दूध कौन सी गाय का अच्छा

अपने देश में दो प्रकार की गायें हैं। देशी नस्ल और विदेशी नस्लयुक्त (ब्तवेे ठतममक)गाय। अपने देश में अधिक दूध प्राप्ति के मोह में डेयरी उद्योग से जुड़े लोग विदेशी नस्ल वाली गायों का अधिक उपयोग करते हैं क्योंकि विदेशी नस्लवाली संकरित गायें अधिक दूध देती हैं।

               देसी गायों की लगभग 35 प्रजातियां हैं जिसमें शाहीवाल, लाल-सिंदी गाय, गिर गाय, थारपारकर गाय, राठी प्रजाति, कांकरेज, मेवाली, हरियाणवी, नागौरी, हासी-हिसार आदि।

               विदेशी नस्ल की जिन गायों को लोग देश में रखते हैं उनमें जर्सी गाय, हालिस्टीन गाय, ब्राउन स्विस गाय, गिरओलेण्डो गाय, क्रिसवाल गाय, करनस्विस गाय आदि हैं।

दोनेां प्रकार की गायों से प्राप्त होने वाले दूध में अंतर होता है। विदेशी नस्ल की गाय और देशी नस्ल की गाय की क्रासब्रीडिंग करायी गयी थी जिससे गायों के अंदर जेनेटिक म्यूटेशसन (आनुवांशिक उत्परिवर्तन) हुआ। इसमें गायों के जींस में बदलाव हुआ। इस प्रकार से उत्पन्न गायें दूध तो ज्यादा देने लगी पर जीन्स में बदलाव के कारण दूध की गुणवत्ता भी प्रभावित हो गयी।

               जिस गाय में क्रास ब्रीडिंग के बाद जेनेटिक म्यूटेशन (आनुवांशिक उत्परिवर्तन) हुआ इनसे प्राप्त दूध को  ।.1 दूध कहा जाता है। और जिनमें क्रासब्रीडिंग नहीं हुयी अर्थात देशी गाय से प्राप्त दूध को ।.2 दूध कहा जाता है।

विश्व के अनेक देशों में सरकार ने दूध के पैकेट पर यह दूध किस प्रकार का है मतलब ।.1 है या ।.2 है यह लिखना अनिवार्य किया है। आज हमारे देश में भी सरकार को पहल करके दूध के पैकेट पर इस प्रकार का चिन्हीकरण कराने की आवश्यकता है जिससे यह पता चले कि यह दूध देसी गाय का है या संकरित नस्ल की गाय का।

               नस्ल संकरित गाय का दूधस जो ।.1 कहलाता है, के अधिक सेवन से नुकसान होता है। ह्दय रोग, एलर्जी का खतरा, मधुमेह, पाचन समस्या, श्वसन संक्रमण आदि। देशी गाय और संकरित गाय में कुछ अंतर निम्न तालिका द्वारा देखा जा सकता है-

               देशी गाय      संकरित गाय

ऽ            सींगें लंबी होती हैं।      सींगें अत्यंत छोटी होती हैं अथवा नहीं होती हैं।

ऽ            गर्दन के पास बड़ा कूबड़ होता है। कूबड़ नहीं होता है।

ऽ            गर्म तापमान में रह सकती हैं।    अधिक तापमान सहन नहीं कर सकती।

ऽ            स्थानीय एवं अन्य प्राकृतिक वातावरण से अनुकूलन करके विकास करती हैं।   अन्य प्राकृतिक परिवेश के प्रति अनुकूलन कठिन होता है।

ऽ            चारा कम मात्रा में लगता है।     इन गायों में अधिक चारा लगता हैं

ऽ             दूध की मात्रा कम होती है।       देशी गाय की अपेक्षा अधिक मात्रा में

दूध देती हैं।

ऽ            अपने जीवनकाल में 10 से 12 बछड़ों को जन्म दे सकती है और बछड़ों से उसका आत्मीय लगाव रहता है। अपने जीवनकाल में ज्यादा बछड़ों को जन्म नहीं दे पाती और बछड़ों से लगाव तुलना में कम ही रहता है।

ऽ            वैज्ञानिक भाषा में मिलनेवाला दूध ।.2 प्रकार का होता है।    वैज्ञानिक भाषा में मिलनेवाला दूध ।.1 प्रकार का होता है।

ऽ            2012 की पशुधनगणना के मुताबिक 4.8 करोड़ हैं।  2012 की पशुगणना के अनुसार 1.4 करोड़ की संख्या है।

ऽ            दूध सुपाच्य होता है।     अपेक्षाकृत दूध के पचने में अधिक समय लगता है।

