आज पूरे विश्व के सामने जनसंख्या वृद्धि एक बड़ी समस्या बनकर उभर रही है। इस समस्या ने संसाधन से लेकर आर्थिक संतुलन तक, जलवायु परिवर्तन से लेकर ग्लोबल वार्मिंग जैसी चुनौतियों को ला खड़ा किया है और कई रिपोर्ट तो ये चेतावनी दे रहे हैं कि अगर इसपर जल्द ध्यान नहीं दिया गया तो पूरे विश्व को खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। जनसंख्या वृद्धि के साथ ही मानवीय आवश्यकताओं में जो वृद्धि हो रही है जिससे कारण सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है, वो अलग चिंता का विषय है। आज विश्व की जनसंख्या 7 अरब से भी ज्यादा है, जो वर्ष 2100 तक दस अरब 90 करोड़ होने का अनुमान है। रिपोर्ट बताते हैं कि जनसंख्या वृद्धि मुख्यतः विकासशील देशों में होने की संभावना है। इसमें से आधी से ज्यादा जनसंख्या अफ्रीकी देशों में हो सकती है। वर्ष 2050 में नाइजीरिया की जनसंख्या संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से ज्यादा हो जाने की संभावना है।बढ़ती जनसंख्या ने भूमि को जहां कई भागों में बांटा है, वहीं लंबे समय से कृषि विस्तार के लिये वनों को काटा जा रहा है। इससे कृषि योग्य बंजर भूमि तथा विविध वृक्ष प्रजातियों तथा बागों की सुरक्षित भूमि में कमी हो रही है और बिना वन के एक समय में प्रलय सा मंजर आ सकता है। औद्योगिक विकास एवं आर्थिक विकास की ललक में उष्ण कटिबंधीय वनों का विनाश तो हम सभी के सामने प्रत्यक्ष उदाहरण है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि उष्ण कटिबंधीय सघन वन प्रतिवर्ष एक करोड़ हैक्टेयर की वार्षिक दर से गायब हो रहे हैं। नतीजा है कि थाईलैण्ड तथा फिलीपीन्स जैसे देश में जो कभी प्रमुख लकड़ी निर्यातक देशों में अग्रणी थे, वनों के विनाश के कारण बाढ़, सूखे तथा प्राकृतिक विपदा के शिकार हो रहे हैं।
जहां तक विशेषतः भारत की बात है, हमारे देश की जनसंख्या वृद्धि दर में जरूर निरंतर कमी आ रही है, मगर कुल जनसंख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। यहां कुल जनसंख्या का 51 प्रतिशत भाग जनन आयु वर्ग (15-49) का है, इसलिए यहां जनसंख्या में हर वर्ष लाखों लोग और बढ़ जाते हैं। आज चीन सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है, लेकिन आने वाले समय में भारत दुनिया का सबसे बढ़ा आबादी वाला देश होने जा रहा है। यह तब है जब भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों में प्रजनन दर कम हुई है, क्योंकि इन देशों में परिवार नियोजन के कई कार्यक्रम जोर-शोर से चल रहे हैं। चीन, भले ही सबसे जनसंख्या वाला देश हो, लेकिन चीन की नई जनसंख्या नीति किसी न किसी रूप में चीन में किए जा रहे ढांचागत सुधार से जुड़ी रही है। लेकिन केवल अपने-अपने देश का ढांचागत सुधार ही इसका समाधान नहीं है, पूरे विश्व को इस पर विमर्श करना होगा, तभी अनुकूल परिणाम मिल सकता है। नहीं तो जनसंख्या-वृद्धि एक विनाशक परिणाम का परिचायक बन सकता है।