अंग्रेजी इतिहासकार अर्नाल्ड जे टायनबी ने कहा था विश्व के
इतिहास में अगर किसी देश के इतिहास के साथ सर्वाधिक छेड़ छाड़ की गयी है तो वह भारत
का इतिहास है।जब खुदाई में सारे सबूत व्यापक और श्रेष्ठ हिन्दू सभ्यता
के मिलने लगे,तब पाकिस्तान ने अपने हिस्से वाले क्षेत्र में सिंधु घाटी
सभ्यता के उत्खनन कार्य को तुरंत रुकवा दिया।अंग्रेजो और वर्तमान भारतीय ऐतिहासिक
पाठ्यक्रम में भारत के इतिहास का प्रारंभ सिन्धु घाटी की सभ्यता से होता है जिसे
हड़प्पा कालीन सभ्यता या सारस्वत सभ्यता भी कहा जाता है ।बताया जाता है कि वर्तमान
सिन्धु नदी के तटों पर 3500
ठब् (ईसा पूर्व) में एक विशाल नगरीय सभ्यता विद्यमान थी
मोहनजोदड़ो, हड़प्पा,
कालीबंगा,
लोथल आदि इस सभ्यता के नगर थे।
पहले इस सभ्यता का विस्तार सिंध, पंजाब, राजस्थान और गुजरात
आदि बताया जाता था किन्तु अब इसका विस्तार समूचा भारत,तमिलनाडु से वैशाली
बिहार तक, पूरा पाकिस्तान व अफगानिस्तान तथा ईरान का हिस्सा तक पाया जाता
है।अब इसका समय बदलकर 7000
ठब् से भी प्राचीन बताया गया है और इस प्राचीन सभ्यता की
सीलों, टेबलेट्स और बर्तनों पर जो लिखावट पाई जाती है उसे सिन्धु घाटी
की लिपि कहा जाता है।इतिहासकारों का दावा है कि यह लिपि अभी तक अज्ञात है और पढ़ी
नहीं जा सकी है जबकि सिन्धु घाटी की लिपि से समकक्ष और तथाकथित प्राचीन सभी
लिपियां जैसे दृ इजिप्ट,
फोनेशियाई, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई आदि
सब पढ़ ली गयी हैं।
आजकल कम्प्यूटरों की सहायता से अक्षरों की आवृत्ति का विश्लेषण
कर मार्कोव विधि से प्राचीन भाषा को पढ़ना सरल हो चुका है अर्थात सिन्धु घाटी की
लिपि को जानबूझ कर नहीं पढ़ा गया और न ही इसको पढ़ने के सार्थक प्रयास किये गए
है।भारतीय इतिहास अनुसन्धान परिषद (प्दकपंद ब्वनदबपस व िभ्पेजवतपबंस त्मेमंतबी)
जिस पर पहले जियोनिस्ट अंग्रेजो और फिर इनके तैयार किये गए काले जियोनिस्ट
कम्युनिस्टों का कब्जा रहा और यही कारण है कि सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ने की कोई
भी विशेष योजना नहीं बनाई गई। अब सवाल है आखिर ऐसा क्या था सिन्धु घाटी की लिपि
में?अंग्रेज
इतिहासकार और कम्युनिस्ट इतिहासकार क्यों नहीं चाहते कि सिन्धु घाटी की लिपि को
पढ़ा जाए?मतलब साफ है अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों की नजरों में
सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ने में निम्नलिखित खतरे हैं जिससे उनके फैलाये झूठे
इतिहास का भंडाफोड़ हो जाएगा।
1. सिन्धु घाटी की लिपि
को पढ़ने के बाद उसकी प्राचीनता और अधिक पुरानी सिद्ध हो जायेगी इजिप्ट, चीनी, रोमन, ग्रीक, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई से भी
पुरानी, जिससे पता चलेगा कि यह विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है भारत का
महत्व बढ़ेगा, जो जियोनिस्ट अंग्रेज और कम्युनिस्ट इतिहासकारों को बर्दाश्त
नहीं होगा।
2. सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ने से अगर वह प्राचीन सनातन सभ्यता साबित हो गयी तो अंग्रेजों और कम्युनिस्टों द्वारा फैलाये गए आर्य- द्रविड़ युद्ध वाले प्रोपोगंडा के ध्वस्त हो जाने का सबसे बड़ा डर है।
3. अंग्रेज और
कम्युनिस्ट इतिहासकारों द्वारा दुष्प्रचारित ष्आर्य बाहर से आई हुई आक्रमणकारी
जाति है और इसने यहाँ के मूल निवासियों अर्थात
सिन्धु घाटी के लोगों को मार डाला व भगा दिया और उनकी महान सभ्यता नष्ट कर दी, वे लोग ही जंगलों
में छुप गए दक्षिण भारतीय (द्रविड़) बन गए,शूद्र व आदिवासी बन
