पिछले कई दिनों से संघ को निशाना बनाया जा रहा है और कहा जा रहा है कि संघ के एजेडे पर केन्द्र सरकार काम कर रही है जबकि सच यह है कि संघ की राह अलग है और केन्द्र सरकार की अलग !संघ वसुधैव कुटुम्बकम् पर आधारित है और उसी को परिपेक्ष में लेकर काम करता है। जबकि केन्द्र सरकार के केन्द्र में देश की उन्नति होती है।अर्नगल आरोपों से कुछ नही होता बल्कि जिसे संदेह है वह यहां आये और देखे की संघ वास्तव में क्या कर रहा है। यहां सभी बराबर है।
पिछले दिनों बरेली में एक कार्यक्रम हुआ जिसमें मोहन भागवत जी कहा कि संघ को अंदर आकर प्रत्यक्ष देखने के बाद जो मन बनाएंगे, मत बनाएंगे, हमारे लिए वह ठीक है. विरोध भी होना है तो वह गलत फहमियों पर आधारित नहीं होना है, सत्य पर आधारित विरोध होता है तो वह हमारे सुधार का कारण बनता है.सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत जी भविष्य का भारत संघ का दृष्टिकोण कार्यक्रम में प्रबुद्ध नागरिकों को संबोधित करते हुए कहीे.उन्हांने कहा कि संघ के इतिहास में कितने ही प्रसंग आए, संघ को समाप्त करने का प्रयास किया. संघ समाप्त नहीं हुआ, लेकिन संघ को समाप्त करने वाले समाप्त हो गए. क्योंकि ये प्रेम लेकर चलने वाला, सत्य लेकर चलने वाला काम है. उस प्रेम की, सत्य की शक्ति हमारा बचाव करती है. जैसे प्रह्लाद की रक्षा हिरण्यकश्यपु से नरसिंह भगवान ने किया. चलेगा, बढ़ेगा,
सबको अपने आगोश में लेकर भारत वर्ष को उन्नत बनाने के अभियान को गति देगा. ऐसा अपना संघ का काम है, हम सबका काम है.लेकिन इतना अपप्रचार होता है. अपप्रचार करने वाले जितने आरोप हम पर लगाते हैं, वो सब आरोप उन पर लागू होते हैं, हम पर नहीं होते. कौन-कौन हैं, आप देख लीजिए, उनका अध्ययन कर लीजिए, उनके इतिहास का और वर्तमान का, उनका भविष्य भी ध्यान में आ जाएगा. उनकी चाल है कि वहम पैदा करना, वहम का डर दिखाकर अपने पीछे भीड़ एकत्रित करना. हम भीड़ जमा करने पर विश्वास नहीं करते, हमें किसी को हराना नहीं है, हमारा कोई दुश्मन नहीं है. ये सब जो लोग कर रहे हैं, हमें उन्हें भी जोड़ना है, पूरा समाज यानि पूरा समाज, उसमें कोई नहीं छूटेगा. ये सब हमारे अपने हैं. हमारे मन में गुस्सा भी नहीं है.
कभी प्रचार के हथकंडे चलते हैं, कभी-कभी समझ में न आने के कारण भी होता है. मुझे एक प्रश्न पूछा कि कितनी संतान हों. ये छपा है कि मैंने दो बच्चों का कहा. लेकिन मैंने ऐसा कहा ही नहीं कि दो बच्चे होने चाहिए. मैंने कहा कि हमारा संघ का एक प्रस्ताव है जनसंख्या पर, क्योंकि जनसंख्या एक समस्या भी है और एक साधन भी बन सकती है. इन सबका विचार करके एक नीति बननी चाहिए. सबका मन बनाना चाहिए उसके लिए और बाद में लागू करनी चाहिए, सब पर मन बना है तो फिर कठिनाई नहीं आएगी. कैसे समझा पता नहीं, ये भी हो सकता है कि पहले से प्रतिमा बनी हुई हो, इनका अगला एजेंडा वगैरह-वगैरह बातें उसके कारण यह हो रहा है.अब, इतना होता है कि कभी हम खंडन करते, कभी नहीं करते. हमको तो मनुष्य बनाना है, हमें सबको प्रेम से जोड़ना है, इस झंझट में हम कहां पड़ें.
