स्वाधीनता संग्राम से लेकर आपातकाल तक तमाम आंदोलनों के मिसाल रहे जयप्रकाश नारायण को लोकनायक की संज्ञा दी गई। जेपी सदैव न्यायपूर्ण व्यवस्था के लिए मुखर रहे और जनता को प्रेरित करते रहे। इंदिरा गांधी से वैसे उनकी कोई दुश्मनी नहीं थी लेकिन वैचारिक मतभेद था जिसको लेकर तमाम आंदोलन चले। तीसरी सदन के गठन के पहले प्रधानमंत्री का इस मामले को लेकर उद्बोधन इस ओर संकेत करता है की इमरजेंसी कल के दौरान जो कुछ हुआ, वह ठीक नहीं था ।कांग्रेस उन्हें तो तानाशाह रहती है लेकिन खुद अपने गिरेबान में झांक कर नहीं देखती।
जयप्रकाश जब वह मुंबई में थे तो उनके कई मित्रों ने उन्हें सलाह दी की वर्तमान राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए ,मैं ही अपनी ओर से पहल करूं। इंदिरा जी ने भी कुछ महीने पहले पूर्व लोकसभा में यह बयान दिया था कि वह विरोधी पक्ष से बातचीत करने को तैयार है उसे पर से मैं विगत 18 जनवरी 1976 को इंदिरा जी को इस आश्रय का एक पत्र लिखा कि राजनीतिक गतिरोध को भंग करने हेतु बातचीत करने के लिए मैं तैयार हूं परंतु तब भी संभव है जब अपने वरिष्ठ सहयोगियों से जो जेल में बंद है सलाह परामर्श करने का मुझे अवसर मिले ।यह पत्र मैं समाजवादी पार्टी नेता श्री गण गोरे के हाथ इंदिरा जी के पास भेजा था अभी तक उसे पत्र का कोई उत्तर नहीं मिला लेकिन वह बार-बार लोकतंत्र इंदिरा जी संसदीय लोकतंत्र की दुहाई देती है।
अगर वह सचमुच चाहती तो देश में संसदीय लोकतंत्र चले तो विरोधी को दबाने और मिटाने के बदले उसका सहयोग हासिल करना चाहिए और लोकतंत्र को पटरी पर लाने के लिए खुले मानस से उनके साथ बातचीत करनी चाहिए थी।जब इमरजेंसी उठाने और राजनीतिक बंधिया को रिहा करने का सवाल उठाया जाता है तो इंदिरा जी कहती है कि अभी तक विरोधी दलों के लोगों का और अन्य आंदोलनकारी का विचार नहीं बदला है वह अपने विचारों पर कायम है तो क्या वह समझती है कि किसी को जेल में डाल देने से उसका विचार बदल जाएगा ।क्या महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के विचार अंग्रेजों की जेल में रहने के कारण बदल गए थे अगर नहीं तो आज इंदिरा जी जेल में बंद है उनका विचार कैसे बदल जाएगा ।
भारत जैसे देश की प्रधानमंत्री के मुख से ऐसी बातें निकले यह शर्म की बात है अगर वह किसी के विचार बदलना ही चाहती है तो पारस्परिक समझदारी पैदा करने से बदल सकता है ।बातचीत करने से बदल सकता लेकिन अभी तक ऐसा कोई संदेश नहीं मिला कि वह इमरजेंसी उठाने और सामान्य स्थिति वापस लाने के सवाल पर खुले मन से बातचीत करने को तैयार है।यह कुछ सूत्रों के अनुसार शायद वह यह महसूस करती हैं कि जयप्रकाश नारायण तो अभी वर पद पर हैं युद्ध के मार्ग पर हैं तो उनसे क्या ही बातचीत होगी।
अब जहां तक पत्र की बात है तो जयप्रकाश नारायण ने लिखा था साक्षात्कारों को रिपोर्ट पढ़कर मैं विस्मित हूं ।आपने जो कुछ किया उसका औचित्य सिद्ध करने के लिए आपको रोज कुछ न कुछ करना पड़ रहा है। यही आपके अपराधिक मास का परिचायक है। समाचार पत्रों का मुंह बंद कर हर प्रकार के मत भिन्नता पर रोक लगाकर और इस आलोचना के भाई से सरौता मुक्त होकर आप विकृत तत्वों एवं झूठी बातों का प्रचार कर रही है अगर आप सोचती हैं कि ऐसा करने से जनता की नजर में खुद सही साबित कर सकेंगे तो विपक्ष को राजनीतिक दृष्टि से खत्म कर सकेंगे तो आप भारी मुकालाते में है यदि आपको कोई संदेह हो तो आपातकाल समाप्त कर जनता के मौलिक अधिकार और समाचार पत्रों को उनकी आजादी वापस देकर देख लीजिए और जिन लोगों ने को अपने बिना किसी अपराध के क्योंकि उन्होंने देशभक्ति के कर्तव्य को पूरा करने के अलावा कोई अपराध नहीं किया है ।बंदी बना रखा है उनको रिहा करें कि उनकी परीक्षा कर लीजिए।
9 साल का समय कम नहीं होता मैडम जनता की छठीइंद्री शक्ति से आपको पहचान लिया है क्योंकि मुख्य अपराधी मैं ही हूं इसलिए पूरी बात को स्पष्ट करना चाहूंगा ।इसमें समझौता करने की आपकी कोई रुचि नहीं होगी क्योंकि आपने तो जानबूझकर विकृत तथ्यों और झूठी बातों का प्रचार किया है परंतु जो सच है वह तो लिपिबद्ध हो जाएगा आपके शासन में एक बंदी के रूप में मैं संतोषपूर्वक पंख मारूंगा।