भारतीय कानून में जो विषयागत नही है।

प्रत्येक विधान तत्कालिक समाज की उन्नति का पैमाना होता है। मनु ने उस समय विधान बनाये थे जब संसार के अधिकतर मानवी समुदाय गुफाओं में रहते थे और बंजारा जीवन से ही मुक्त नहीं हो पाये थे। भारतीय समाज कोई पिछडा हुआ दकियानूसी समाज नहीं था ना ही सपेरों या लुटेरों का देश था जैसा कि योरूपवासी अपनी ही अज्ञानता वश कहते रहे हैं और हमारे अंग्रेजी ग्रस्त भारतीय उन की हाँ में हाँ मिलाते रहे हैं। उन्हें आभास होना चाहिये कि आदि काल से ही हिन्दू सभ्यता ऐक पूर्णत्या विकसित सभ्यता थी और हम उसी मनुवादी सभ्यता के वारिस हैं। वर्तमान में बुफे पार्टी करके फूहड़ गानों में हिन्दू बहन बेटियों और महिलाओं का सार्वजनिक नृत्य।। भडकीले और झाकते बदन वाले पोशाकों का चलन। हर शुभ कार्य में सामूहिक व् छुप छुपाकर मदिरा पान ।।डांडिया में घर की महिलाओं का देर रात अपरिचितों के साथ सामूहिक नृत्य। और अपने रीति रिवाजश्परम्पराओं मान्यताओं को छोड़कर इन्द्रिय सुख की पूर्ति रूपी पाश्चात्य संस्क्रती को अपनाना।।् हिन्दुओ के पतन का प्रमाण और मुख्य कारण है।जो मन हो आहत करती है।हम सभी को सोचना होगा कि हम पतन की ओर बढ़ रहे हैं कि उत्थान की ।

वैसे भी पहले ब्राह्मणों को और अपने भृत्यों को भोजन करा कर पीछे जो अन्न बचे वह पति पत्नी भोजन करें।हिन्दू धर्म में रीति रिवाजों को मानना स्वैच्छिक है, अनिवार्य नहीं है। परन्तु यदि किसी पुजारी से कोई पूजा, अर्चना या विधि करवायी है तो उसे उचित दक्षिणा देना अनिवार्य है। सदा सत्य बोलना चाहिये और प्रिय वचन बोलने चाहिये।वृद्ध, रोगी, भार वाहक, स्त्रियाँ, विदूान, राजा तथा वाहन पर बैठे रोगियों का मार्ग पर पहला अधिकार होता है।कुछ प्रावधानों का संक्षिप्त उल्लेख इस लिये किया गया है कि भारतीय जीवन का हर क्षेत्र विस्तरित नियमों से समाजिक बन्धनों के साथ जुडा हुआ है जो वर्तमान में अनदेखे किये जा रहै हैं।

भुभवत्स्वथ विप्रेषु स्वेषु भत्येषु चैव हि। भुञ्जीयातां ततः पश्चादवशिष्ठं तु दम्पति।। (मनु स्मृति 3- 116)
 