हमको तो कोई चुनाव नहीं जितना है, हमारे वोट कम ज्यादा होते नहीं, बढ़ते ही रहते हैं. तो इसलिए अगर आपको संघ को समझना है तो सीधा संघ में आकर देखिए. अंदर आकर देखिए, आने जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं, कोई फीस नहीं लगती, कोई मेंबरशिप नहीं. आएये, रहिये, देखिये, अध्ययन कीजिए, संघ कैसा है, क्या है, संघ के शिविरों, कार्यक्रमों में जाइये, संघ के कार्यकर्ताओं को देखिए, उनके परिवारों को देखिए, उनके क्रियाकलापों को देखिए. तो आपको संघ समझ में आएगा. चीनी मीठी होती है, इस पर भाषण हो सकता है. लेकिन ध्यान में नहीं आता, एक चम्मच खा लीजिए, ध्यान में आता है, मीठी यानि क्या ? यह आकर पता चलेगा।
फिलहाल संघ ने अपने आप को राजनीति से अलग कर रखा है और उसके प्रचारकों का जो देश जोडने का काम है उस पर क्रिन्यावन करने पर जोर दिया है। देश का कोई भी संगठन देश भक्ति की गारंटी नही ले सकता किन्तु संघ लेता है।वहां सभी बराबर है पंथ नही भारतीयता की कसौटी पर उतरना सिखाया जाता है।यही कारण है कि देश के महत्वपूर्ण पदों पर संघ के अनुशासित सेवक बैठे है।
Truth . But then who is there to assimilate and live a life of purpose
आजकल अपने ही समाज के एक समुदाय के द्वारा दूसरे समुदाय के यों पर आक्रमण कर उनको सामूिहक हिंसा के शिकार बनाने के समाचार छपे हे। ऐसी घटनाएं केवल एक तरफा नहीं हुई है। दोनों तरफ से ऐसी घटनाओं के समाचार हे तथा आरोप-प्रत्यारोप चलते हे कुछ घटनाओं को जानबूझकर करवाया गया है तथा कुछ घटनाओं को विपर्यस्त रूप में प्रकाशित किया गया है,यह बात भी सामने आई है। परंतु, कहीं ना कहीं कानून और व्यवस्था की सीमा का उल्लंघन कर यह हिंसा की प्रवृति समाज में परस्पर संबंधों को नष्ट कर अपना प्रताप दिखाती है इस बात को स्वीकार तो करना ही पड़ेगा। यह प्रवृति हमारे देश की परंपरा नहीं है, न ही हमारे संविधान में यह बात बैठती है। कितना भी मतभेद हो, कितना भी भड़काई जाने वाली कृतियाँ हुई हो, कानून और संविधान की मयादा के अंदर रहकर ही, पुिलस बलों के हाथ म ऐसे मामले देकर, न्याय व्यवस्था पर विश्वास रखकर ही चलना पड़ेगा।स्वतंत्र देश के नागरकों का यही कर्तव्य है। ऐसी घटनाओं लिप्त लोगों का संघ ने कभी भी समथन नहीं किया है और ऐसी प्रत्येक घटना के विरोध में स संघ खड़ा हे । ऐसी घटनाए न हो इसीलियेय संघ खडा हे। ऐसी घटना न हो इसीलिये स्वयमसेवक प्रयासरत हे। प र
संघ को जानना, समझना है तो संघ में आना ही पड़ेगा।
संघ पढ़ कर, भाषण से नहीं समझा जा सकता।
इसके लिए प्रत्यक्ष स्वयं को संघ की शाखा व कार्यक्रमों में आकर ही पता लगेगा।
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