भारत के
मानचित्र का 72 साल पुराना इतिहास शनिवार को बदल गया। सरकार ने नोटिफिकेशन
निकाल नया नक्शा जारी कर दिया है,
जिसमें जम्मू कश्मीर और लद्दाख की नई सीमाओं को भी तय कर दिया
है। इसके साथ भारत में अब 28
राज्य और 9
केंद्र शासित प्रदेश हो गए हैं। नए नक्शे में जम्मू कश्मीर के
हिस्से में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मीरपुर और मुजफ्फराबाद जिले को भी दिखाया
गया है, जिसे भारत हमेशा से अपना हिस्सा बताता रहा है।
दरअसल जम्मू कश्मीर राज्य के पुनर्गठन के बाद बीते 31 अक्टूबर को विधिवत
भारत के दो नए राज्य अस्तित्व में आ गए। शनिवार को दोनों नए केंद्र शासित प्रदेशों
का नक्शा जारी कर दिया। इससे पहले देश को स्वतंत्रता मिलने और जम्मू कश्मीर के
भारत में विलय होने के दौरान जम्मू कश्मीर में 14 जिले अस्तित्व में
थे, जिनमें कठुआ, जम्मू, ऊधमपुर, रियासी, अनंतनाग, बारामूला, पुंछ, मीरपुर, मुजफ्फराबाद, लेह-लद्दाख, गिलगित, गिलगित वजारत, चिल्हास और ट्राइबल
टेरिटरी थे।
वर्ष 2019
तक आते-आते जम्मू कश्मीर की राज्य सरकार ने इन 14 जिलों के क्षेत्रों
को पुनर्गठित करके 28 जिले बना दिए थे। नए जिलों में कुपवाड़ा, बांदीपुरा, गांदरबल, श्रीनगर, बडगाम, पुलवामा, शोपियां, कुलगाम, राजौरी, रामबन, डोडा, किश्तवार, सांबा और कारगिल आदि
शामिल हैं। इनमें से कारगिल जिले को लेह और लद्दाख जिले के क्षेत्र में से अलग
करके बनाया गया था। वहीं 31
अक्टूबर 2019
को नए राज्य गठन के साथ ही सर्वेअर जनरल ऑफ इंडिया द्वारा तैयार
मानचित्र तैयार किया गया है। अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने के बाद पांच अगस्त को जम्मू
कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने की घोषणा की गई थी। 31 अक्टूबर को इन दोनों
राज्यों को विधिवत रूप से केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। साथ ही, दोनों जगहों पर
उपराज्यपाल की तैनाती भी कर दी गई।
लेह भारत का सबसे बड़ा जिला
क्षेत्रफल की दृष्टि से लद्दाख का क्षेत्रफल जम्मू कश्मीर से
बड़ा है लेकिन उसके पास केवल दो जिले लेह और कारगिल होंगे। लद्दाख का लेह जिला
क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा जिला बन गया है। इसके अलावा कुपवाड़ा, बांदीपोरा, बारामूला, पूंछ, बडगाम, शोपियां, कुलगाम, किश्तवाड़, उधमपुर, डोडा, सांबा, जम्मू, कठुआ, रामबन, राजौरी, अनंतनाग, पुलवामा, श्रीनगर, रियासी और गांदरबल
जिले जम्मू-कश्मीर का हिस्सा होंगे।500 साल पहले मंदिर की जगह मस्जिद बनायी गयी।
फिर भी कुछ लोग अड़े रहे,
पूजा बंद नहीं की। इस अपराध की जानकारी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी
तक जाती रही। 5 सदियों में क्या से क्या नहीं बदलता। लेकिन नहीं बदला तो केवल
पुनः राम मंदिर बनाने का संकल्प।
इन पाँच सौ वर्षों में हर वह व्यक्ति पूजनीय है जिसने इस लौ को
जलाये रखा। मशाल एक हाथ से दूसरे हाथ जाती रही। महंत श्री रघुबर दास जी से लेकर
श्री अशोक सिंघल जी तक,
श्री आडवाणी जी से लेकर श्री मोदी जी तक। एक एक कार सेवक
जिन्हें गोलियों से भुन दिया गया,
हर वह रामभक्त जिन्हें कार सेवा की वजह से गोधरा में जलाया गया, दंगो में मारा गया, आज सब के त्याग और
बलिदान का यह फल हमें मिला है।इन सबसे अलग …. 92 वर्षीय वृद्ध वरिष्ठ
वकील श्री के पाराशरन जिन्होंने इस सदियों से हो रहो अन्याय के अंत की कहानी को
स्याही दी।