क्या प्राइवेट कर्मचारी इंसान नही होते या फिर भारतीय नही है।उनके साथ दूसरे दर्जे का व्यवहार क्यूँ , सरकार क्यों उनके लिये सुविधायें नही देती ,क्यों वेतन विसंगतियां है फिर भी इस पर मौन रहती है ।सबसे बड़ी बात यह कि सरकार समान वेतन क्यूँ नही कर रही जिससे सरकारी का तमगा खत्म हो लूट घसोट कम हो , चीजे कम हो लेकिन साफ सुथरी हो और लोगों को उसका प्रत्यक्ष लाभ मिले ।उसके मन में खोट है वह दो तरह का देश चाहती है, सरकारी कर्मचारियों का देश व आम भारतीयों का देश , जिसमें अग्रेज की भूमिका में सरकारी कर्मचारी है और आम आदमी की भूमिका में हिन्दुस्तानी ।सरकारी कर्मचारी भी उसी तरह आम आदमी का खून चूस रहें है जैसा कि अंग्रेज चूसा करते थे।
इस समय देश में दो तरह का कानून है एक सरकारी कर्मचारियों का कानून और दूसरा प्राइवेट कर्मचारियों का कानून , जो भी निर्णय होते है वह एक सरकार करती है चाहे वह सरकारी कर्मचारी का हो या प्राइवेट कर्मचारी का लेकिन दोनों के लिये अलग अलग तरीके इजाद किये जाते है जिससे पूरा देश प्रभावित होता है ,ऐसा इसलिये है कि उन लोगों का वर्चस्व बढा रहे जो कि काम के नाम पर कुछ नही जानते और अच्छे पद पर बैठकर दीमक की भांति देश को खोखला कर रहें है।जबकि दूसरी तरफ जो लोग इस देश के लिये सबकुछ कर रहे है उन्हें कुछ नही मिल रहा है। परिवार का भरण पोषण भी करना मुश्किल है और तो और अगर कोई बीमार हो जाये तो उसके इलाज के लिये तक पैसे नही होते।
ऐसा क्यों है इस पर जब गौर किया गया तो पाया गया कि श्रमिक अधिनियम के तहत जो पगार मिलनी चाहिये वह श्रमिकों को तो नाममात्र की मिलती है लेकिन जो सरकारी नौकरी में जाते है उन्हें चार गुना मिलती है चाहे वह काम करें या न करे। ऐसा इसलिये है कि सरकारी कर्मचारियों का स्तर देश के अन्य कर्मचारियों से उंचा रहे और देश के लोग को दो भागों विभक्त करता रहे। सरकार जानबूझ कर सरकारी व प्राइवेट कर्मचारियों का वेतन एक नही करना चाहती ,सुविधायें नही देना चाहती जैसा कि सरकारी कर्मचारियों को मिलता है । सरकारी कर्मचारी को सभी तरह का संरक्षण है ओर उसके लिये कोई कानून नही है और न ही उसके खिलाफ कारवाई होती है।होती भी है तो इतना समय लग जाता है कि वह स्वर्गवासी हो चुका होता है कारण साफ है कि सरकारी कर्मचारी का फैसला भी सरकारी कर्मचारी ही करता है।
क्ुल मिलाकर जो आज की स्थिती है उससे साफ है कि सरकारी संरक्षण में लोगों को गरीब किया जा रहा है और उसके लिये जो प्रयास किये जा रहे है वह गुलामी वाले है , सरकार खुद नही चाहती कि मेहनत कश लोगों का जीवन सुधरे और वह एक अच्छी जिन्दगी कठिन श्रम करने के बाद जी सके। प्राइवेट कर्मचारियों की दिक्कत के लिये जो लोग बिठाये गये है वह उनका निदान नही करते बल्कि इंतजार करते है कि कब उस मेहनत का पैसा डूब जाये और दलाली का पैसा उसे मिल जाये। दिल्ली जैसे शहर में जब मेहनत का फल मिलना इतना कठिन है तो आम शहरो का क्या कहना ।
सरकारों को चाहिये कि वेतन को लेकर एक समान कानून बनाये जिससे देश के भीतर दो तरह का कानून न हो,सरकारी कर्मचारी जितना काम करता है उसका दो गुना काम प्राइवेट कर्मचारी करता है तो फिर सरकारी कर्मचारी की पगार इतनी और प्राइवेट की इतनी कम कैसे। सरकार को अपनी दोहरी नीति कम करनी पडेगी तभी देश तरक्की कर पायेगा।एक सुखी व समृद्ध भारत का निर्माण हो पायेगा । नही तो सरकारी नौकरी के चक्कर में इसी तरह भ्रष्टाचार फैला रहेगा और लोग उसकी लालच में बिना काम किये सबकुछ मिलेगा ।