पिछले दिनों एक दैनिक अखबार में एक आलेख छपा हर समय मुस्लिम एजेंडा खोजने की आदत, प्रदीप सिंह के लिखे इस लेख में देश में स्वयंभू उदारवादी तबके पर बहुत करीने से तंग करता है असल में यह वर्ग अपने सुविधाजनक मापदंडों के लिहाज से स्वयं ही अपनी पोल खोलता रहता है लेखक में ऋषि सुनक के बहाने उस वर्ग पर करारा प्रहार किया है।यह वही वर्ग है जो गौ सेवा करने वाले एक सनातन धर्मावलंबी के रूप में सुनक की खुलकर आलोचना करता है तो उनके प्रधानमंत्री बनने पर देश में एक समूह चढ़ता है कि यदि ट्रेन में हिंदू अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री बन सकता है तो भला भारत में क्यों नहीं अपने सवाल को और स्पष्ट करते हुए अल्पसंख्यक के खाते में उन्होंने मुसलमान को फिट किया है अफसोस की बात है कि ऐसे सवाल उठाने वालों में पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम और हाल में कांग्रेस के कायाकल्प करने का वादा करने के साथ अध्यक्ष पद का चुनाव लड़े शशि थरूर भी थे।
एक तरह से इन नेताओं ने अपनी ही पार्टी को कटघरे में खड़ा कर दिया आखिर इस सवाल की जिम्मेदारी जवाबदेही अगर किसी की है तो वह कांग्रेस की ही है जो करीब 6 दशकों से देश में सत्ता संभालती रही लेकिन उसने किसी मुस्लिम को प्रधानमंत्री बनाना तो दूर पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना भी गंवारा नहीं समझा वास्तव में प्रधानमंत्री जैसे पद को किसी जाति या धर्म की पवित्र में न जकड़ कर योग्यता और जनता के भरोसे पर ही छोड़ देना उचित होगा। यही लोकतंत्र की वास्तविक मर्म है और उसकी परिभाषा को विरूपित ना करें।
पाठकों ने भी खूब आलोचना की है हिंदू नेता ऋषि सुनक को भी ट्रेन में प्रधानमंत्री चुने जाने पर कांगरे नेताओं के अल्पसंख्यक समुदाय के पक्ष में मोदी सरकार पर हमले शुरू हो गए। महबूबा , चिदंबरम, शशी थरूर को बोलने से पहले अपने अंतर्मन में भी झांक कर देख लेना चाहिए कि भारत देश का मूल उद्देश्य था और समर्पण ,समावेशी है कांग्रेस के सत्ता में रहते हुए अल्पसंख्यक समुदाय से मनमोहन सिंह 10 वर्ष प्रधानमंत्री रहे। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश के पदों पर भी अन्य अल्पसंख्यक वर्ग के लोग आशील रहते आए हैं।
मोदी सरकार में भी अल्पसंख्यक समुदाय की एक महिला राष्ट्रपति पद पर आसीन है ।पाकिस्तान का गुणगान करने वाली महबूबा मुफ्ती भारत सरकार के विरोध में अक्सर जहर ही उगलती रहती है ।एक उदारवादी हिंदू नेता ऋषि सुनक के विषय में अल्प संख्यक होने का उदाहरण देने से पहले जम्मू कश्मीर में हिंदुओं के प्रति अपना आचरण क्या है ।इस पर भी नजर डाल लीजिए आए दिन निर्दोषों की हत्या होती रहती है कभी उनके लिए आवाज उठाई गई है। कभी भी भारतीय मूल का होने संदेश नहीं दिया किंतु हिंदू माता-पिता की संतान होने पर गर्व महसूस किया है अपनी सनातन धर्म संस्कृति को उन्होंने छोड़ा नहीं है।
पहली बार जब सांसद बने बाइबल पर नहीं गीता पर हाथ रखकर शपथ ग्रहण की थी। वहां की जनता ने नहीं कंजरवेटिव पार्टी के सांसदों ने बहुमत से और उनकी योग्यता के आधार पर चुना है। एक अत्यंत बुद्धिमान व्यक्ति दिखाई पड़ते हैं उनमें तो कुछ विशेषता है जिसके कारण उनको चुना गया।