               देशी गाय के दूध को प्रकृति का सब से अच्छा भोजन माना गया है। यह उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन, कार्बोहाइडेªट और सूक्ष्म पोषक तत्वों कैल्सियम और प्रोटीन का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है।

               गाय के दूध को माँ के दूध के बाद सबसे अच्छा पोषण का स्त्रोत कहा जाता है। गाय के दूध में 87.7 प्रतिशत पानी, 4.9 प्रतिशत लैक्टोज (कार्बोहाइडेªट) , 3.4 प्रतिशत वसा, 3.3 प्रतिशत प्रोटीन, 0.7 प्रतिशत खनिज लवण होते हैं।

               दूध में कूल प्रोटीन का 82 प्रतिशत केसिन और शेष 18 प्रतिशत सीरम प्रोटीन होता है। केसिन दूध में पाये जाने वाले प्रोटीन का सबसे बड़ा समूह है जो कि चार प्रकार का होता है। ।.ै1ए ।.ै2 , बीटा-1 (बीटा केसिन), के-केसिन (कापा केसिन)। केसिन का महत्वपूर्ण कार्य कैल्सियम और फाॅस्फोरस जैसे खनिजों के अवशोषण की क्षमता को बढ़ाना है।

।.1 और ।.2 दूध क्या है?

दूध में लगभग 88 प्रतिशत पानी होता है। शेष 12 प्रतिशत लैक्टोज, प्रोटीन, वसा और खनिज होते हैं। बीटा-केसिन दूध में कुल प्रोटीन सामग्री का लगभग 30 प्रतिशत होता है। बीटा केसिन दो प्रकार का होता है। ।.1 बीटा केसिन और ।.2 बीटा केसिन    

               ए-2 दूध वह दूध होता है जिसमें केवल ए-2 प्रकार का बीटा केसिन प्रोटीन होता है। जबकि ए-1 दूध में केवल ए-1 प्रकार का बीटा केसिन होता है। संकरित और यूरोपीय नस्लों की गायों में ए-1 प्रकार का दूध पाया जाता है। ए-2 प्रकार का दूध मूल रूप से देसी गायों और भैंसों में पाया जाता है।

               ए-1 और ए-2 दोनों ही बीटा केसिन प्रोटीन के प्रकार हैं, दोनों के बीच प्रोटीन श्रृंखला में 67वें स्थान पर एक एमिनो एसिन का अंतर होता है, इस 67वें स्थान पर ए-1 में एक हिस्टीडाइन एमिनो एसिड होता है जबकि ए-2 में एक प्रोलीन एमिनो एसिड होता है।

               इस एक एमिनो एसिड के परिवर्तन के कारण जब ए-1 प्रोटीन टूटता है तो यह एक पेप्टाइड बीसीएम-7 (ठब्ड.7) बनाता है जिसकी रासायनिक संरचना अफीम के समान होती है और यह मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है। इसी कारण से ए-1 दूध पीने वालों में मधुमेह, कोरोनरी ह्दय रोग, धमनीकाठिन्य, आॅटिज्म, सिजोफ्रेनिया आदि बीमारियां होने का खतरा बढ़ता है।

               देशी गायों, भैंस ओर विदेशी गायों पर किए गये शोध से यह पता चला है कि विदेशी पशुओं में ए-1 एसिड अधिक होता है जबकि भारतीय गायों और भैंसों में केवल ए-2 ही होता है।

मानव स्वास्थ्य पर ए-1 और ए-2 का प्रभाव

कई चिकित्सकीय प्रकाशन से यह पता चलता है कि जो लोग होलस्टीन, जर्सी गायों के दूध (ए-1) का सेवन कर रहे थे उनमें ह्दय रोग पाया गया जबकि जो लोग देसी गायों के दूध(ए-2) का उपयोग कर रहे थे उनमें ह्दय रोग का कोई खतरा नहीं था।

               दूध में कैल्सियम की मात्रा अधिक होती है जो आॅस्टियोपोरोसिस, कोलन कैंसर के जोखिम को कम करती है। मानव शरीर के लिए आदर्श कैल्सियम और मैग्निीसियम का अनुपात 2ः1 होना चाहिए जो कि ए-1 दूध मे 10ः1 होता है। इस कारण से ए-1 दूध का सेवन करने वाले लोगों में कैल्सियम और मैग्निीसीयिम की मात्रा का असंतुलन बना रहता है लेकिन ए-2 दूध इस तरह के असंतुलन का कारण नहीं बनता है। मैग्नीसियम हमारे पाचन को सुधारने में मदद करता है तथा यह एंटीइन्फ्लेमेटरी भी होता है और शरीर में ऊर्जा का उत्पादन और संचय करने में भी इसकी आवश्यकता होती है।

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