी, रोमन लोगों ने भारतीय कालगणना से प्रेरणा लेकर ही अपने अपने यहां के समय को जानने के लिए अपने तरीके की वेधशालायें बनायी थीं। रोमन कैलेंडर भी भारत के विक्रमादित्य कैलेंडर से ही प्रेरित था।
धार्मिक, सांस्कृतिक, ज्योतिर्विज्ञान के क्षेत्र में उज्जैन का प्रमुख स्थान है। इसी नगरी में सूर्य-सिद्धान्त की रचना हुयी। वराहमिहिर जैसे प्रकाण्ड विद्वान इसी नगरी के निवासी थे।
भारतीय ज्योतिष के सिद्धान्तकाल में उज्जैन की स्थिति ठीक कर्करेखा एवं मुख्य मध्यान्ह रेखा पर स्थित होने के कारण भारतीय ज्योतिष में कालगणना का मुख्य केन्द्र माना गया है। यहां के ज्योर्तिलिंग का नाम महाकालेश्वर है। इससे ऐसा विदित होता है कि महाकालेश्वर की स्थापना होने के पहले से ही उज्जैन की कालज्ञान संबंधी कीर्ति प्रसिद्ध है। यहां की रेखा मुख्य मानने का उल्लेख शक पूर्व 300 से 400 तक रखे हुए आद्य सूर्य सिद्धान्त ग्रंथ में आया है। प्रायः उस काल से ही उज्जैन को हिन्दुस्थान का ग्रीनविच होने का सम्मान प्राप्त है।
शिलालेख के अनुसार इस वेधशाला का निर्माण सन् 1719 में महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने करवाया था। महाराजा जयसिंह उच्चकोटि के ज्योतिष मर्मज्ञ भी थे। उसमें सुधार करने हेतु उन्होंने वेधशालाओं का निर्माण करवाया। उनके द्वारा निर्मित वेधशालाएं उज्जैन के अलावा जयपुर, मथुरा , काशी एवं दिल्ली में विद्यमान हैं।
खगोलशास्त्रियों की मान्यता है कि यह उज्जैन नगरी पृथ्वी और आकाश की सापेक्षता मे ठीक मध्य में स्थित है। कालगणना के शास्त्र के लिए इसकी यह स्थिति सदा उपयोगी रही है। उज्जैन देश में मानचित्र में 23.9 अंश उत्तर अक्षांश एवं 74.75 अंश पूर्व रेखांश पर समुद्रतल से लगभग 1658 फीट ऊंचाई पर बसी है। इसी भौगोलिक स्थिति के कारण इसे कालगणना का केन्द्र बिन्दु कहा जाता है। कालगणना का केन्द्र होने के साथ साथ ईश्वर आराधना का तीर्थस्थल होने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ गया। स्कंदपुराण के अनुसार कालचक्र प्रवर्तकों महाकालः प्रतायनः। इस प्रकार महाकालेश्वर को कालगणना का प्रवर्तक भी माना गया है। भारत के मध्य में स्थित होने से उज्जैन को नाभिप्रदेश अथवा मणिपुर चक्र भी माना गया है।
कर्क रेखा भी यहीं से गुजरती है। भूमध्य और कर्करेखा यहीं एक दूसरे को काटती हैं। जहां यह काटती है संभवतः वही महाकालेश्वर मंदिर स्थित है। इन्हीं सब कारणों से उज्जैन कालगणना पंचागनिर्माण और साधना सिद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। यहीं के मध्यमादेव पर संपूर्ण भारत के पंचांग का निर्माण होता है। मंगल ग्रह की उत्पत्ति का स्थान भी उज्जैन माना जाता है।