वृद्धावस्था की जरूरत और उसके आयाम

देश कई चीजों को जोडकर बनता है मसलन इंसान हो , जानवर हो , पशु-पक्षी हो और आबो हवा के साथ पांच तत्व जिसके बिना कुछ भी संभव नही है.  छिति, जल, पावक, गगन, समीरा , उससे भी बडी बात यह कि इंसान तभी आदमी बन सकता है जब वह आचरण व व्यवहार से दूसरों को प्रभावित करे और उसे मजबूर कर दे कि वह उसकी अच्छाईयों को अपनाने के लिये तैयार हो जाय लेकिन आज के हालात में क्या यह संभव है? जीवन तो एक बार ही मिलेगा और इसी जीवन में कुछ करके जाना है। ऐसी पहचान बनानी है जो यश की ओर जाती हो । इसके लिये शास्त्रों में कुछ आचरण से जुड़ी बातें कही गयी है किन्तु हम उनके लिये समय कहां निकाल पाते है । पूरी जिन्दगी हम सिर्फ इस बात में लगा देते है कि हमारी औलाद किसी तरह से अच्छे से निकल जाये और उसे किसी भी तरह की कमी न रहे।

क्या ऐसा संभव है ‘’पूत कपूत तो क्यों धन संचय। पूत सपूत क्यों धन संचय॥’ । ऐसा इसलिये कहा गया है क्योंकि अगर पुत्र लायक होगा तो आपके धन की उसको आवश्यकता नही होगी और अगर नालायक होगा तो आपका धन उसे लायक नही बना सकता वह सबकुछ बिगाड देगा । फिर किस लिये परेशान है और इस परेशानी से आपको क्या मिला । आप अकेले आये थे और अकेले ही जायेगें , आपको जिम्मेदारी मिली थी आपने निभाया । अच्छा निभाया तो क्या , खराब निभाया तो क्या । दोनों का आकलन इसी जीवन को अंतिम पड़ाव में दिखने लगते है । पहले गलतियां सुधारने के लिये लोग सन्यास लेकर सभी चीजों का त्याग कर देते थे लेकिन आज गलतियों की अभिव्यक्ति का हकीकत में साकार होने देने के लिये अपने आस्तिव से अपने ही घरों में जूझ रहें है।आखिर ऐसा हमने क्या किया हमारे ही साथ ऐसा क्यों हुआ इस बात का आंकलन करते है जिसका कोई मतलब नही रह जाता ।

पशु के अन्दर जब तक ताकत रहती है वह सभी कुछ हासिल करना चाहता है। शेर सभी को मारकर खाने की इच्छा रखता है किन्तु कभी सोचता है कि जब वह बूढा हो जायेगा तो क्या होगा , उसे सिर्फ मरना ही होता है और उसके साथ कोई नही होता । उसकी जगह कोई और ले लेता है । इंसान का जीवन भी ऐसा ही है । आज इंसान की इंसानियत पशुवत हो गयी है और उसके अंदर इंसान कम पशु के अंश उसके मांसाहारी होने के कारण हो गये है जिससे वह निकल नही सकता । उसका भी वही होता है जो वह दूसरों के साथ होता आया है।पुरानी कहावत है। लक्ष्मी जी आती है तो लक्षण गायब हो जाते है। किन्तु जब वह नहीं होती तो लक्षण जमीन पर आते देर नहीं लगती। हम समझते है कि जीवन की लम्बी पारी खेलकर हमने ऐश कर लिया किन्तु इस बात को भूल जाते है कि यही बढ़ा समय हमारे कर्मो का फल है जो कि इसी जीवन मे रहते नरक क्या होता है इसका अहसास कराता है। अच्छे कर्मो के फल तो तुरंत मिल जाते है और आदमी स्वर्ग सिधार जाता है किन्तु बुरे कर्मो का फल तभी मिलता, जब पाप का घड़ा भर जाता है ऐसा हमारा इतिहास बताता है। ऐसे में या तो मुंह को लकवा मार जाता है या अपने अपमानित करने लगते है या कहीं जूते भी खाने पड़ते हैं। कभी -कभी सभी की मौजूदगी में कोई अचानक मुंह पर कालिख पोत जाता है और हम कुछ नही कर पाते है।

स्वर्गीय अर्जुन सिंह ने अपने मुख्यमंत्री पद के कार्यकाल में दस्यु उन्मूलन की एक योजना चलायी । दुर्दान्त कहे जाने वाले कई प्रख्यात दस्युओं ने आत्मसमर्पण किया और आज तक मरने के बाद भी अलग पहचान के साथ जी रहे है उनके बच्चे भी उनके साथ है उन्होने हत्यायें की और उसका फल भी भोगा लेकिन कही न कही उनके अंदर का बाल्मिकी बाहर आया।प्रयास से सब संभव है राजनीति में भी ऐसी योजना होनी चाहिये जहां लालू प्रसाद यादव , मुलायम सिंह यादव डी पी यादव मुख्तार अंसारी , शहाबुद्दीन जैसे लोग अपने बृद्धापन को सही बना सके।उनके बच्चे उनकी इज्जत कर सके।नही तो शुरूआत अखिलेश ने कर दी है आने वाले दिनों में मुलायम हर जगह , हर राज्य में दिखेगा।

One thought on “वृद्धावस्था की जरूरत और उसके आयाम

  1. शानदाार …..
    वर्तमान राजनितिक परिवेश मेंं व्यक्तिित्व और आचरण का नेतृृत्व पर प्रभाव माननीय मोदी जी और योगी जी के आने से देखा जा सकता है। भाजपा ही एकमात्र राजनीतिक पार्टीी दिखाई देती है जो भारतीय परंंपरा और मूल्योोंं का निर्वहन करते हुए भारत को सही माायने मेंं विश्व नेता की ओर ले जा सकती है। पुनर्जाागरण काल प्राारंंभ राजनीतिक स्तर पर देखा जा सकता है। परंंतु माननीय और भी क्षेेत्र इस नवजागरण मेंं शामिल होने को व्यााकुल जैसे शिक्षाा,विज्ञाान,प्रशासन,तकनीकी आदि। इस पर भी प्रकाश डालेंं।आपका मार्गदर्शन सर्वदा उपयोगी रहा है !