कुछ इस तरह से निपटी केन्द्र सरकार लाकडाउन से

     54 लाख। ये उन मजदूरों की संख्या है, जिन्हें मोदी सरकार ने उनके घर पहुँचाया। बिना एक रुपया लिए। लेकिन नहीं, वहम का बाजार इतना गर्म है कि ये फैला दिया गया जैसे सरकार ने मजदूरों को छोड़ दिया- सड़क पर मरने के लिए। बिहार के हज़ारों मजदूरों को हरियाणा में रखा जाता है सारी फैसिलिटी देकर और जब नीतीश सरकार रुपए देने की कोशिश करती है तो CM खट्टर मना कर देते हैं। लेकिन दोष तो भाजपा का ही है। कुछ लोग पूछ रहे थे कि योगी सरकार को कॉन्ग्रेस ने 1000 बसें दी तो उनका उपयोग क्यों नहीं किया गया? ये तो सबको मालूम होगा कि उनमें से 300 बसें गड़बड़ थीं। अगर उन्हें चलाया जाता और कोई एक्सीडेंट होता तो यही लोग कहते कि हमने तो अपना काम कर दिया लेकिन देखो, सरकार ने सब गोबर कर दिया। अब कुछ लोगों का सवाल है कि बाकी बची 700 बसें क्यों नहीं ली? इसके लिए थोड़ा और पीछे जाना होगा, जब यूपी में कोटा के बच्चों को वापस लाया जा रहा था। योगी सरकार ने जब परिवहन की सुविधा माँगी तो अशोक गहलोत ने नकार दिया। कहा कि ट्रांसपोर्ट माध्यमों की कमी है।

जैसा कि सबको पता है, वो सभी बसें जिन्हें भरतपुर में कॉन्ग्रेस ने खड़ी की थीं, वो राजस्थान ट्रांसपोर्ट की थी। क्या ये कॉन्ग्रेस के बाप की संपत्ति है? राजस्थान सरकार ने यूपी से पाई-पाई वसूल कर लिया पहले और बसें भी नहीं दी लेकिन बाद में बसों की लाइन लगा दी गई। क्या राजस्थान में मजदूर पैदल नहीं चल रहे थे? किसी ने पूछा वहाँ की सरकार से कि क्या तुमने अपने सारे मजदूरों को उनके घर पहुँचा दिया था? और जब बसें खाली ही पड़ी नही थीं तो तब क्यों नहीं दिया जब इसकी ज़रूरत थी? दिल्ली से सारे मजदूरों को रातोंरात भगा दिया गया लेकिन फिर भी रोज डेढ़ हज़ार मामले आ रहे हैं। महाराष्ट्र में स्थिति ऐसी है कि मजदूरों को सोनू सूद जैसे लोग उनके घर पहुँचा रहे। फिर मुझे समझ नहीं आता कि इसमें मोदी को दोष देने वाले कहाँ से पैदा हो गए? जब लॉकडाउन लगा तो कह रहे थे इतना स्ट्रिक्ट क्यों है, इतनी जल्दी क्या है और पुलिस क्यों मार रही है? अब लॉकडाउन हट रहा है तो कह रहे हैं कि हटा क्यों रहे हो, केस बढ़ रहे हैं। ज्ञान देना अच्छी बात है लेकिन सोचना-समझना तो चाहिए।

कुछ लोगों ने फेक न्यूज़ फैलाया गया कि ट्रेनें 9 दिन में पहुँच रही है। ट्रेनों का रूट डाइवर्ट हुआ तो फर्जी ख़बरें फैलाई गईं कि ट्रेनें रास्ता भटक जा रही हैं। बीमारी से मरने वालों को भूख से मरने वाला बता दिया गया। क्या-क्या नहीं किया गया रेलवे को बदनाम करने के लिए। क्या उसके कर्मचारी इस आपदा के बीच जान पर खेल कर काम नहीं कर रहे? कितनी PPE किट्स बनते थे भाई हमारे देश में? शून्य। एक भी नहीं। अब 4.5 लाख रोज बन रहे हैं। 600 कम्पनियों को इसका सर्टिफिकेट दिया गया है। लेकिन नहीं, सरकार ने कहाँ कुछ किया।30 लाख मजदूर तो अकेले यूपी में आए हैं। कुछ मूर्ख न्यूजीलैंड का उदाहरण दे रहे कि देखो ऐसे कंट्रोल कर लिया और मोदी नहीं कर पाया। क्या उन्हें मैं जिले पूर्वी चंपारण का उदाहरण दे सकता हूँ, जिसकी जनसंख्या न्यूजीलैंड से 3 लाख ज्यादा है और उससे 15 गुना कम मामले आए हैं कोरोना के? देश में कोरोना के 45% मामले महाराष्ट्र और दिल्ली में हैं। तमिलनाडु भी मिला दें तो ये आँकड़ा 55% हो जाता है। असल में ये सारा खेल ही चल रहा है उद्धव और केजरीवाल के कृत्यों को ढकने के लिए।

अभी राजदीप सरदेसाई ने बाँदा के एक मृतक के बारे में कह दिया कि सरकारी सहायता नहीं मिली, भूख से मर गया। पता चला कि उसकी पत्नी को अप्रैल-मई में 50Kg गेहूँ, 35Kg चावल और 1Kg चना मिला था। उसकी मौत बीमारी से हुई। लेकिन नैरेटिव क्या बना? सरकार ने मार दिया। हमने देखा है कि स्वाइन फ्लू से लेकर उत्तराखंड बाढ़ तक जैसी आपदाओं से कैसे निपटा जाता था। लोग उस व्यक्ति को गाली देकर हतोत्साहित करने में लगे हुए हैं, जो सच में दिन-रात जनता का कुछ न कुछ भला करने की सोच रहा है। जो नए-नए एक्सपेरिमेंट्स करेगा, काम करने की हूल जिसमें मची होगी- उससे ही तो ग़लती होती है।हमारा सिस्टम ही ऐसा है जहाँ एक मुखिया से लेकर सांसद तक को अपने क्षेत्र के लोगों के प्रति जिम्मेदारी नहीं पता। उनकी गलतियों को गिना कर सवाल पूछिएगा तो कुछ बात बनेगी भी। हर चीज में प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को गाली देने से आप उन्हें अपने दायित्वों से मुक्त कर रहे हैं, जिनकी आपके प्रति जवाबदेही बनती है। साथ ही मीडिया और लिबरल गैंग के उन गिद्धों को भी दाना डाल रहे हैं, जो चाहते हैं कि मोदी को वोट देने वाले उनसे विमुख हो जाएँ, उन्हें गाली दें। अब आपका ही चुना वार्ड पार्षद आपको राशन न दिलाए तो मोदी क्या करेगा?

One thought on “कुछ इस तरह से निपटी केन्द्र सरकार लाकडाउन से

  1. आदरणीय भाई साहब !
    सादर प्रणाम !!
    भाई साहब आपने सरकार की उपलब्धियों को बहुत ही स्पष्ट एवं दृढ़ तरह से भारतीयों के सम्मुख रखा है। यद्यपि ऐसा कहा जाता है कि अच्छे कार्य करने वालों को स्वयं नहीं कहना चाहिए, तथापि यह भी सत्य है कि वास्तविकता से अनजानों को यदि दुष्ट-जन झूँठ बोल कर बरगला रहे हों, तो सच्चाई से अवगत करना भी हमारा ही दायित्व होता है। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

    आपका अनुयायी, आपका छोटा भाई
    आदेश त्यागी
    नौएडा

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