राजनैतिक दृष्टि से भले ही इस देश के अलग अलग भागों पर अलग अलग राजाओं का शासन रहा हो,देश की दृष्टि से यह हमेशा से ही भारतवर्ष के रूप मे एक बना रहा।यह इस धर्म का , इस धर्म के शास्त्रों का प्रभाव नहीं था तो फिर किसका था और आज भी इस धर्म का पालन करने वालों के लिये यह देश भारतवर्ष ही है,देश जो हिमालय के दक्षिण मे और समुद्र के उत्तर में फैला हुआ है।इस धर्म को माननेवाला , इसका पालन करने वाला , अफगानिस्तान से वर्मा तक और इधर तिब्बत से लेकर लंका तक के भू भाग में कहीं भी बैठा हो , अपने धर्म के अनुष्ठान के प्रारम्भ में संकल्प करते समय देश काल का उच्चारण करते हुए यही बोलेगा और बोलता भी है —– भारत वर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशान्तर्गते पुण्यक्षेत्रे , भले ही राजनेताओं की करतूतों से वह भूभाग भारत न रह कर कुछ और कहलाने लगा हो।उदाहरण के लिये नेपाल को ही ले लीजिए।राजनैतिक दृष्टि से नेपाल भारत नहीं है , लेकिन मेरे कई नेपाली मित्रों से मैंने पूछा तो उन्होंने बताया कि वे नेपाल में भी सन्ध्या वन्दनादि कर्म करते समय संकल्प में यही बोलते है —– भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशान्तर्गते पुण्यक्षेत्रे नेपालप्रदेशे …..। अब जरा सोचिए,नेपाल में तो अभी कुछ लोग बचे हुए हैं जिनका धर्म उन्हें सिखाता है कि यह भूभाग भारत ही है,मतलब यह कि नेपाल रूपी प्रासाद जिन ईटों से बना है उनमे से बहुत कम ही ऐसी ईंटें बची है जिन पर भारतवर्ष लिखा हुआ है ।शेष ईंटों को लोग या तो उठा ले गये,या फिर उन पर लिखे हुए शब्द भारतवर्ष को मिटा कुछ और लिख दिया,कही अफगानिस्तान लिख दिया और कहीं पाकिस्तान लिख दिया।भारतवर्ष के इस विशाल प्रासाद का जो भाग अभी भारतवर्ष के रूप में बचा हुआ है वह इसलिये क्योंकि अभी इस प्रासाद के कुछ भागों की ईंटों पर भारतवर्ष लिखा हुआ है कुछ वर्णाश्रमी हैं जो अभी भी अपने प्रत्येक धार्मिक कृत्य के प्रारम्भ में संकल्प करते समय बोलते हैं , उन्हें बोलना पड़ता है — भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशान्तर्गते पुण्यक्षेत्रे ।
तो इसतरह आपने देखा,यही एक धर्म है जिसने इस देश को भारतवर्ष बनाया और एक बनाया । इस धर्म के कारण ही आज भी यह देश भारतवर्ष है और एक है और आगे भी यदि यह देश भारतवर्ष के रूप में एक रहेगा तो इस धर्म के कारण ही रहेगा।यह देश भारतवर्ष के रूप में एक इसलिये नहीं है कि इसका झंडा तिरंगा है या इसका गान जनगणमन है ,या इसका पशु सिंह है और पक्षी मोर है यह देश भारतवर्ष के रूप में एक इसलिये भी नहीं है कि इस देश का एक तथाकथित धर्मनिरपेक्ष संविधान है।यह देश भारतवर्ष के रूप में एक इसलिये है क्योंकि इस देश के निवासी उस धर्म का अनुष्ठान ,उस धर्म का आचरण करते है , उस धर्म को मानते है जिसका प्रतिपादन , जिसका शासन मन्त्रब्राह्मणात्मक षडंग वेद , तदनुसारिणी स्मृतियो पुराणों उपनिषदों रामायण महाभारतादि ग्रन्थों से होता है , और जो यह सिखाता है कि यह देश जो कि हिमालय से लंका तक और अफगानिस्तान से बर्मा तक फैला हुआ है , भारतवर्ष है —- येषाम् खलु महायोगी भरतो ज्येष्ठ : श्रेष्ठगुण आसीद्येनेदं वर्षं भारतमिति व्यपदिशन्ति —- भागवत,कोई कुरान ,कोई बाईबल या फिर और कोई भी इस तरह का ग्रन्थ इस तरह न तो इस देश का स्वरूप बताता है और न ही इसकी महिमा का इस तरह तो क्या किसी भी तरह से वर्णन करता है और वर्णन नहीं करता तो जो भी कोई इन ग्रन्थों का अनुयायी होगा|
इन ग्रन्थों के अनुसार अपने जीवन को अपने विचारों को ढालता होगा वह क्यों इस देश के नाम रूप एकता अखण्डता के प्रति श्रद्धाभाव रखेगा ? ये वेदादि शास्त्र ही हैं जो इस देश के महत्त्व का प्रतिपादन करते हैं,इसलिये इस देश के लिये राष्ट्रीय कहे जाने योग्य यदि कुछ हो सकता है तो वह वह धर्म ही हो सकता है जिसका प्रतिपादन षडंग वेद और तदनुसारी ग्रन्थ करते है यदि यह धर्म राष्ट्रीय नहीं हैै तो फिर कोई झंडा डंडा,कोई गीत संगीत,कोई पशु पक्षी या फिर इस देश के स्वरूप संस्कृति सभ्यता और इतिहास से सर्वथा अनभिज्ञ कुछ लोगों के द्वारा लिखी गयी कोई पुस्तक ही राष्ट्रीय कैसे हो सकते हैं ? ऐसे धर्म से इस देश के निरपेक्ष होने का एक ही अर्थ है —यह देश आत्महत्या कर रहा है।
धर्मस्य फलमिच्छन्ति धर्मम् नेच्छन्ति मानवा :।
फलं पापस्य नेच्छन्ति पापं कुर्वन्ति यत्नत : ।।
Love you Pravu ,