इन दिनों इंटरनेट मीडिया पर एक न्यायाधीश कथन वायरल हो रहा है कि एक पति अपनी बीवी का मालिक नहीं है ।शादी के बाद उसे किसी अन्य के साथ संबंध बनाने के लिए पति की अनुमति लेनी पड़े। वह अपने संबंधों का चुनाव खुद कर सकती है।
कुछ साल पहले दीपिका पादुकोण अभिनीत एक साथ फिल्म आई थी जिसमें भी यही तथ्य दर्शाए गए थे ।उसमें भी वह उसी तरह की बातें कर रही थी , आज तक पुरुषों की आलोचना इस बात के लिए की जाती रही है कि वह पत्नी के होते हुए अन्य महिलाओं से संबंध रखते हैं ।ऐसा करने पर समाज में उनकी ज्यादा आलोचना नहीं होती महिलाएं इस बात के लिए पुरुषों से परेशान नहीं है। उनकी आलोचना करती रही हैं तो क्या उन्हें भी ऐसा हो जाना चाहिए क्या यह आदर्श स्थिति है और क्या जीवन में सिवाय संबंध के और कुछ नहीं है क्या स्त्रियों का जीवन बाकी समस्याओं से मुक्त है।हाल में ही उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला दिया कि गर्भपात के लिए यह नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि शादीशुदा है या नहीं ,यह उसका अधिकार है कि वह बच्चे को जन्म देना चाहती है या नहीं ,फैसला अच्छा है कि कम से कम वह बच्चे नहीं जन्म लेंगे जो या तो कूड़े के ढेर पर फेंक दिए जाते हैं या अनाथालय में पलते हैं।जब से यहां फैसला आया है तब से अंग्रेजी मीडिया ने तमाम साधन संपन्न महिला उनके पक्ष में लिख रही हैं। वह कह रही है कि इस फैसले से शरीर पर उनका अधिकार से हुआ है। वह शादीशुदा है या नहीं इससे उनके यौन जीवन पर सवाल करने का अधिकार किसी को नहीं है ।इन महिलाओं के ऐसे लेखों से कोई आश्चर्य नहीं क्योंकि जिनके पास पद और पैसे की ताकत है वह हर बात को अपने पक्ष में मोड़ सकते हालांकि जैसा उदाहरण एक विवाहित महिला के लिए दिया गया है वैसी स्थिति में ना जाने कितनी लड़कियां गुजरती हैं।
अपने देश के दूरदराज इलाके में ना तो इतनी चिकित्सा सुविधाएं हैं ,ना ही लोगों का सोच ही कि मैं लड़कियों के अविवाहित होने या शादीशुदा होने पर किसी और के बच्चे के गर्भपात कराने को मानवीय दृष्टि से देख सकें ।अक्सर जब कोई अविवाहित लड़की ऐसे दुष्चक्र में फंस भी है तो तमाम ऐसे रास्तों सेआपको गुजरना पड़ता है ।कई बार तो उसे अपनी जान भी देनी पड़ती है ऐसे विचारों से लंपट लोगों की भी बन जाती है जो अपने जाल में लड़कियों ,विवाहित महिलाओं को फंसाते हैं फिर उनकी वीडियो बनाकर तरह-तरह से ब्लैकमेल करते हैं।
कोई कह सकता है कि जो कि समाज का सोच ऐसा है । पुरुष महिलाओं को परेशान करते हैं तो क्या अपने प्रगतिशील सोच को बदल दिया जाए। कानून में कोई सुधार नहीं ना हो ,दरअसल बात यह है कि सिर्फ कानूनों से अगर समाज बदलता होता तो अब तक दहेज और घरेलू हिंसा कब की खत्म हो गई होती लेकिन हम देखते हैं कि जैसे-जैसे ब्रांड का जोर बड़ा है तरह तरह के उत्पाद बाजार में आए हैं तो वह सब के सब दहेज से जुड़ते चले गए हैं यह देखना भी कोई कम दिलचस्प नहीं है कि एक ओर जहां तलाक पड़ रहे हैं ।वहीं दूसरी ओर शादी तो जीवन में एक बार होती है इसलिए ऐसी भी होनी चाहिए कि कभी किसी की ना हुई हो का सोच लोगों में बढ है । आज शादियों के खर्चे का बोझ उठाते माता-पिता की कमर टूट जाती है।ऐसे मकड़जाल में फंस जाते हैं जीवन भर उससे पार नहीं पाते ।इसकी कीमत परिवारों को लंबे समय तक चुकानी पड़ती है।
महिला अपने शरीर पर अपना अधिकार जताती है तो यह उसका हक भी है लेकिन यह भी सोचा जाना चाहिए कि संसार में हम अकेले नहीं होते, हमेशा दूसरों के साथ चलना पड़ता है फिर चाहे वह घर हो या दफ्तर, जितनी जगह हमें चाहिए उतने ही दूसरों को देनी पड़ती है यदि कोई महिला अपने तमाम संबंधों को अपना अधिकार समझती है तो वह उन पुरुषों को भी कैसे रोक सकती हैं जो उसके आसपास है।
आप कुछ दिनों पहले की बात लेने खबर आई कि दिल्ली से गोरखपुर जा रही युवती को जब रास्ते में प्रसव पीड़ा शुरू हुई तो अलीगढ़ स्टेशन पर उतारकर पुलिस उसे अस्पताल ले जाने लगी ,रास्ते में ही उसने बच्चे को जन्म दिया। अस्पताल पहुंचकर उसने बच्चे को अपनाने से इंकार कर दिया उसका कहना था कि वह अकेली है और बेरोजगार भी एक बच्चा जो इस दुनिया में आने के लिए जिम्मेदार नहीं है। वह माता पिता के होते हुए भी अनाथ हो गया यह कहानी तो प्रकाश में आई लेकिन कहानियां अपने यहां यह रोज बनती हैं महिलाओं को इस तरह के संबंधों से सारा बोझ उठाना पड़ता है इस मामले में उनकी स्थिति बहुत ही दयनीय होती जिसको लेकर के यह कहा जा सकता है जो निर्णय आया है वह काफी प्रभावी होगा। ।
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