चीन के पाकिस्तान में आर्थिक हित हैं, जिन्हें मसूद अजहर से खतरा है. चीन मसूद अजहर को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. लेकिन सवाल ये उठता है कि चीन को अगर मसूद अजहर से डर लगता है, तो आर्थिक हितों के मामले में नई दिल्ली से क्यूं नहीं डरना चाहिए ?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक बार फिर चीन ने अड़ंगा लगाकर जैश ए मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित होने से बचा लिया. बुधवार को चीन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मसूद अजहर को ग्लोबल टेरेरिस्ट घोषित करने के प्रस्ताव पर को तकनीकी रूप से स्थगित रखने का अड़ंगा लगाया. 2009 से अब तक यह चौथा मौका है, जब चीन मसूद अजहर की ढाल बना है. अपने देश में नमाज और दाढ़ी तक पर रोक लगाकर इसलाम की नई परिभाषा तैयार कर रहे चीन को मसूद अजहर से इतना प्रेम क्यों है. इस सवाल का जवाब यही है कि चीन एक दोगला और साम्राज्यवादी देश है. वह अपने हितों के लिए दुनिया की शांति की भी बलि चढ़ा सकता है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 1267 अल कायदा प्रतिबंध समिति के तहत मसूद अजहर को लाने का ये प्रस्ताव भारत ने नहीं, फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका ने रखा था. पुलवामा हमले के बाद दुनिया के तमाम ताकतवर देश भी मसूद अजहर को लेकर चिंतित है. समिति की कमजोरी यह है कि इसमें सर्वसम्मति से ही फैसले लेने का प्रावधान है. ऐसे में चीन के पास वीटो पावर है, जिसका वह मसूद अजहर को बचाने में इस्तेमाल करता है. इससे पहले चीन 2009, 2016 और 2017 में भी मसूद अजहर को इसी तरीके से बचा चुका है. पूरी दुनिया देख रही है कि चीन एक आतंकवादी सरगना को वैश्विक मंच पर बचा रहा है. लेकिन चीन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. चीन वैश्विक जनमत नहीं, अपने हितों से संचालित होने वाला देश है.
चीन के आर्थिक हितों का संरक्षक है मसूद
आखिर मसूद अजहर में ऐसा क्या है. क्यों चीन को हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक आतंकवादी की हिमायत में खड़ा होना पड़ता है. इसके लिए आपको चीन के आर्थिक हित और पाकिस्तान पोषित आतंकवाद की केमिस्ट्री को समझना होगा. ये चीन और इस्लामिक दहशतगर्दों की आपसी समझबूझ है. तुम हमें मत छेड़ो, हम तुम्हें नहीं छेड़ेंगे. इसके लिए चीन के दक्षिण एशिया में आर्थिक एवं सामरिक हितों को समझिए. चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) चीन की एक महत्वपूर्ण सामरिक एवं आर्थिक योजना है. यह चीन के जिनजियांग में कशगर से ग्वादर बंदरगाह तक का प्रोजेक्ट है. चीन सीपीईसी के 45 प्रोजेक्ट में 42 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च कर चुका है. इस परियोजना के जरिये चीन पाकिस्तान से होते हुए सीधे ग्वादर बंदरगाह तक पहुंच रहा है. पूरा प्रोजेक्ट जिस इलाके में है, वह वहाबी आतंकवाद का गढ़ है. इन इलाकों में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के सौजन्य से आतंकवादी संगठनों के ट्रेनिंग कैंप चल रहे हैं. सीपीईसी के इर्द-गिर्द जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तैयबा जैसे आतंकवादी संगठनों की मजबूत पकड़ है. यह एक तरह का अलिखित समझौता है. चीन मसूद अजहर जैसे आतंकवादी सरगनाओं को बचाएगा. बदले में ये आतंकवादी चीन के सीपीईसी प्रोजेक्ट में कोई खलल नहीं डालेंगे. फिलहाल चीन के बीस हजार से ज्यादा नागरिक सीपीईसी में कार्यरत हैं. आने वाले समय में ग्वादर तक पचास लाख चीनी होंगे. ऐसे में चीन का मसूद अजहर जैसे आतंकवादी सरगनाओं के साथ गठजोड़ जरूरी है.
