सरकार बना लेने के बाद श्री मोदी के सामने बड़ी चुनौतियाँ थीं। सबसे बड़ी राष्ट्रवादी हिंदुत्ववादी अपने समर्थकों की अपेक्षाओं पर खरा उतरते हुए कार्य करना दूसरी ओर भ्रष्टाचार से उकताई जनता को यह साबित करना कि उनकी सरकार सुशासन व पारदर्शिता में पूरा यकीन रखती है। इन सबसे भी बड़ी चुनोती देश की डूबी हुई अंतरराष्ट्रीय साख व खोखली अर्थव्यवस्था व बदहाल बैंकिंग व्यवस्था को मजबूत कर उनकी साख बहाल करना। निश्चित रूप से मोदी सरकार का पिछले चार सालों का सफर दुधारी तलवार पर चलने जैसा रहा। अगर परिणामो के रूप में आंकलन किया जाए तो मोदी सरकार में कुछ धीमे ही सही मगर हिंदुत्व के एजेंडे पर काम हुआ और इसी का परिणाम है कि वर्तमान में 19 राज्यों में भाजपा की सरकार है। मोदी सरकार ने संरक्षणवादी कांग्रेसी नीतियों को पीछे छोड़ पारदर्शी तरीके से देश के इंफ्रास्ट्रक्चर के द्रुत विकास का जो अभियान छेड़ा उससे देश की कारपोरेट लॉबी को जबरदस्त काम मिला और इसी कारण शेयर बाजार जबरदस्त उचाईयों पर है। आपसी समझ के तहत मोदी सरकार ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के खिलाफ ही बड़ी कानूनी कार्यवाही की व कारपोरेट घरानों को आगे ईमानदारी से काम करने के वादे के साथ बचाए भी रखा।
यँू तो उस समय हुए लाखों करोड़ के घोटाले यूपीए के नेताओं व कारपोरेट जगत की जुगलबंदी का परिणाम थे, मगर जब घोटाले उजागर हुए तो सरकार व नेता इनके लिए कारपोरेट जगत को दोषी ठहरा साफ बचने की कोशिश करने में लग गए। उच्चतम न्यायालय द्वारा उस समय कोयला व टूजी स्पेक्ट्रम आबंटन रद्द करने से अनेक राजनेता, नोकरशाह, मीडिया हाउस, दलाल आदि भी कारपोरेट जगत के साथ ही सीबीआई व न्यायलय की जांच के रडार पर आ गए थे। इसी कारण कांग्रेस पार्टी में भी सोनिया व मनमोहन के बीच शीत युद्ध छिड़ गया था क्योंकि सोनिया मनमोहन को बलि का बकरा बना राहुल को प्रधानमंत्री बनाने की फिराक में थीं।
इसके अलावा सरकारी खरीद व ठेकों से मजे लूटने वाले कारपोरेट जगत, ठेकेदारों, व्यापारियों व सरकारी कर्मचारियों के सिंडिकेट को पहली बार प्रतिस्पर्धा में उतरना पड़ा व गुणवत्तापूर्ण सेवाओं जैसी बातें होने लगी। यह मोदी ही थे जिन्होंने विपरीत व लगभग असंभव सी परिस्थितियों में भी गुजरात मे फिर से भाजपा की सरकार बनवा दी और कांग्रेस को धूल चटा दी। अब गुजरात की जीत से आगे मोदी उत्तर पूर्व व कर्नाटक के चुनावों में तो लगे ही है साथ ही दिसंबर में लोकसभा चुनाव करा विरोधियों को धूल चटाने की रणनीति पर भी काम कर रहे हैं। टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले में कारपोरेट वर्ग के दोषियों को निचली अदालत द्वारा दोषमुक्त होते रहने देना भी एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है जिससे कारपोरेट लॉबी का बड़ा हिस्सा उनके साथ रहे और ऊपरी अदालत में सीबीआई की अपील के माध्यम से नियंत्रण में भी रहे। यानि लोकसभा चुनावों में यह लोग उनकी राह में रोड़े नहीं अटका पाएं। इससे पूर्व ही संसद में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यूपीए शासन में गलत तरीके से बांटे गए 52 लाख करोड़ रूपयों के बैंक लोन व उसके एनपीए में बदल जाने का रहस्य उजागर किया था और इस खुलासे का मतलब ही था कि बड़ी कार्यवाही होने जा रही है।