अपराध तथा दण्ड आज के संदर्भ में यह प्रावधान अति प्रसंगिक हैं। प्रत्येक शासक  का प्रथम कर्तव्य है कि वह अपराधियों को उचति दण्ड दे। जो कोई भी अपराधियों का संरक्षण करे, उन से सम्पर्क रखे, उन को भोजन अथवा आश्रय प्रदान करें उन्हें भी अपराधी की भान्ति दण्ड देना चाहिये।मनु महाराज ने बहुत सारे दण्डों का विधान भी लिखा है। जैसे कि जो कोई भी जल स्त्रोत्रों के दूषित करे, मार्गों में रुकावट डाले, गति रोधक खडे करे दृ उन को कडा दण्ड देना चाहिये।महत्वशाली तथ्य यह भी है कि मनु महाराज नें रोगियों, बालकों, वृद्धों,स्त्रियों और त्रास्तों को मानवी आधार पर दण्ड विधान से छूट भी दी है।राजकीय व्यव्स्था को प्रभावशाली बनाये रखने के विचार से अपराधियों को सार्वजनिक स्थलों पर दण्ड देने का विधान सुझाया गया है। लेख को सीमित रखने के लिये केवल भावार्थ ही दिये गये हैं जिन के बारे में वर्तमान शासक आज भी सजग नहीं हैं गौ हत्या, पशुओं के साथ निर्दयता का व्यवहार करना या केवल मनोरंजन के लिये पशुओ का वद्य करना।राज तन्त्र के विरुद्ध षटयन्त्र करना।हत्या तथा काला जादू टोना करना।स्त्रियों, बच्चों की तस्करी करना तथा माता पिता तथा गुरूओं की अन देखी करना ,पर-स्त्री गमन, राजद्रोह, तथा वैश्या-वृति करना और करवाना।प्रतिबन्धित वस्तुओ का व्यापार करना, जुआ खेलना और खिलाना।चोरी, झपटमारी, तस्करी, आदि।उधार ना चुकाना तथा व्यापारिक अनुबन्धों से पलट जाना। असामाजिक व्यवहार मनु महाराज ने कई प्रकार के अनैतिक व्यवहार उल्लेख किये हैं जैसे किः दिन के समय सोना, दूसरों के अवगुणों का बखान करना, निन्दा चुगली, अपरिचित स्त्री से घनिष्टता रखना।सार्वजनिक स्थलों पर मद्य पान, नाचना तथा आवारागर्दी करना,सार्वजनिक शान्ति भंग करना, कोलाहल करना।किसी की कमजोरी को दुर्भावना से उजागर करना।बुरे कर्मों से अपनी शैखी बघारना,ईर्षा करना,गाली गलोच करना,विपरीत लिंग के अपरिचितों को फूल, माला, उपहार आदि भेजना, उन से हँसी मजाक करना, उन के आभूष्णों, अंगों को छूना, आलिंगन करना, उन के साथ आसन पर बैठना तथा वह सभी काम जिन से सामाजिक शान्ति भंग हो करना शामिल हैं।

जन कल्याण सुविधायें मनु ने उल्लेख किया है कि शासक को कुयें तथा नहरें खुदवानी चाहियें और राज्य की सीमा पर मन्दिरों का निर्माण करवाना चाहिये। असामाजिक गतिविधियों को नियन्त्रित करने के लिये प्रशासन को ऐसे स्थानों पर गुप्तचरों के दूारा निगरानी रखनी चाहिये जैसे कि मिष्टान्न भण्डार, मद्य शालायें, चैराहै, विश्रामग्रह, खाली घर, वन, उद्यान, बाजार, तथा वैश्याग्रह।मनु ने जन कल्याण सम्बन्धी इन विष्यों पर भी विस्तरित विधान सुझाये हैं-नाविकों के शुल्क, तथा दुर्घटना होने पर मुआवजा,ऋण, जमानत, तथा गिरवी रखने के प्रावधान,पागलों तथा बालकों का संरक्षँण तथा अभिभावकों के कर्तव्य,धोबीघाटों पर स्वच्छता सम्बन्धी नियम.कर चोरी, तस्करी, तथा मिलावट खोरी, और झोला छाप चिकित्स्कों पर नियंत्रण,व्यवसायिक सम्बन्धी नियम, उत्तराधिकार के नियम  – शासक को जन सुविधायाओं के निर्माण तथा उन्हें चलाने के लिये कर लेना चाहिये। कर व्यवस्था से निर्धनों को छूट नहीं होनी चाहिये अन्यथ्वा निर्धनों को स्दैव छूट पाने की आदत पड जाये गी। आज के युग में जब सरकारें तुष्टिकरण और ‘सबसिडिज’ की राजनीति करती हैं उस के संदर्भ में मनु महाराज का यह विघान अति प्रसंगिक है। शासकों को व्यापिरियों के तोलने तथा मापने के उपकरणों का निरन्तर नीरीक्षण करते रहना चाहिये। तन्त्र को क्रियावन्त रखने के उपाय कोई भी विधान तब तक सक्षम नहीं होता जब तक उस को लागू करने केउपायों का समावेष ना किया जाय। इस बात को भी मनु ने अपने विधान में उचित स्थान दिया है। मनुस्मृति में ज्यूरी की तरह अनुशासनिक समिति का विस्तरित प्रावधान किया गया है। विधान में जो विषय अलिखित हैं उन्हें सामन्य ज्ञान के माध्यम से समय, स्थान तथा लक्ष्य पर विचार कर के सुलझाना चाहिये। यह उल्लेख भी किया गया है कि ऐक विदूान का मत ऐक सहस्त्र अज्ञानियों के मत के बराबर होता है। वोट बैंक की गणना का कोई अर्थ नहीं।

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