मसूद के कंधे पर बंदूक रखकर चला रहा चीन
एकध्रुवीय दुनिया में भारत की अमेरिका के साथ बढ़ती नजदीकी से चीन चिढ़ा हुआ है. चीन के सरकारी अखबार लगातार इस बात के लिए नई दिल्ली को ताकीद करते रहे हैं कि अमेरिका के साथ उसकी नजदीकी खतरनाक साबित होगी. भारत पूरी दुनिया में व्यापार के मामले में तेजी से चीन का प्रतिस्पर्धी बनकर उभर रहा है. ऐसे में बीजिंग को लगता है कि भारत जितना अस्थिर होगा, उतना ही चीन के हित में होगा. मसूद अजहर जैसे आतंकवादी सरगना चीन के लिए बहुत सुविधाजनक औजार हैं. 2007 में लाल मस्जिद कांड ने चीन को इस मामले में और चौकन्ना कर दिया था. तब एक चीनी महिला का पाकिस्तानी आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया था. चीन ने पाकिस्तान की बांह मरोड़कर सैन्य कार्रवाई कराई थी. इस अभियान में अब्दुल रशीद गाजी की मौत के बाद 40 से ज्यादा आतंकवादी सरगना जिस तरीके से इसलामाबाद के खिलाफ एकजुट हुए और वजीरिस्तान में जंग छेड़ दी, चीन डर गया. चीन समझ चुका था कि ये आतंकवादी अगर पाकिस्तान के खिलाफ एकजुट हो सकते हैं, तो कल उसके खिलाफ भी होंगे. आईएसआई ने जब इन आतंकवादी संगठनों में फूट डालने में कामयाबी हासिल करी, तो पाकिस्तान की परिभाषा के मुताबिक अच्छे आतंकवादी संगठन आईएसआई के पाले में आ गए. सिपाह ए साहेबा, हरकत उल मुजाहिदीन और पाकिस्तान परस्त तालिबान तक चीन की पहुंच के लिए मसूद अजहर एक पुल का काम करता है.
चीन के पास नहीं है कोई नैतिकता
1997 में जिनजियांग प्रांत में जब उइगर मुसलिमों ने आतंकवादी हमले शुरू किए, तो चीन के लिए ये काफी खतरनाक स्थिति थी. यह प्रांत उसके लिए दक्षिण एशिया और फिर वहां से अरब सागर का गेट-वे है. इन आतंकवादियों की कमर तोड़ने के लिए चीन के सामने चुनौती बाहरी मदद रोकने की थी. इसके लिए चीन ने तालिबान के नेता मुल्ला उमर से बातचीत और समझौते तक से परहेज नहीं किया. चीन ने तालिबान को हथियार एवं अन्य इमदाद की पेशकश की. बदले में तालिबान से इस बात की गारंटी ली कि वे चीन के किसी भी मुस्लिम संगठन की कैसी भी मदद नहीं करेंगे. चीन ने तालिबान को हथियार दिए और बदले में चीन के अंदर के मुसलमानों को पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मौजूद आतंकवादियों से कैसी भी मदद नहीं मिली. आज चीन ने उइगर मुसलमानों को नजरबंद कर रखा है. इसलाम की नई परिभाषा तैयार की जा रही है, जो चीन के मुताबिक है. लेकिन पूरी दुनिया में कोई भी इस्लामिक देश और आतंकवादी संगठन इसके खिलाफ एक शब्द बोलने को तैयार नहीं है.
अमेरिका भी समझ रहा इस खेल को
अमेरिका और यूरोपीय देश अब समझ रहे हैं कि चीन पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी संगठनों को भविष्य के हथियार के रूप में तैयार कर रहा है. पुलवामा हमले के बाद यूरोपीय देश और अमेरिका जिस तरीके से खुलकर जैश और मसूद के खिलाफ सामने आए हैं, वह चीन की नीयत और नीति का ही नतीजा है. बुधवार को जब मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने का प्रस्ताव स्थगित हुआ, तो अमेरिका के विदेश मंत्रालय के उप प्रवक्ता राब्र्ट पालडिनो ने कहा कि क्षेत्रीय शांति और स्थिरता में अमेरिका और चीन दोनों का साझा हित है. अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने में विफलता से इस लक्ष्य को नुकसान पहुंचेगा. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने इसका परोक्ष रूप से जवाब दिया. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और उसकी सहायक इकाइयां नियमों से संचालित होती हैं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 कमेटी के तहत आतंकवादी संगठनों या व्यक्तियों को सूचीबद्ध करने के मसले पर चीन पहले ही कई बार अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुका है. जहां तक मसूद अजहर का सवाल है, चीन ने हमेशा जिम्मेदार रवैया अपनाया है. चीन सभी पक्षों से इस बारे में बातचीत कर रहा है और समुचित तरीके से इस मसले से निपटा जाएगा.
चीन के विदेश मंत्रालय के बयान से कई सवाल पैदा होते हैं. पहला तो यही कि चीन किन पक्षों से बातचीत कर रहा है. क्या यह एक तरह की स्वीकारोक्ति नहीं है कि चीन मसूद अजहर के संपर्क में है और उसके पक्ष को अहमियत दे रहा है. अब समय आ गया है कि बीजिंग को बताया जाए कि आतंकवाद के मसले पर हम किसी किस्म की दोमुंही कूटनीति और शह को बर्दाश्त नहीं करेंगे. चीन को अगर मसूद अजहर से अपने हित प्रभावित होने का डर है तो यह डर उसे नई दिल्ली से भी होना चाहिए.