आज 31 अक्टूबर है। श्री वल्लभभाई झावेरभाई पटेल जिनको देशवासी प्यार से ’सरदार’ या ’लौहपुरूष’ कहते हैं, उनका 143वाँ जन्मदिन है। सारा देश इस अवसर को ’’राष्ट्रीय एकता दिवस’’ के रूप में मनाता है।
आज ही के दिन गुजरात में बड़ौदा के पास नर्मदा जिले में सरदार सरोवर बांध के समीप हिन्दुस्थान के प्रथम उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री रहे सरदार पटेल की 182 मीटर ऊँची प्रतिमा का लोकार्पण होने जा रहा है। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी इसे देश और दुनिया को लोकार्पित करने जा रहे हैं। यह उन्हीं की कल्पना थी जिसे 2013 में उन्होंने इस आकार देना प्रारंभ किया।
यह दुनिया की सबसे ऊँची मूर्ती रहेगी। अभी तक चीन की 120 मीटर ऊँचाई वाली स्प्रिंग बुद्धा मूर्ति एवं 90 मीटर ऊँची न्यूयार्क स्थित स्टैच्यू आॅफ लिबर्टी ही सबसे ऊँची मूर्ति मानी जाती रही है। इसका नाम ’एकता की मूर्ति’ (स्टैच्यू आॅफ यूनिटी) रखा गया है। इस मूर्ति के लिए देश के हर गांव से किसानों और मजदूरों से लोहा एकत्रित किया गया। केवल 42 महीने के रिकार्ड समय में यह कार्य पूर्ण होना वास्तव में अपने आप में मिशाल को दर्शाता है। संपूर्ण विश्व में यह प्रकल्प एक विशाल प्रतिमा की छटा को बिखेरता हुआ दुनिया भर के लोगों का ध्यान बरबस ही अपनी ओर खींचता रहेगा। यह लोकार्पण देश में पटेल के योगदान को गौरवान्वित करेगा और हरेक भारतीय के ह्दय में देशभक्ति का जज्बा बना रहे इस हेतु यह मूर्ति और स्थान एक दीपस्तंभ का कार्य करेगा।
देशभक्ति का बोधपाठ तो श्री बल्ल्भभाई को पीढ़ियों से प्राप्त था। वल्लभभाई जिस परिवार में जन्में उसके मुखिया झवेरभाई गलाभाई पटेल अर्थात वल्लभभाई के पिता एक वीर पुरूष थे। वे कट्टर देशभक्त थे। झवेरभाई 1857 इसवी में झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई के पक्ष में अंग्रेजों से लड़े थे। वे सैनिक के रूप में महारानी की ओर से अंगे्रजी सेना से लोहा लेने वालों में से एक थे।
वल्लभभाई के सबसे छोटे भाई काशीभाई झवेरभाई पटेल भी एक प्रसिद्ध स्वाधीनता संग्राम सेनानी थे। वे सरदार पटेल के सक्रिय सार्वजनिक जीवन के पूर्व लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक से जुड़कर कार्यरत थे।
सरदार शिक्षा हेतु इंग्लैंड गये और वहां से वापस आकर अहमदाबाद में एक सफल और प्रसिद्व बैरिस्टर के रूप में स्थापित भी हुए। अहमदाबाद नगरपालिका के अध्यक्ष का कार्य उन्होंने सफलतापूर्वक निभाया। 1927 में जब वे अहमदाबाद नगरपालिका के अध्यक्ष थे तब वहां भारी बाढ़ ने तबाही मचाई थी। उस जल प्रलय में उन्होंने बड़ी कुशलता से सारा कार्य सम्हाला। 1935 में बोरसद तहसील में गंभीर प्लेग संकट के समय उन्होंने बड़ा कार्य प्लेग मुक्ति सत्याग्रही के रूप में किया।
1937 में उन्होंने सूरत जिले में हलपतियों के (अति पिछड़ी बिरादरी) के लिए अभूतपूर्व कार्य किया। हलपती पीढ़ी दर पीढ़ी जमींदारों के कर्ज के कारण पराधीनता का जीवन जी रहे थे। दो दर्जन से अधिक गांवों में उन हलपतियों की मुक्ति के लिए उन्होंने संघर्ष किया।