वर्तमान सरकार का यह कदम कि आर्थिक रूप से पिछड़े किसी भी वर्ग, जाति या समुदाय के लोगों का आरक्षण संविधान के वर्तमान 50% की उच्चतम सीमा के ऊपर 10% का हो, एक क्रांतिकारी कदम है।
यह तो निश्चित है कि इस प्रस्ताव द्वारा समाज को जाति या समुदाय के आधार पर बांटा तो नहीं जा रहा है। जो लोग आर्थिक रूप से पिछड़े नहीं हैं, जैसा कि प्रस्तावित आरक्षण बिल में ज्ञात होता है, उन्हें आरक्षण की इतनी आवश्यकता नहीं है। दूसरी तरफ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ी जाति के अलावा सवर्ण जाति के आर्थिक रूप से पिछड़े लोग भी कुछ सीमा तक आरक्षण के पात्र होंगे, यह एक अच्छी नीति साबित होगी, यदि आरक्षण से देश को छुटकारा नहीं मिलता है। यह प्रस्ताव दूसरी बड़ी पार्टियों कोकिन्तु- परंतु
के बावजूद निर्विरोध स्वीकार्य है, क्योंकि अधिकतर पार्टियों का मत है कि चुनावी वर्ष में यह प्रस्ताव राजनीति से प्रेरित है। इस विषय में यह कहना उचित होगा कि हाल ही में देश के विभिन्न क्षेत्रों से सवर्ण आरक्षण का मुद्दा जोर पकड़ रहा था। अतः यह एक अच्छा कदम है क्योंकि इसमें जरूरतमंद लोगों के लिए आरक्षण है, फिर चाहे वह किसी भी जाति या समुदाय के क्यों न हो।
हालांकि इसमें संविधान में संशोधन तथा न्यायायिक वैद्यता जैसी अड़चने आगे आएंगी, फिर भी यदि सभी बड़ी पार्टियां एक जुट होकर प्रयत्न करें तो इसकी वैद्यता कठिन कार्यसाबित नहीं होगी। यहाँ ध्यान रखने योग्य बात यह है कि लगभग सभी बड़ी पार्टियों ने अपने चुनाव घोषणा पत्रों में कहीं ना कहीं “सवर्ण आरक्षण” की बात कही थी परंतु एनडीए सरकार ने यह साहसिक कदम उठाया है जबकि दूसरी बड़ी पार्टियां सिर्फ “जुमलेबाजी” कर रही थीं। इस एतिहासिक मुद्दे पर मेरी तरफ से एनडीए सरकार को बहुत बधाई जिसने जातिगत राजनीति से उठकर एक साहसिक कदम उठाया।