बाबर ने मुश्किल से कोई 4 वर्ष राज किया। हुमायूं को ठोक पीटकर भगा दिया गया था। मुग़ल साम्राज्य की नींव अकबर ने डाली जो जहाँगीर, शाहजहाँ से होते हुए औरंगजेब आते आते उखड़ गई।कुल 100 वर्ष (अकबर 1556ई. से औरंगजेब 1658ई. तक) के समय के स्थिर शासन को मुग़ल काल नाम से इतिहास में एक पूरे पार्ट की तरह पढ़ाया जाता है….क्यों?
मानों सृष्टि आरम्भ से आज तक के कालखण्ड में तीन भाग करने पर बीच के सम्पूर्ण मध्यकाल तक इन्हीं का राज रहा!अब इस स्थिर (?) शासन की तीन चार पीढ़ी के लिए कई किताबें, पाठ्यक्रम, सामान्य ज्ञान, प्रतियोगिता परीक्षाओं में प्रश्न, विज्ञापनों में गीत, ….इतना हल्ला मचा रखा है, मानो पूरा मध्ययुग इन्हीं 100 वर्षों के इर्द गिर्द ही है।जबकि उक्त समय में मेवाड़ इनके पास नहीं था। दक्षिण तथा पूर्व भी एक सपना ही था।अब जरा विचार करें….. क्या भारत में अन्य किसी तीन चार पीढ़ी और शताधिक वर्ष पर्यन्त राज्य करने वाले वंशों को पाठ्यक्रम में इतना महत्त्व या स्थान मिला है? बिलकुल नहीं अकेला विजयनगर साम्राज्य ही 300 वर्ष तक टिका रहा। हीरे माणिक्य की हम्पी नगर में मण्डियां लगती थीं।महाभारत युद्ध के बाद 1006 वर्ष तक जरासन्ध वंश के 22 राजाओं ने, 5 प्रद्योत वंश के राजाओं ने 138 वर्ष , 10 शैशुनागों ने 360 वर्षों तक , 9 नन्दों ने 100 वर्षों तक , 12 मौर्यों ने 316 वर्ष तक , 10 शुंगों ने 300 वर्ष तक , 4 कण्वों ने 85 वर्षों तक , 33 आंध्रों ने 506 वर्ष तक , 7 गुप्तों ने 245 वर्ष तक राज्य किया ।
फिर विक्रमादित्य श्रृंखला का 1000 वर्षों तक का स्वर्णिम काल है । इतने महान् सम्राट होने पर भी ये सब भारत के इतिहास में गुमनाम कर दिए गए। क्यों उनका वर्णन करते समय इतिहासकारों को मुँह का कैंसर हो जाता है।क्यों? सामान्य ज्ञान की किताबों में पन्ने कम पड़ जाते हैं। पाठ्यक्रम के पृष्ठ सिकुड़ जाते है। कोचिंग वालों की नानी मर जाती है। प्रतियोगी परीक्षकों के हृदय पर हल चल जाते हैं।वामपंथी इतिहासकारों ने नेहरूवाद का भोज भक्षण कर, जो उल्टियाँ की उसे ज्ञान समझ चाटने वाले चाटुकारों…!*
*तुम्हें धिक्कार है !*
*यह सब कैसे और किस उद्देश्य से किया गया ये अभी तक हम ठीक से समझ नहीं पाए हैं और ना हम समझने का प्रयास कर रहे हैं। देश के बटवारे के पीछे के कुछ और स्याह पन्ने हैं। यूरोप की ईसाई व्यवस्था और कांग्रेस के मध्य समझौते में कम्युनिष्टों को भारत की आत्मा को पुनर्जीवित होने से रोकने का ठेका दिया गया तुर्रा यह कि भारत सरकार के खर्चे पर नेहरू-गांधी की कृपा से कम्युनिष्टों ने भारतीय शिक्षा तंत्र को नष्ट किया।
ध्यान रहे नेहरू के बाद शास्त्री जी की बदली सोच से सशंकित यूरोप ने कम्युनिस्ट रूस में उनकी हत्या कर इंदिरा गांधी को कुर्सी पर बैठाने का रास्ता साफ किया। और इंदिरा ने पुरस्कार स्वरूप कम्युनिष्टों को खुली छूट दी। दुःख यह कि विनोबा, लोहिया और जयप्रकाश के अनुनायी इस फरेब में अनजाने ही फंस कर पटरी से उतर गए।
आज भारत का युवा सत्य जानना चाहता है।
क्या वर्तमान शिक्षाविद इसके लिए पाठ्यक्रम तैयार करेंगें ??