गए आदि आदि फालतू के झूठे तथ्य गलत साबित हो जाएंगे।और यही फर्जी इतिहासकार सिन्धु
घाटी की लिपि को सुमेरियन भाषा से जोड़ कर पढ़ने का प्रयास करते रहते हैं तो कुछ
इजिप्शियन भाषा से, कुछ चीनी भाषा से, कुछ इनको मुंडा आदिवासियों की भाषा और तो
और कुछ इनको ईस्टर द्वीप के आदिवासियों की भाषा से जोड़ कर पढ़ने का प्रयास करते रहे
हैं।अर्थात ये सारे प्रयास असफल साबित हुए और सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ने में
निम्लिखित समस्याएं बताई जाती हैं ।सभी लिपियों में अक्षर कम होते हैं जैसे
अंग्रेजी में 26, देवनागरी में 52
आदि मगर सिन्धु घाटी की लिपि में लगभग 400 अक्षर चिन्ह
हैं।इनके अनुसार सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ने में यह कठिनाई आती है कि इसका काल 7000 ठब् से 1500 ठब् तक का है जिसमे
लिपि में अनेक परिवर्तन हुए साथ ही लिपि में स्टाइलिश वेरिएशन बहुत पाया जाता है
लोथल और कालीबंगा में सिन्धु घाटी व हड़प्पा कालीन अनेक पुरातात्विक साक्षों का
अवलोकन किया गया है पर सारा डेटा छिपाया गया है।भारत की प्राचीनतम लिपियों में से
एक लिपि है जिसे ब्राह्मी लिपि कहा जाता है इस लिपि से ही भारत की अन्य
भाषाओँ की लिपियां बनी यही लिपि प्राचीन काल से गुप्त काल तक उत्तर पश्चिमी
भारत में उपयोग की जाती थी संस्कृत और पाली,प्राकृत के अनेक
ग्रन्थ ब्राह्मी लिपि में प्राप्त होते हैं।
सिन्धु घाटी की लिपि और ब्राह्मी लिपि में अनेक आश्चर्यजनक
समानताएं है साथ ही ब्राह्मी और तमिल लिपि का भी पारस्परिक सम्बन्ध है इस आधार पर
सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ने का सार्थक प्रयास सुभाष काक और इरावाथम महादेवन ने
किया।सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 400
अक्षर के बारे में यह माना जाता है कि इनमें कुछ वर्णमाला (स्वर
व्यंजन मात्रा संख्या),
कुछ यौगिक अक्षर और शेष चित्रलिपि हैं.अर्थात यह भाषा अक्षर और
चित्रलिपि का संकलन समूह है विश्व में ऐसी कोई भी भाषा इतनी सशक्त और समृद्ध नहीं
है जितनी सिन्धु घाटी की भाषा है।
जिस प्रकार सिन्धु घाटी की लिपि पशु के मुख की ओर से अथवा दाएं
से बाएं लिखी जाती है उसी प्रकार ब्राह्मी लिपि भी दाएं से बाएं लिखी जाती है
सिन्धु घाटी की लिपि के लगभग 3000
टेक्स्ट प्राप्त हैं।इनमे वैसे तो 400 अक्षर चिन्ह हैं
लेकिन 39 अक्षरों का प्रयोग 80 प्रतिशत बार हुआ है और ब्राह्मी लिपि में 45 अक्षर है हम इन 39 अक्षरों को ब्राह्मी
लिपि के 45 अक्षरों के साथ समानता के आधार पर मैपिंग कर सकते हैं और उनकी
ध्वनि का पता लगा सकते हैं।ब्राह्मी लिपि के आधार पर सिन्धु घाटी की लिपि पढ़ने पर
सभी संस्कृत के शब्द आते हैं जैसे श्री, अगस्त्य, मृग, हस्ती, वरुण, क्षमा, कामदेव, महादेव, कामधेनु, मूषिका, पग, पंच मशक, पितृ, अग्नि, सिन्धु, पुरम, गृह, यज्ञ, इंद्र, मित्र आदि।निष्कर्ष
यह है कि 1. सिन्धु घाटी की लिपि ब्राह्मी लिपि की पूर्वज लिपि है।2. सिन्धु घाटी की लिपि
को ब्राह्मी के आधार पर पढ़ा जा सकता है।3. उस काल में संस्कृत भाषा थी जिसे सिन्धु
घाटी की लिपि में लिखा गया था।4.
सिन्धु घाटी के लोग सनातन धर्म और संस्कृति को मानते थे।5. सनातन धर्म अत्यंत
प्राचीन है 7000 से भी कहीं अधिक प्राचीन।अर्थात सनातन हिन्दू सभ्यता विश्व की
सबसे प्राचीन व मूल सभ्यता है और सिंधु सभ्यता उसी का अभिन्न अंग हैं। प्राचीन
ग्रंथों के अनुसार हिन्दुओं का प्राचीन मूल निवास सप्त सैन्धव प्रदेश ( सिन्धु
सरस्वती क्षेत्र) था जिसका विस्तार ईरान से सम्पूर्ण भारत देश तक था यही सिंधु
घाटी सभ्यता
बहुत सुंदर जानकारी ,सुमन सौरभ ,रांची