पूंछ पर पड़ी जोरदार चोट के कारण ही मोदी विरोधी गठजोड़ बिलबिला गया है और सोशल मीडिया व अपने पिटठू चेनलो की मदद से अंटशंट आरोप व अभियान चला रहा है, मगर असली बौखलाहट 52 लाख करोड़ की लूट में मोदी सरकार की संभावित अगली बड़ी कार्यवाही को लेकर है।वैसे देश का कोई बड़ा नाम नहीं जो इस खेल में नहीं फंसेगा। इसलिए इन सबको मोदी का संदेश स्पष्ट हैअगर वह मोदी सरकार का विरोध करेगा तो कानून की जद में आएगा व रहे सहे से भी हाथ धो बैठेगा और अगर राजनीति में न पड़ पारदर्शिता व ईमानदारी से काम धंधा करेगा तो खुद का और देश दोनो का भला करेगा।
कुल मिलाकर देश राष्ट्रनीति से निकलकर राजनीति पर आ गया है और कारपोरेट लॉबी भी दोफाड़ हो पक्ष व विपक्ष में बंट गयी है। कुल मिलाकर सन 2019 के लोकसभा की जंग निश्चित रूप से दिलचस्प होने जा रही है और पहले के अनुमान की तरह एकतरफा नरेंद्र मोदी के पक्ष में है। हालाँकि नरेंद्र मोदी को उम्मीद है कि अगले कुछ महीनों में वे इस खेल को पुनः एक तरफा कर लेंगे क्योंकि उनकी नीयत सही है और जनता उनके साथ है। अगर श्री मोदी रक्षात्मक तरीके से खेले तो फंसने की पूरी संभावना है। अगर वे सच मे अच्छी नीयत के साथ जनहित में कार्य करना चाहते हैं तो उन्हें इस रण को बहुत आक्रमण रूप से लड़ना होगा। तब जन भी उनका होगा और तंत्र भी और वे निश्चित रूप से चक्रवर्ती होंगे।
भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप मोदी सरकार ने बड़ी लड़ाई छेड़ी। देश से दलाल संस्कृति का सफाया ही कर दिया। फर्जी मीडिया संस्थानों पर रोक लगा दी, नोकरशाही की जबाबदेही तय करनी शुरू की, न्यायलय की जबाबदेही का बिल भी पास कराया, चुनावी चंदे की पारदर्शी व्यवस्था बनाई, ई टेंडरिंग की व्यवस्था व डिजीटलीकरण किया, हर व्यक्ति का आधार कार्ड व बैंक खाता बनवा सरकारी योजनाओं को उनसे जोड़ वहाँ पारदर्शिता लाए। पूरी दुनिया के दौरे किए और देश की छवि को बेहतर बना विदेशी निवेश व अप्रवासी भारतीयों को देश से जोड़ा। अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन का सबसे बड़ा काम मोदी सरकार ने नोटबन्दी व जीएसटी लागू करने के माध्यम से किया। ये कदम देश मे 67 बर्षों से सरकार को लूट रहे भ्रष्ट तंत्र व कारपोरेट जगत के सिंडिकेट के पांव पर सबसे बड़ी कुल्हाड़ी साबित हुए और एक ही झटके में देश मे फैला काली अर्थव्यवस्था का ढांचा भरभराकर गिर गया। जनता के सर्वांगीण विकास व हितों की दृष्टि से यह आजादी के बाद से अब तक का सबसे बड़ा कदम रहा। इस कदम से विपक्षी दल व सरकार के तीनों अंगों के साथ ही उद्योग व व्यापार जगत के दिग्गजों की चूले ही हिल गयीं। बाजार में फैली लाखों करोड़ की नकली मुद्रा एक झटके से समाप्त हो गयी व लाखो फर्जी कम्पनियों को बंद कर दिया गया। अरबो खरबो के व्यापार पहली बार कर के दायरे में आ गए और काली अर्थव्यवस्था का दायरा सिकुड़ कर आधा रह गया जो आगे ओर भी सिमटना तय है।